कांग्रेस ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को लेकर चुनाव आयोग और बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस के मीडिया और प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग को 'बीजेपी का बिचौलिया' करार देते हुए तंज कसा कि अगर आयोग केवल बीजेपी के इशारों पर काम कर रहा है, तो हम बिचौलियों से क्यों मिलें, हम सीधे बीजेपी से बात करेंगे। यह बयान बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर चल रही तीखी सियासी जंग के बीच आया है। विपक्षी इंडिया गठबंधन ने इस प्रक्रिया को लोकतंत्र पर हमला करार दिया है।

'चुनाव आयोग बीजेपी मुख्यालय में फ्लोर ले ले'

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवन खेड़ा ने बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान को 'बिहारवासियों की नागरिकता पर डाका' बताया। उन्होंने कहा, 'हमें कल आभास हुआ कि शायद हम गलत पते पर चले गए हैं। इतनी बड़ी बिल्डिंग चुनाव आयोग की, आपके-मेरे पैसे से बनी होगी। इतनी बड़ी बिल्डिंग में बैठने की जरूरत क्या है? बीजेपी का मुख्यालय है, वहां एक फ्लोर ले लीजिए।' खेड़ा ने आरोप लगाया कि यह अभियान केवल मतदाता सूची का संशोधन नहीं है, बल्कि यह एक सुनियोजित साजिश है, जिसके तहत बिहार के क़रीब 20% मतदाताओं, खासकर दलित, मुस्लिम, और पिछड़े वर्गों को मतदान के अधिकार से वंचित करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने सवाल उठाया, 'जब लोकसभा चुनाव इसी वोटर लिस्ट पर हुए थे तो विधानसभा चुनाव से पहले इसकी जरूरत क्यों पड़ी?'
पवन खेड़ा ने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए कहा, 'आप क्या विरासत छोड़कर जाएंगे, देश के लोग आपको किस लिए याद रखें? क्या देश चुनाव आयोग के अधिकारियों को इसलिए याद रखेगा कि पूरा विपक्ष वोटर लिस्ट मांग रहा था और आप नहीं दे रहे थे? वोटिंग के वीडियो फुटेज 45 दिन बाद नहीं दिए जाएंगे! महाराष्ट्र में अचानक 5 बजे के बाद वोटिंग प्रतिशत बढ़ गया, लेकिन आपने आजतक इसपर जवाब नहीं दिया? इसलिए हमें लगता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है। ये खतरा सिर्फ विपक्ष के लिए नहीं, बल्कि हर एक वोटर के लिए है।'

विशेष गहन पुनरीक्षण पर विवाद

बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किया गया विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए घर-घर जाकर सत्यापन का प्रावधान करता है। इसके तहत, मतदाताओं से उनकी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। ख़ासकर 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों को अपने और अपने माता-पिता में से किसी एक के वैध दस्तावेज पेश करने होंगे।
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कुछ दिन पहले भी विपक्षी दलों ने ऐसे ही आरोप लगाए थे। कांग्रेस, आरजेडी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) जैसे विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को 'एनआरसी का बैकडोर' करार दिया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, 'इस कवायद का उद्देश्य दलित, मुस्लिम, और पिछड़े वर्गों को मतदाता सूची से हटाना है, ताकि वे वोट न दे सकें। इसके बाद इन लोगों को सामाजिक कल्याण योजनाओं से भी वंचित किया जा सकता है।'

इसी हफ़्ते पवन खेड़ा ने इस प्रक्रिया की समयसीमा पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, 'बिहार के कई क्षेत्र बाढ़ और मानसून से प्रभावित हैं। क्या इतने कम समय में यह सत्यापन ईमानदारी से हो सकता है?' 

पवन खेड़ा ने आशंका जताई कि यह अभियान बीजेपी के इशारे पर शुरू किया गया है, क्योंकि हाल के जनमत सर्वेक्षणों में एनडीए का प्रदर्शन बिहार में कमजोर दिख रहा है।

चुनाव आयोग पर कठपुतली होने का आरोप

हाल ही में पवन खेड़ा ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कठपुतली बताया। उन्होंने कहा, 'महात्मा गांधी के तीन बंदरों ने कुछ भी बुरा न देखा, न सुना, न कहा। इसी तरह, चुनाव आयोग कुछ भी सच न देखता है, न सुनता है, न बोलता है।' उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अनियमितताओं पर सवाल उठाए, तो बीजेपी ने इसका खंडन किया, लेकिन जवाब नहीं दिया।

पवन खेड़ा ने बीजेपी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि जब भी बीजेपी संकट में होती है, वह चुनाव आयोग की शरण में जाती है। उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल के जनमत सर्वेक्षणों से परेशान हैं, जिनमें दिखाया गया है कि बिहार में एनडीए का प्रदर्शन खराब रहने वाला है। इसलिए, उन्होंने शायद चुनाव आयोग का इस्तेमाल मास्टरस्ट्रोक के रूप में किया है।'
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बीजेपी का जवाब

बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पुनरीक्षण अभियान मतदाता सूची को पारदर्शी और सटीक बनाने के लिए है। बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि यह उनकी हताशा को दर्शाता है, क्योंकि वे बिहार में हार का सामना करने से डर रहे हैं।

पवन खेड़ा का यह बयान और विपक्ष का विरोध बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सियासी माहौल को और गरमा सकता है। यह देखना अहम होगा कि क्या चुनाव आयोग इस प्रक्रिया को जारी रखता है या विपक्ष के दबाव में इसे रद्द करता है।