क्या मोदी सरकार के तीन नए विधेयकों से बीजेपी के ही सहयोगी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू डरे हुए हैं? कम से कम शिवसेना यूबीटी के सांसद संजय राउत ने बुधवार को तो यही आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया कि केंद्र ने संसद में नए विधेयकों को पेश किया है ताकि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए से समर्थन वापस लेने से रोका जा सके। राउत ने कहा कि ये विधेयक विशेष रूप से नीतीश और नायडू को डराने के लिए लाए गए हैं। इन विधेयकों में गंभीर आपराधिक आरोपों में 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य- केंद्र शासित प्रदेश के मंत्रियों को हटाने के प्रावधान हैं।

संजय राउत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, 'मोदी-शाह ने संसद में एक विधेयक पेश किया है, जिसके तहत मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को गिरफ्तार कर उनकी कुर्सी छीनी जा सकती है। नायडू और नीतीश इस विधेयक से कथित तौर पर सबसे ज्यादा डरे हुए हैं। मोदी सरकार को डर है कि ये दोनों नेता अपना समर्थन वापस ले सकते हैं।'
राउत ने यह भी संकेत दिया कि यह विधेयक केंद्र की रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य एनडीए के प्रमुख सहयोगियों को गठबंधन में बनाए रखना है।

राउत के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने यह दावा तब किया, जब गृहमंत्री अमित शाह द्वारा लोकसभा में तीन विधेयकों को पेश किया गया, जिनमें से एक में संवैधानिक संशोधन के तहत गंभीर आपराधिक मामलों में शामिल नेताओं को हटाने का प्रावधान है। इन विधेयकों पर चर्चा के दौरान विपक्षी सांसदों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कुछ ने विधेयक की प्रतियां फाड़कर शाह की ओर फेंकी, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।

विधेयकों में क्या है?

केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए इन विधेयकों में 130वां संवैधानिक संशोधन विधेयक शामिल है, जो गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार नेताओं को उनके पद से हटाने की व्यवस्था करता है। यदि कोई प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या राज्य/केंद्र शासित प्रदेश का मंत्री 30 दिनों से अधिक समय तक हिरासत में रहता है, तो उसे अपने पद से हटाया जा सकता है। बीजेपी नेताओं ने इसे राजनीति में नैतिकता लाने का प्रयास बताया, लेकिन विपक्ष ने इसे संवैधानिक लोकतंत्र के खिलाफ एक कदम करार दिया।

शाह की गिरफ़्तारी का सवाल उठा

विपक्षी सांसद के.सी. वेणुगोपाल ने इस विधेयक पर सवाल उठाते हुए गृहमंत्री शाह से पूछा कि जब वह गुजरात के गृहमंत्री थे और उनकी गिरफ्तारी हुई थी, तब क्या उन्होंने नैतिकता का पालन किया था? इसके जवाब में शाह ने कहा कि उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे और उन्होंने गिरफ्तारी से पहले ही नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक अदालत ने उन्हें निर्दोष घोषित नहीं किया, उन्होंने कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया।

नीतीश और नायडू की स्थिति

नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू एनडीए के प्रमुख सहयोगी हैं, जिनके समर्थन के बिना बीजेपी को केंद्र में सरकार बनाना मुश्किल हो सकता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 240 सीटें मिलीं, जो बहुमत के लिए ज़रूरी 272 से कम थीं। नायडू की टीडीपी ने आंध्र प्रदेश में 16 सीटें और नीतीश के जेडीयू ने बिहार में 12 सीटें जीतीं, जिससे एनडीए को 293 सीटों के साथ बहुमत हासिल हुआ।

राउत का दावा है कि ये विधेयक नीतीश और नायडू को डराने के लिए लाए गए हैं, क्योंकि दोनों नेताओं का बीजेपी के साथ पहले भी तनावपूर्ण रिश्ता रहा है। नायडू 2018 में विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर एनडीए से अलग हो गए थे और 2023 में कथित भ्रष्टाचार के मामले में उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। 

नीतीश कुमार ने 2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी का पीएम उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में एनडीए छोड़ दिया था, हालांकि वह 2024 में फिर से गठबंधन में शामिल हो गए।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश और नायडू की स्थिति एनडीए में महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीजेपी उनकी सहायता के बिना सरकार नहीं चला सकती। नायडू और नीतीश दोनों ने अतीत में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ा है और उनकी लचीली राजनीति को देखते हुए विपक्ष को लगता है कि सही समय पर ये दोनों नेता गठबंधन बदल सकते हैं। राउत का यह बयान उस समय आया है, जब हाल ही में वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर भी नीतीश और नायडू ने बीजेपी का विरोध करने का संकेत दिया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष ने दावा किया था कि दोनों नेताओं ने इस विधेयक का विरोध करने का आश्वासन दिया है।

विपक्ष की रणनीति 

राउत के बयान को विपक्ष की उस रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वह नीतीश और नायडू को एनडीए से अलग करने की कोशिश कर रहा है। 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद जब बीजेपी बहुमत से दूर रही, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने नीतीश और नायडू से संपर्क करने की कोशिश की थी। हालांकि, टीडीपी और जेडीयू ने स्पष्ट किया कि वे एनडीए के साथ बने रहेंगे। फिर भी, राउत ने पहले भी नीतीश और नायडू को 'असंतुष्ट आत्माएं' करार दिया था, खासकर मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे के बाद, जब जेडीयू को पंचायती राज और मत्स्य पालन जैसे मंत्रालय मिले, और टीडीपी को केवल नागरिक उड्डयन मंत्रालय दिया गया।
नीतीश और नायडू की प्रतिक्रिया अभी सामने नहीं आई है, लेकिन यह मामला भारतीय राजनीति में गठबंधन की गतिशीलता और केंद्र-राज्य संबंधों पर नई बहस छेड़ सकता है। आने वाले दिनों में यह पता चलेगा कि क्या नीतीश और नायडू इस विधेयक पर खुलकर अपनी राय रखते हैं?