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धरने पर ममता, सीबीआई के बहाने मोदी के ख़िलाफ़ खोला मोर्चा

राज्य सरकार को अस्थिर करने की साजिश रचने का आरोप केंद्र सरकार पर मढ़ते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रविवार शाम से ही धरने पर बैठी हुई हैं। दरअसल, उन्होंने सीबीआई के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कोलकाता पुलिस के प्रमुख राजीव कुमार से शारदा मामले में पूछताछ करने गई सीबीआई की घटना को केंद्र बनाम राज्य का मुद्दा बना दिया। उन्होंने संघीय ढाँचे पर चोट करने का आरोप भी मढ़ दिया है। वह इसी बहाने मोदी सरकार को घेरना और बीजेपी के ख़िलाफ़ पूरे राज्य में ज़बरदस्त माहौल बनाना चाहती हैं। इसके साथ ही ममता सीधे मोदी को चुनौती देकर प्रधानमंत्री के संवाभित उम्मीदवार के रूप में अपने दावे को भी मजबूत कर रही हैं। तृणमूल की नेता इस मौक़े का इस्तेमाल कर पूरे विपक्ष को एकजुट करने और अपने साथ जोड़ने की कोशिश में हैं। वह इसमें ज़बरदस्त रूप से कामयाब हो रही हैं। 

सीबीआई बहाना, मोदी पर निशाना

दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बहुत दिनों से जिस मौक़े की तलाश मे थीं, केंद्र सरकार ने उन्हें वह मौक़ा बैठे-बिठाए दे दिया। वह बीजेपी ही नहीं, सीधे मोदी को चुनौती देने वाले धाकड़ नेता के रूप में ख़ुद को पेश करने की जुगत में थीं। इसे बीते दिनों कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में हुई विशाल रैली से समझा जा सकता है, जिसमें 22 दलों के 25 नेताओं ने शिरकत की थी। उन्होंने विनम्रता से यह ज़रूर कहा कि प्रधानमंत्री का चुनाव बाद में कर लिया जाएगा, फ़िलहाल बीजेपी को हटाना सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए। पर उनका भाषण पूरी तरह मोदी पर ही टिका रहा। दूसरे नेताओं ने भी बारी-बारी से मोदी पर हमले किए और बनर्जी की बातों का समर्थन किया। 
रविवार को जब बग़ैर राज्य सरकार की अनुमति के कोलकाता पुलिस के प्रमुख से पूछताछ करने सीबीआई की टीम कोलकाता पहुँची तो ममता बनर्जी ने इस मुद्दे को लपक लिया। उन्होंने कहा कि यह मोदी-अमित शाह जोड़ी की साजिश है, जिसके तहत वे पश्चिम बंगाल सरकार को अस्थिर करना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री ने इस विवाद में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भी घसीट लिया और सीधे आरोप जड़ दिया कि वे मोदी-शाह से मिले हुए हैं और उनके आदेश पर ही सीबीआई की टीम कोलकाता पहुँची। उन्होंने कहा कि वह लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए कुछ भी करेंगी और तुरंत धरने पर बैठ गईं। शहर के बीचोबीच एसप्लानेड में उनके धरने के पास ही उनका अस्थायी दफ़्तर भी खोल दिया गया और उन्होंने एलान कर दिया कि वह यहीं बैठे-बैठे दफ़्तर के कामकाज भी सलटाती  रहेगी। उन्होंने प्रधानमंत्री पर तमाम संस्थानों को नष्ट करने का आरोप भी मढ़ दिया। 

केशरीनाथ का डर?

