बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने शनिवार को गहन विचार-विमर्श के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक की। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी की इस बैठक में AICC के महासचिव के.सी. वेणुगोपाल और कोषाध्यक्ष अजय माकन भी मौजूद थे। लेकिन इस बैठक का कोई ठोस नतीजा या फैसला सामने नहीं आया। बिहार के नतीजे आने के बाद पार्टी नेतृत्व लगातार सवालों के घेरे में है। 
पार्टी ने जिन 61 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से उसे मात्र छह सीटों पर जीत मिली, जो 2010 के बाद उसका दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन है, जब उसने केवल चार सीटें जीती थीं। इस निराशाजनक प्रदर्शन ने कांग्रेस के भीतर आत्म-मंथन की ज़रूरत को बढ़ा दिया है।

क्या कांग्रेस अपना 'वोट चोरी' विरोधी अभियान धीमा करेगी?

हार के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने 'वोट चोरी' के अपने आरोपों को नहीं छोड़ने का फैसला किया है। बैठक के बाद के.सी. वेणुगोपाल और अजय माकन ने मीडिया से बात करते हुए चुनाव आयोग (ECI) और राज्य की मतदाता सूची (SIR) को कटघरे में खड़ा किया और गड़बड़ी का आरोप लगाया। पार्टी ने पूरे वोटिंग डेटा की विस्तृत जाँच करने की बात कही है। राहुल गांधी ने भी परिणाम को 'अत्यंत आश्चर्यजनक' और कहा कि यह चुनाव 'शुरू से ही अनुचित' था। हालांकि पार्टी तमाम वजहें बता रही है, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि 'वोट चोरी' के आरोप न तो चुनावी नैरेटिव खड़ा कर पाए और न उसका कोई असर दिखाई पड़ा। 
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राहुल गांधी की रणनीति पर उठे सवाल

पार्टी के भीतर और बाहर राहुल गांधी की चुनावी रणनीति और प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। कई रिपोर्टों में संगठनात्मक कमजोरी और कार्यकर्ताओं से सीमित संवाद को हार का एक बड़ा कारण बताया गया है। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने शिकायत की है कि राहुल गांधी की रणनीतिकारों की टीम ने जमीनी नेताओं की बात उन तक नहीं पहुंचने दी। कांग्रेस सांसद शशि थरूर जैसे नेताओं ने पार्टी को आत्ममंथन की सलाह दी है। बिहार कांग्रेस के दिग्गज नेता शकील अहमद तो नतीजे आने से पहले पार्टी छोड़ने की घोषणा कर चुके हैं। शकील अहमद की भी यही शिकायत है कि पार्टी ने टिकटों का बंटवारा सही ढंग से नहीं किया।
आरोप है कि कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों के बजाय अन्य मुद्दों को तरजीह दी, जबकि NDA ने अपनी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया। राहुल गांधी ने परिणाम को चौंकाने वाला बताया है और INDIA गठबंधन के साथ मिलकर परिणामों की गहराई से समीक्षा करने की बात कही है।

कांग्रेस का इतना कमजोर स्ट्राइक रेट क्यों

कांग्रेस ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 6 सीटें जीतीं, जिसका मतलब है उसका स्ट्राइक रेट सिर्फ 10% रहा। यह पिछली बार (2020) के 19 सीटों के मुकाबले एक बड़ी गिरावट है। बिहार कांग्रेस के कई बड़े चेहरे चुनाव हार गए। पार्टी के पास मजबूत जमीनी संगठन का अभाव और फाइव-स्टार होटलों में रणनीति बनाने के आरोप भी लगे। सीट बंटवारे को लेकर घटक दलों के बीच तालमेल की कमी और स्थानीय नेताओं की अनदेखी भी हार के प्रमुख कारणों में से एक है।

क्या कांग्रेस ने तेजस्वी के आगे सरेंडर किया

नतीजों ने कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर बहस छेड़ दी है। बिहार के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा समेत पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का तर्क है कि पार्टी ने राजद के तेजस्वी यादव के आगे "आत्मसमर्पण" कर दिया, अपनी स्वतंत्र पहचान को नज़रअंदाज़ कर दिया और "ओबीसी/ईबीसी द्विआधारी" के जाल में फंस गई। 

क्या INDIA गठबंधन में फूट पड़ेगी? 

बिहार की हार से विपक्षी INDIA गठबंधन पर दबाव बढ़ गया है। तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियां लगातार कांग्रेस के नेतृत्व को चुनौती दे रही हैं, खासकर जब कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन का हिस्सा होते हुए भी राज्यों में कमजोर प्रदर्शन कर रही है। गठबंधन को अब 'INDIA' के विचार को फिर से परिभाषित करने और सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे और आपसी तालमेल को मजबूत करने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
कांग्रेस बिहार में हार के कारणों की विस्तार से जाँच के लिए एक विशेष समिति का गठन कर सकती है।