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घोसी से भाजपा के पराजित प्रत्याशी दारा सिंह चौहान

घोसी का नतीजाः बीजेपी संभल जाये जनता को दल बदलू पसंद नहीं! 

कहने को उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा का उपचुनाव एक साधारण उपचुनाव है लेकिन महाबली योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री पद पर होते हुए इस उपचुनाव में भाजपा की पराजय भाजपा के बुलडोजर राज के खिलाफ खतरे की घंटी से कम नहीं है । घोसी में भाजपा के दारा सिंह को समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने एक अप्रत्याशित अंतर [ 42 हजार ] से पराजित किया है। घोसी में दारा सिंह की हार भाजपा की हार और समाजवादी पार्टी की जीत भर  नहीं है, बल्कि इसके अनेक मायने हैं।

 देश में जब जी-20 का सम्मेलन हो रहा हो तब इस तरह के नतीजे सत्तारूढ़ भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है । मै अगर अमित शाह की जगह होता तो उप चुनाव परिणामों की घोषणा कम से कम तीन दिन के लिये रुकवा देता । सरकार जब दिल्ली के एक बड़े हिस्से को तीन दिन के लिए बंद कर सकती है । 300 से ज्यादा रेलें स्थगित कर सकती है तो उप चुनावों के परिणाम भी रोक सकती है। लेकिन भाजपा ऐसा करने से चूक गयी और उसे दुनिया के 20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सामने शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी को भी राजनीतिक सौजन्य निभाते हुए इस मौके पर जीत का जश्न नहीं मनाना चाहिए था। 

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हालाँकि भाजपा ने पिछले एक दशक में राजनीति से सौजन्य को उसी तरह गायब कर दिया है जैसे कहावतों में गधे के सर सींगों का गायब होना कहा जाता ह। मै आज परिहास के मूड में बिलकुल नहीं हू। मुझे भाजपा की एक पिद्दी से उप चुनाव में पराजय पच नहीं रही। योगी जी की साधना में ये एक बट्टा है। घोसी में हालांकि समाजवादी पार्टी ने अपने ही पुराने बाग़ी नेता को हराया है लेकिन उसके गले में दुपट्टा अब भाजपा का था। जाती तौर पर मेरा मानना है कि घोसी की जनता ने दारा सिंह को पराजित कर दल-बदल को हतोत्साहित करने का प्रयास किया है, इसके लिए घोषी की जनता को बधाई दी जानी चाहिए। घोसी की जनता ने घाट घाट का पानी पिया है । घोसी की जनता ने वामपंथियों, कांग्रेस, जनता पार्टी, लोक दल, जनता दल, बसपा, सपा और भाजपा सभी को आजमाया है। सभी को सेवा का मौक़ा भी दिया और खारिज भी किया इसलिए उप चुनाव में जो नतीजे आये हैं वे घोसी के स्वभाव से मेल खाते हैं। 

घोसी के चुनाव परिणामों को अगर भात की हांडी का एक चावल मान लिया जाये तो मामला गंभीर हो जाता है क्योंकि इस उप चुनाव में इंडिया का वोट प्रतिशत बढ़कर 57 फीसदी से ज्यादा हो गया है और भाजपा का वोट प्रतिशत घटकर 37 से भी नीचे चला गया है। ये सब तब हुआ है जब देश और दुनिया में भाजपा की घण्टाध्वनि गूँज रही है और अयोध्या में भव्य-दिव्य रामलला मंदिर के उद्घाटन की तैयारियां चल रहीं हैं। घोसी का जनादेश हालांकि नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसा है लेकिन आशंका ये है कि आने वाले दिनों में यदि पूरे उत्तरप्रदेश की जनता ने भी घोसी का ही अनुशरण किया तो भाजपा और दादा योगी आदित्यनाथ की अखंड सत्ता का क्या होगा ?