उनके धरने पर बैठने के थोड़ी देर बाद ही यह अफ़वाह पूरे शहर में बिजली की तरह फैल गई कि केंद्र सरकार राज्य सरकार को बर्ख़ास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहती हैं। यह साफ़ है कि केंद्र  सरकार चुनाव के पहले ऐसा नहीं कर सकती। पर यह ध्यान देने लायक बात है कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी हैं। यह वही त्रिपाठी हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष के रूप में बीजेपी को भरपूरी मदद की थी। उन्होंने बहुजन समाज पार्टी से इस्तीफ़ा देकर बाहर निकले लोगों को दल-बदल निरोधक क़ानून की ज़द में आने से बचाने की भरपूर कोशिश की थी और काफ़ी बदनाम भी हुए थे। लोगों के बीच यह बात फैल गई कि राज्यपाल केंद्र सरकार के कहने पर ऐसा कर दें तो कोई ताज्जुब की बात नही। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल की भूमिका लोगों को याद ही है। 
लेकिन सबसे ख़तरनाक बात तो यह है कि केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने की माँग कर डाली। सुप्रीयो राज्य से बीजेपी के सांसद ही नहीं, मोदी सरकार में भारी उद्योगों के राज्य मंत्री हैं। राष्ट्रपति शासन केंद्र सरकार की सिफ़ारिश पर ही लगाया जाता है और केंद्र सरकार के मंत्री यदि इसकी माँग करें तो इसकी संभावना से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता है। बीजेपी भी इस मद्दे पर मोदी सरकार के साथ है। यह इससे साफ़ होता है कि राज्यसभा सदस्य और पार्टी प्रवक्ता राकेश सिन्हा कहा कि पश्चिम बंगाल तेज़ी से राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है। 
इसके बाद यह कहा जाने लगा कि राज्यपाल पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के बीजेपी की माँग पर विचार कर सकते हैं। वे इस मुद्दे पर सोच विचार कर ही कोई फ़ैसला लेंगे। 
पर्यवेक्षकों का कहना है कि फ़िलहाल राष्ट्रपति शासन लागू करना बीजेपी के लिए आत्मघाती कदम होगा। मोदी सरकार ऐसा कर विपक्ष को एकजुट होने और पूरे देश में उस पर हमले करने का सुनहरा मौका देने की बेवकूफ़ी नहीं करेगी।
लेकिन ममता बनर्जी की रणनीति अभी से रंग ला रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने उनसे फ़ोन पर बात की और ट्वीट कर उनके प्रति एकजुटता प्रकट की। उन्होंने कहा पश्चिम बंगाल की घटना बीजेपी और मोदी की ओर से देश की तमाम संस्थानों पर हो रहे हमलों का एक हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि पूरा विपक्ष एकजुट है और इन फ़ासिस्ट ताक़तों को हराएगा। 
लगभग पूरा विपक्ष ममता बनर्जी के साथ खड़ा हो गया है। समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने उनका समर्थन करते हुए ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि बीजेपी और मोदी किसी भी सूरत में सत्ता में बने रहना चाहते हैं। यादव के मुताबिक़, मोदी इतना डर गए हैं कि विपक्ष को परेशान करने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने इसे अलोकतांत्रिक और संविधान की मूल आत्मा के ख़िलाफ़ क़रार दिया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ममता का साथ दिया है। 
राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर ममता का समर्थन ही नहीं किया, वह सोमवार को कोलकाता जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीजेपी विपक्ष ही नहीं, भारतीय प्रशासनिक सेवा और पुलिस के ख़िलाफ़ अपने घिनौने अजेंडे को आगे बढ़ा रही है।
पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच. डी. देवगौड़ा ने पश्चिम बंगाल की मौजूदा स्थिति की तुलना इमर्जेंसी से कर दी। उन्होंने कहा कि पुलिस कमिश्ननर को गिरफ़्तार करने के लिए सीबीआई की टीम के जाने और पश्चिम बंगाल के घटनाक्रम से वह सकते में हैं। उन्होंने याद दिलाया कि देश इमर्जेसीं के दौरान इस तरह के असंवैधानिक तरीकों को झेल चुका है।  
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी ममता के साथ हैं और उन्होंने भी संघीय ढाँचे पर चोट करने और केंद्रीय एजेन्सियों के दुरुपयोग करने के आरोप नरेंद्र मोदी पर मढ़ दिए। उन्होंने कहा कि यह चौंकाने वाली बात है कि मोदी को देश की संवैधानिक संस्थानों का जरा भी लिहाज नहीं है। 
दिलचस्प यह है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब्दुल्ला की विरोधी महबूबा मुफ़्ती ने भी ममता बनर्जी का समर्थन किया है। उनकी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी कुछ दिन पहले तक बीजेपी अगुआई वाले गठबंधन एनडीए के साथ थी और राज्य में साझा सरकार चला रही थी।
ख़ुद मुफ़्ती मुख्यमंत्री थीं। बाद में राज्यपाल ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था। उनका समर्थन यह दिखाता है कि किस बीजेपी के साथ रहे दल भी तृणमूल सुप्रीमो के साथ खड़ी हैं। 
डीएमके नेता एम. स्टालिन ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री का समर्थन ही नहीं किया, उन्होंने बीजेपी सरकार को फ़ासिस्ट क़रार दिया। 
ये सारे वे नेता हैं, जो 19 जनवरी की रैली में मौजूद थे। वे एक बार फिर एकजुट हो कर ममता बनर्जी के साथ खड़े हैं। इससे सीधे फ़ायदा तृणमूल सुप्रीमो को है। इससे प्रधानमंत्री पद के लिए उनका दावा मजबूत होगा। वह विपक्षी एकता की धुरी बन कर उभर सकती हैं। उन्होंने धरने पर बैठने के बाद कहा, 'मेरे पास जानकारी है कि 19  जनवरी की रैली के बाद ही मोदी ने सीबीआई से कहा कि वह मेरे ख़िलाफ़ कुछ करे। वह विपक्षी एकता देख डरे हुए हैं।' 
अजित डोभाल अपने बेटे की वजह से विवादों के घेरे में हैं। ममता बनर्जी ने भ्रष्टाचार से लड़ने की वजह से सीबीआई टीम को कोलकाता भेजने के दावे की हवा निकालने के लिए उन्हें भी लपेट लिया।
बनर्जी ने कहा, 'डोभाल तो सिर्फ़ विपक्ष को परेशान करने के नरेंद्र मोदी के आदेश का पालन कर रहे हैं। वे लोग ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि हम लगातार केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ें उठाते रहे हैं। संविधान पूरी तरह टूट चुका है।' 

