Jammu Kahmir Statehood and Buz in Delhi: दिल्ली में जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने को लेकर चर्चा और हलचल तेज है। पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की है। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला निराश हैं। ऐसा क्यों हैः
उमर अब्दुल्लाह और अमित शाह की बैठक का फाइल फोटो
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली को लेकर एक बार फिर चर्चा जोर पकड़ रही है। दिल्ली में सोमवार को इस पर काफी गहमागहमी रही। पीएम मोदी और अमित शाह की रविवार को राष्ट्रपति से मुलाकात की तो इस चर्चा को और बल मिला। हाल के दिनों में केंद्र सरकार और स्थानीय नेताओं के बीच हुई बैठकों ने इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला इस मामले में ज्यादा आशावादी नहीं दिख रहे। आखिर क्यों? इसे समझने की जरूरत है।
5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित कर दिया था। इस फैसले के बाद से ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग लगातार उठ रही है। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और इसके नेता उमर अब्दुल्ला इस मुद्दे को बार-बार उठाते रहे हैं। एनसी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भी इस वादे को प्रमुखता दी थी, और 2024 के विधानसभा चुनाव में जनता ने इसे समर्थन भी दिया।
सरकारी अधिकारी और सत्तारूढ़ बीजेपी के पदाधिकारी इन बैठकों के बारे में चुप्पी साधे हुए हैं। पीएम मोदी और अमित शाह की राष्ट्रपति से, फिर अमित शाह की सोमवार को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, खुफिया ब्यूरो प्रमुख तपन कुमार डेका और गृह सचिव गोविंद मोहन के साथ हुई बैठक भी शामिल है।
उमर अब्दुल्ला निराश
इस सबके बावजूद, उमर अब्दुल्ला का रुख इस मामले में निराशावादी है। 4 अगस्त सोमवार को अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने कहा, "मैंने जम्मू-कश्मीर में कल क्या होने की उम्मीद है, इसके बारे में हर तरह की बातें सुनी हैं, लेकिन मैं स्पष्ट कहता हूं कि कल कुछ नहीं होगा—न तो कुछ बुरा होगा, न ही कुछ पॉजिटिव।" उनकी यह टिप्पणी उन अटकलों के जवाब में थी, जो पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली को लेकर चल रही हैं।
उमर अब्दुल्ला ने कई मौकों पर कहा है कि पूर्ण राज्य का दर्जा जम्मू-कश्मीर के लोगों का संवैधानिक और राजनीतिक अधिकार है। उन्होंने इसे बार-बार केंद्र सरकार के समक्ष उठाया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनकी मुलाकातें शामिल हैं। उमर ने यह भी कहा कि अगर राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए विधानसभा भंग करनी पड़े, तो वह इसके लिए तैयार हैं, भले ही इसका मतलब उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ना हो।
उमर अब्दुल्ला की नाउम्मीदी की वजहें
केंद्र की अनिश्चितता: सरकार के विश्वस्त सूत्रों ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर में हाल के आतंकी हमलों और राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए पूर्ण राज्य का दर्जा देने का फैसला टाल दिया गया है। केंद्र सरकार का कहना है कि जब तक आतंकवाद पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता, तब तक पूर्ण राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है।
पिछले वादों का पूरा न होना: उमर अब्दुल्ला ने बार-बार कहा है कि केंद्र सरकार ने पहले भी कई बार पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। उन्होंने इसे "हाइब्रिड प्रणाली" कहकर खारिज किया और कहा कि यह जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए स्वीकार्य नहीं है।
राजनीतिक दबाव और अटकलें: उमर ने यह भी आरोप लगाया कि पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर कुछ खबरें जानबूझकर प्लांट की गई हैं ताकि विधायकों में डर पैदा किया जाए और वे अपनी पांच साल की सरकार को बचाने के लिए दबाव में आएं। उनका मानना है कि यह मांग जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए है, न कि विधायकों या सरकार के लिए।
केंद्र शासित प्रदेश की सीमाएं: जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण सत्ता की असली चाबी उपराज्यपाल के पास है। उमर ने पहले कहा था कि वह ऐसी स्थिति में खुद को नहीं देख सकते जहां उन्हें छोटे-छोटे फैसलों के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी पड़े। यह स्थिति उनके लिए निराशाजनक हो सकती है, क्योंकि पूर्ण राज्य का दर्जा न मिलने से उनकी सरकार की शक्तियां सीमित रहेंगी।
उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट किया है कि वह पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग को लेकर पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने केंद्र के साथ टकराव के बजाय समन्वय का रास्ता चुना है, क्योंकि उनका मानना है कि टकराव से जम्मू-कश्मीर के लोगों की समस्याएं हल नहीं होंगी। वह चाहते हैं कि केंद्र सरकार अपने वादे को जल्द पूरा करे, क्योंकि परिसीमन और चुनाव के बाद अब केवल पूर्ण राज्य का दर्जा देना बाकी है।
हालांकि, केंद्र सरकार की ओर से अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। उमर अब्दुल्ला की निराशा इस बात का संकेत है कि वह इस मुद्दे पर लंबे समय से चल रही अनिश्चितता और देरी से थक चुके हैं। फिर भी, उनकी सरकार इस मांग को लेकर लगातार दबाव बनाए हुए है, और भविष्य में होने वाली बैठकों से इस मुद्दे पर कोई अच्छा नतीजा निकल सकता है।
जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा है। उमर अब्दुल्ला और उनकी सरकार इसे लेकर प्रतिबद्ध हैं, लेकिन केंद्र सरकार की अनिश्चितता और क्षेत्र में चल रही सुरक्षा चुनौतियां इस रास्ते में बाधा बन रही हैं। उमर की निराशा उनके इस विश्वास को दर्शाती है कि बार-बार किए गए वादों के बावजूद केंद्र सरकार इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठा रही। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जम्मू-कश्मीर को उसका पूर्ण राज्य का दर्जा मिल पाता है, या यह मांग केवल चर्चाओं तक ही सीमित रह जाएगी।