प्रधानमंत्री मोदी जी के तीसरे टर्म में प्रधानमंत्री बनने के सपने का क्या होगा ? दरअसल राजनीति अब सपनों का ही तो खेल बन गयी है। राजनीति में लोग सपने देखते हैं, नेता सपने दिखाते हैं और खुद भी सपने संजोते है। ये सपने चाहे अच्छे दिनों के हों, चाहे तीसरी बार प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनने के हों। उत्तरप्रदेश देश की राजनीति में हमेशा से निर्णायक रहा है । उत्तर प्रदेश ने प्रधानमंत्री मोदी को गुजरात छोड़ने पर विवश किया। वे साबरमती की गोदी छोड़कर गंगापुत्र बन गए। उन्होंने एक प्रधानमंत्री के रूप में दुनिया भर में देश के साथ ही उत्तरप्रदेश का भी डंका बजाया है। घोसी का नतीजा इस सबको चुनौती देता प्रतीत होता है । 

सियासत की दृष्टि से देखें तो घोसी ने समाजवादी पार्टी को प्राणवायु दी है। बहुजन समाज पार्टी की जान सांसत में डाल दी है। बहुजन समाज पार्टी इस समय भयभीत और भ्रमित पार्टी है ।


देश की सियासत जब दो ध्रुवों में बाँट चुकी है तब बहुजन समाज पार्टी अपना अलग राग अलाप रही है । बसपा ने अपने आपको किसी भी गठबंधन से नहीं जोड़ने का ऐलान किया है। मुमकिन है की उत्तरप्रदेष के मुख्यमंत्री के आम चुनाव में योगी जी भाजपा के लिए आकाश कुसुम तोड़कर लाने वाले नहीं हैं। उनका आभामंडल टूट चुका ह। यूपी की जनता के दिल से बुलडोजर विधान का भय शायद निकल रहा है । 

राज्य की जनता राम लाला के भव्य-दिव्य मंदिर में दर्शन करने अवश्य जाएगी लेकिन वोट रामभक्तों की पार्टी को शायद न दे। इसलिए भाजपा के लिए घोसी हर तरह से खतरे की घंटी है।


मुझे लगता है कि मोदी-शाह की जोड़ी को अब मध्यप्रदेश की ही तरह उत्तरप्रदेश की राजनीति को अपने हाथ में लेना पडेगा अन्यथा भाजपा का शीराजा पूरी तरह से बिखर सकता है। आम तौर पर उप चुनावों में सत्तारूढ़ दल को ही विजय मिलती आयी है । उप चुनाव में किसी सत्तारूढ़ पार्टी की हार को अपवाद माना जाता है। मै भी घोसी में भाजपा की पराजय को अपवाद ही मानता हूँ। मुमकिन है कि भाजपा इस दुःस्वप्न से बाहर भी आ जाए और मुमकिन है कि भाजपा इस हार से भीतर ही भीतर और भयभीत हो जाये, ये राज्य के नेतृत्व पर निर्भर करता है कि वो घोसी के उद्घोष को किस तरीके से लेता है। 

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मै ये भी मानता हूँ कि घोसी पूरा उत्तरप्रदेश नहीं है किन्तु ये भी सच है कि घोसी उत्तर प्रदेश की सियासी रगों में बह रहे द्रव्य में परिवर्तन का एक चिन्ह भी है। घोसी के नतीजों ने बता दिया है कि जनता एक तरफ न तो दलबदलुओं को स्वीकार करेगी । न किसी जाति आधारित दल की राजनीति करने वाले की सुनेगी । वो उसी को चुनेगी जो कि चुनने लायक है। दल कोई भी हो सकता है । समाजवादी पार्टी ने चूंकि सत्तारूढ़ भाजपा के सामने अभी तक घुटने नहीं टेके हैं इसलिए जनता का सद्भाव समाजवादी पार्टी की और है । घोसी के चुनाव परिणाम मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में काम करने वाले समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी ताकत दे सकते हैं। इसलिए मध्य्प्रदेश की भाजपा को भी सतर्क रहना चाहिए क्योंकि वैसे भी मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी लहर का सामना कर रही है 

(राकेश अचल के फेसबुक पेज से)
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क़मर वहीद नक़वी
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