'ममता का ड्रामा'

लेकिन वामपंथी दलों का रवैया इससे हट कर है। वे ममता बनर्जी का समर्थन नहीं कर रहे हैं। भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने इस ममता का 'ड्रामा' क़रार दिया है। उन्होंने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी की आपस में मिलीभगत है। उन्होंने ममता से सवाल पूछा कि गुजरात दंगों के बाद क्यों तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी का समर्थन किया था और पश्चिम बंगाल में उसके साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। 
इसकी वजह साफ़ है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम बिल्कुल एक-दूसरे के ख़िलाफ़ हैं। वे एक साथ चुनाव नहीं लड़ सकते। ऐसा हुआ तो दोनों ही दलों के कार्यकर्ता बेहद अपमानित महसूस करेंगे, क्योंकि दोनों दलों के बीच हिंसक झड़पों का इतिहास रहा है।
अगले लोकसभा चुनाव में सीपीएम भले ही गुुपचुप कुछ सीटों पर कुछ बात कर ले, प्रकट तौर पर वह तृणमूल का विरोध ही नहीं करेगी, ममता बनर्जी के ख़िलाफ़ मोर्चा भी खोलेगी। वह कई बार पहले भी कह चुकी है कि चुनाव के बाद की स्थिति में बेजीपी को रोकने के लिए ज़रूरत पड़ने पर वह कांग्रेस समेत किसी भी दल को समर्थन दे सकती है, पर चुनाव के पहले किसी तरह के गठबंंधन का हिस्सा नहीं बनेगी। येचुरी का बयान इसी परिप्रेक्ष्य में समझने की ज़रूरत है। सीपीएम बीजेपी और तृणमूल दोनों पर चोट करती रहेगी और अलग चुनाव लड़ेगी। 
ममता बनर्जी ज़मीन से जुड़ी नेता मानी जाती हैं और वे धरना प्रदर्शन की राजनीति के लिए ही जानी जाती हैं। वे 2012 में सिंगुर आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या पर 16 दिनों तक धरने पर बैठी रही थीं। एक बार फिर वह धरने पर हैं। उनके साथ पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता भी मौजूद हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी
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