भाजपा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ जो विवाद खड़ा किया है, जल्द ही उस विवाद के गुब्बारे की हवा निकलने वाली है। राहुल के खिलाफ लाए गए तमाम प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिए जाएंगे, क्योंकि भाजपा राहुल पर जितना आक्रामक होगी, राहुल का कद उतना ही बढ़ेगा। ऐसे में भाजपा ऐसा जोखिम भला क्यों लेगी।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ब्रिटेन में दिए गए बयानों और संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई टिप्पणियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पर बेहद आक्रामक है। वह राहुल गांधी के बयानों को देश का अपमान बताते हुए उनसे संसद में माफी मांगने की मांग कर रही है। इस सिलसिले में राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस भी दिया गया है और उन्हें लोकसभा से निष्कासित किए जाने की बात भी कही जा रही है। सवाल है कि क्या संसद में प्रधानमंत्री पर टिप्पणी और विदेश में दिए गए बयानों के आधार पर राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म की जा सकती?
बेशक भाजपा ऐसा कर सकती है। जब करीब-करीब हर सत्र में विपक्षी सांसदों को हंगामा करने के आरोप में कुछ दिनों के लिए या पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया जाता है; विपक्षी सदस्यों को राष्ट्रीय महत्व के गंभीर मुद्दे नहीं उठाने दिए जाते हैं; विधेयकों पर मत-विभाजन की विपक्ष की मांग ठुकरा दी जाती है और बिना बहस के बजट और महत्वपूर्ण विधेयकों को ध्वनिमत से पारित करा लिया जाता है तो बहुमत के दम पर किसी को सदन से निष्कासित करना कौन सी बड़ी बात है। भाजपा का अहंकार जिस तरह सातवें आसमान पर है, उसके चलते वह चाहे तो राहुल गांधी क्या, समूचे विपक्ष को सदन से निष्कासित करवा सकती है।
राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देने वाले केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे का कहना है कि अगर राहुल गांधी माफी नहीं मांगते हैं तो उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई होगी और इस कार्रवाई के तहत उन्हें लोकसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ेगा। दूसरी ओर राहुल गांधी का साफ कहना है कि उन्होंने न तो संसद में कुछ असंसदीय कहा है और न ही ब्रिटेन में देश के प्रति कोई अपमानजनक बात कही है। इस मामले में पूरी पार्टी राहुल के साथ है।
राहुल गांधी ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान जो बातें कही थीं उनमें से ज्यादातर को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया गया है। उन्होंने हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके उद्योगपति गौतम अदानी से संबंधों को लेकर जो सात सवाल पूछे थे, उन सवालों को भी कार्यवाही से हटा दिया गया है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि राहुल के भाषण के दौरान स्पीकर ओम बिड़ला खुद आसन पर थे और उन्होंने राहुल को बिल्कुल भी नहीं रोका था।
आमतौर पर कोई सदस्य अपने भाषण के दौरान कोई असंसदीय बात या शब्द कहता है तो स्पीकर की आसंदी की ओर से उसे टोका जाता है। विपक्षी सदस्यों के भाषण के दौरान मौजूदा स्पीकर तो कुछ ज्यादा ही सतर्क रहते हैं और खूब टोका-टाकी करते हैं। लेकिन राहुल को उनके पूरे भाषण के दौरान न तो स्पीकर ने टोका और न ही सत्तापक्ष की ओर से किसी ने कोई आपत्ति जताई। उलटे राहुल का भाषण पूरा होने के बाद स्पीकर ने उनसे कहा कि वे अब आगे से जनता के बीच यह न कहे कि सदन में उनका माइक बंद कर दिया जाता है। हालांकि बाद में उनके भाषण के अंश कार्यवाही से हटाए दिए गए।
अब सवाल है कि क्या गौतम अडानी से प्रधानमंत्री मोदी के संबंधों को लेकर पूछे गए सवाल के मसले पर राहुल की सदस्यता खत्म हो सकती है? उन्होंने सदन में अपने भाषण के दौरान एक तस्वीर दिखाई थी, जिसमें एक विशेष विमान में नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी एक साथ है। सवाल है कि क्या भाजपा या सरकार में से किसी ने इस तस्वीर की सच्चाई पर सवाल उठाया है?
विदेशी प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक में प्रधानमंत्री मोदी और अडानी के एक साथ होने की तस्वीरें भी सोशल मीडिया में वायरल हो रही है तो क्या उसका खंडन हो रहा है? इसीलिए कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि राहुल ने वही कहा है, जो पहले से सार्वजनिक जानकारी में है। इसलिए ऐसी किसी बात का जिक्र करने पर किसी सांसद की सदस्यता कैसे जा सकती है?
