बिहार में जातिगत मुद्दे विधानसभा चुनाव की दशादिशा तय करते हैं। लेकिन 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों पर ऑपरेशन सिंदूर के प्रभाव को भुनाने की कोशिश भी हो रही है। इस मकसद में बीजेपी और नीतीश कुमार कितना सफल होंगे, जानिएः
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की गहमागहमी शुरू हो चुकी है, और इस बार 'ऑपरेशन सिंदूर' ने राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है। द प्रिंट ने बिहार के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने खड़ी चुनौतियों का विश्लेषण किया है।
ऑपरेशन सिंदूर, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान की आतंकी और सैन्य संरचनाओं पर हमला किया, ने बिहार के चुनावी माहौल को नया रंग दिया है। इस ऑपरेशन ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को एक मजबूत कहानी दी है। पीएम मोदी ने पहलगाम आतंकी घटना के दूसरे दिन ही मधुबनी में इसकी शुरुआत की थी। जब उन्होंने कहा था कि इस घटना के आतंकवादियों को धरती के आखिरी छोर तक खोज कर मारा जाएगा। फिर ऑपरेशन सिंदूर हो गया। बीजेपी ने इस मौके का फायदा उठाते हुए 10 दिनों तक बिहार में तिरंगा यात्राएँ निकालीं, जिससे राष्ट्रवादी भावनाओं को भुनाने की कोशिश की गई। हालांकि, नीतीश कुमार ने इन यात्राओं को चुपचाप देखा, शायद सतर्कता के साथ, क्योंकि वह जानते हैं कि बीजेपी इस मौके का इस्तेमाल अपने प्रभाव को बढ़ाने और बिहार में अपना मुख्यमंत्री स्थापित करने के लिए कर सकती है।
BJP के लिए 2025 का चुनाव बिहार में अपने मुख्यमंत्री को लाने का सुनहरा अवसर है। 2020 में चिराग पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के जरिए नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) (JD(U)) की सीटों को कम करने में अहम भूमिका निभाई थी। BJP अब चाहती है कि प्रशांत किशोर की नई पार्टी जन सुराज भी ऐसा ही कुछ करे, जिससे नीतीश की स्थिति कमजोर हो और BJP को फायदा मिले।
नीतीश कुमार, जो बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं, इस बार कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। डिज़ाइनबॉक्स्ड के एक सर्वे के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही NDA को बिहार में बढ़त थी। सर्वे में 60% से अधिक लोगों ने नीतीश के प्रदर्शन से संतुष्टि जताई, और 50% से अधिक ने माना कि NDA अगला चुनाव जीतेगा। अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), जो बिहार की आबादी का 36% है, में NDA को 68.72% समर्थन मिला, जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में 39.63% समर्थन था। अनुसूचित जाति (SC) में भी NDA को 48.23% समर्थन प्राप्त था।
हालांकि, नीतीश की लोकप्रियता में कमी आई है। C-Voter सर्वे के अनुसार, उनकी लोकप्रियता 18% से घटकर 15% हो गई है, और वह मुख्यमंत्री पद के लिए तीसरे पसंदीदा उम्मीदवार बन गए हैं। उनके सामने तेजस्वी यादव (35.5%) और प्रशांत किशोर (17.2%) हैं। नीतीश की घटती लोकप्रियता के कारणों में उनकी सेहत, बार-बार गठबंधन बदलने से विश्वसनीयता में कमी, और NDA द्वारा मुख्यमंत्री चेहरा घोषित न करना शामिल हैं।
तेजस्वी यादव और RJD: राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव इस बार सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं, हालांकि उनकी लोकप्रियता भी 40.6% से घटकर 35.5% हुई है। तेजस्वी ने बेरोजगारी और प्रवास जैसे मुद्दों को अपनी रणनीति का केंद्र बनाया है, जो सर्वे में 43.8% लोगों की प्राथमिक चिंता है। वह युवाओं और अल्पसंख्यकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की आक्रामकता उनकी राह में बाधा बन रही है।
प्रशांत किशोर और जन सुराज: प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी पहली बार सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। किशोर ने नीतीश की सेहत और नेतृत्व को कमजोर बताकर उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। वह नीतीश और तेजस्वी की अनुपस्थिति से बने "वैक्यूम" का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, खासकर मुस्लिम और अन्य समुदायों में।
BJP की रणनीति: BJP नीतीश को गठबंधन का चेहरा बनाए रखते हुए भी अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। वह ऑपरेशन सिंदूर और राष्ट्रवादी मुद्दों के जरिए मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। साथ ही, चिराग पासवान और सम्राट चौधरी जैसे नेताओं को आगे बढ़ाकर वह भविष्य में नीतीश को हटाकर अपना मुख्यमंत्री लाने की जमीन तैयार कर रही है।
बिहार की आबादी में EBC (36%), OBC (27%), और SC (19.6%) का बड़ा हिस्सा है। यदुवंशी (14.26%) और नीतीश की कुरमी जाति (2.87%) भी महत्वपूर्ण हैं। NDA को EBC और ऊपरी जातियों में मजबूत समर्थन है, जबकि RJD का आधार यदुवंशी और मुस्लिम वोटर हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद BJP ने मुस्लिम समुदाय में भी 28.47% समर्थन हासिल किया है, जो नीतीश के लिए चिंता का विषय है।
सी वोटर के सर्वे में बेरोजगारी और प्रवास सबसे बड़े मुद्दे उभरे हैं, जो तेजस्वी की रणनीति को मजबूत करते हैं। दूसरी ओर, नीतीश की सरकार ने स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, और बुनियादी ढांचे में उपलब्धियों का दावा किया है, लेकिन उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर ने बिहार के चुनावी माहौल को राष्ट्रवादी रंग दिया है, जिसका फायदा NDA, खासकर BJP, को मिल सकता है। हालांकि, नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव आसान नहीं है। उनकी घटती लोकप्रियता, सेहत की चिंताएँ, और बार-बार गठबंधन बदलने की छवि उन्हें कमजोर कर रही है। तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर उनकी चुनौतियों को और बढ़ा रहे हैं, जबकि BJP अपनी रणनीति के तहत नीतीश को समर्थन देते हुए भी भविष्य में अपनी सत्ता स्थापित करने की योजना बना रही है। बिहार का यह चुनाव न केवल नीतीश के लिए, बल्कि पूरे NDA और विपक्ष के लिए एक कड़ा इम्तिहान होगा।