इस सिलसिले में विशेषाधिकार हनन का नोटिस देकर राहुल गांधी की सदस्यता खत्म करने की मांग करने वाले सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के समक्ष आपातकाल के दौरान तत्कालीन जनसंघ के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की राज्यसभा सदस्यता समाप्त करने का हवाला दिया है। उन्होंने समिति को बताया है कि 1976 में सुब्रमण्यम स्वामी की सदस्यता इस आधार पर समाप्त कर दी गई थी कि उन्होंने विदेशों में जाकर भारत सरकार की आलोचना की थी। दुबे ने यह भी दलील दी कि सदन में बहस राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हो रही थी लेकिन राहुल गांधी का भाषण काफी हद तक गौतम अडानी पर केंद्रित था और उन्होंने लगभग 75 मर्तबा अडानी का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री के खिलाफ भ्रामक और अपमानजनक टिप्पणियां की हैं।
भाजपा सांसद सुनील सिंह की अध्यक्षता वाली विशेषाधिकार समिति में भाजपा के दिलीप घोष, गणेश सिंह, राजू बिस्ता, कांग्रेस के के. सुरेश, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी और डीएमके के टीआर बालू सदस्य हैं। निशिकांत दुबे की दलील को कल्याण बनर्जी और के. सुरेश ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वायनाड के सांसद राहुल गांधी के भाषण को सदन की कार्यवाही से पहले ही हटा दिया गया है, इसलिए यह मुद्दा खत्म हो चुका है। ब्रिटेन में दिए गए राहुल के बयानों पर भी दोनों सदस्यों का कहना था कि उन्होंने सरकार की आलोचना की है और सरकार का मतलब देश नहीं होता है। समिति की बैठक में टीआर बालू मौजूद नहीं थे लेकिन उन्होंने लिखित में अपनी राय दर्ज कराई कि राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का कोई मामला नहीं बनता है।
दरअसल भाजपा के बड़बोले नेता कुछ भी कहते रहें लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों को अंदाजा है कि राहुल की सदस्यता जाती है तो बडा मुद्दा बनेगा। कांग्रेस पूरे देश में न सिर्फ राहुल का भाषण सुनाएगी और उनके पूछे गए सवालों को लोगों के बीच लेकर जाएगी, जिससे गौतम अडानी के साथ प्रधानमंत्री के रिश्तों की और ज्यादा चर्चा होगी। भाजपा के रणनीतिकारों को यह अहसास भी है कि राहुल के ब्रिटेन में दिए गए बयानों के बरअक्स कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी के विभिन्न देशों में दिए गए उन भाषणों को भी जनता के बीच फिर से सुनाएगी, जिनमें उन्होंने विपक्षी दलों और पूर्व सरकारों की आलोचना की है। अगर सेना, हिंदू धर्म या देश से जुड़े किसी मसले पर किसी बयान को लेकर राहुल की सदस्यता जाती तो उसका अलग मामला था।
राहुल गांधी की सदस्यता अगर अडानी के नाम पर जाएगी तो राहुल के प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा होगी और यह बात स्थापित होगी कि प्रधानमंत्री के अडानी से गहरे रिश्ते हैं। ऐसे में विपक्ष के बीच राहुल का कद भी बढ़ेगा।
इसलिए भाजपा और सरकार की ओर से पोजिशनिंग भले ही जो की जाए, राहुल की सदस्यता छीनने का काम नहीं होगा। अगर उन्होंने वाकइ कोई आपत्तिजनक बात कहीं होती तो अब तक उनके ऊपर आपराधिक मामला दर्ज हो गया होता। इस सिलसिले में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि ब्रिटेन में भी राहुल गांधी सांसद तो थे लेकिन वहां उन्हें कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं था। संसद से बाहर कही गई किसी बात के लिए उन पर आपराधिक मुकदमा हो सकता है, जो नहीं हुआ है।
भाजपा एक अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिक वजह से भी राहुल की सदस्यता खत्म कराना नहीं चाहेगी। इससे पहले दो मौके ऐसे रहे हैं, जब लोकसभा के आम चुनाव से पहले उपचुनाव हुआ और उससे सत्ता विरोध की हवा बनी। 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर सीट पर उपचुनाव हुआ था, जिसमें शरद यादव को संयुक्त विपक्ष की ओर से जनता उम्मीदवार के तौर मैदान में उतारा गया था और वे जीते थे। उसके बाद ही बाद ही केंद्र की सत्ता से कांग्रेस और उस समय की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी के बाहर होने की उलटी गिनती शुरू हुई थी। इसी तरह 1987 में उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद का उपचुनाव हुआ था, जिसमें विश्वनाथ प्रताप सिंह जीते थे और उसके बाद भारत के इतिहास की सबसे बड़े बहुमत वाली सरकार की उलटी गिनती शुरू हुई थी। यह इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है और भाजपा नेता इसे जानते हैं, इसलिए वे राहुल की सदस्यता समाप्त कर उन्हें उपचुनाव लड़ने का मौका नहीं देंगे।