loader
एमपी के मनोनीत मुख्यमंत्री मोहन यादव

मोदी के मोहनः यूपी-बिहार की राजनीति प्रभावित करेंगे, सुल्तानपुर से रिश्ता क्या है?

छत्तीसगढ़ के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा आलाकमान (मोदी-अमित शाह) की सधी हुई रणनीति ने उत्तर भारत के खांटी हिन्दी बेल्ट यूपी-बिहार की ओबीसी राजनीति में हलचल मचा दी। राजनीतिक पंडितों को इसका राजनीतिक अर्थ समझने में रत्ती भर देर नहीं लगी कि मोहन यादव का चयन यूपी-बिहार की ओबीसी राजनीति को प्रभावित करने के लिए हुआ है। खासकर जहां अखिलेश यादव और लालू-तेजस्वी यादव के राजनीतिक वर्चस्व का बोलबाला है। वैसे भी जब यूपी-बिहार से दिल्ली में प्रधानमंंत्री की कुर्सी तय होती हो तो भाजपा मौके को क्यों नहीं भुनाएगी।

भाजपा आलाकमान पूरी तरह से डेटा आधारित पॉलिटिक्स कर रहा है। यानी उसकी मेज पर जो डेटा है, वही उसकी राजनीति को नई शक्ल दे रहा है। यूपी-बिहार की 120 लोकसभा सीटें यादव बहुल हैं। मोहन यादव का झटका इन सभी सीटों पर महसूस किया जाएगा। बस चंद महीने की बात है।


हिन्दी बेल्ट की राजनीति में रिश्तेदारी, गांव से रिश्ता, इलाके से परिचय का बहुत महत्व है। मोहन यादव की पत्नी सीमा का संबंध उत्तर प्रदेश से हैं। मोहन यादव अगस्त 2022 में सुल्तानपुर में अपने 96 वर्षीय बीमार ससुर ब्रह्मदीन यादव से मिलने के लिए अपनी पत्नी के साथ यूपी आए थे। मोहन की खबर सुल्तानपुर के लिए खुशी का पैगाम थी। मोहन यादव के ससुराल वाले अचानक ही यूपी और एमपी के विकास की बात करने लगे, टीवी चैनलों को बाइट देने लगे। 

 
ताजा ख़बरें
यूपी में विधानसभा चुनाव 2022 में हुए थे। उस चुनाव के बाद सीएसडीएस-लोकनीति ने चुनाव नतीजों के बारे में आंकड़े जारी किए थे, जिसमें बताया गया था कि किस जाति ने कितने फीसदी वोट भाजपा को दिया है। यहां सिर्फ यादव राजनीति की बात हो रही है तो यह जानना जरूरी है कि यादव आधारित पार्टी मानी जाने वाली सपा के मुकाबले भाजपा को कितने फीसदी वोट मिले। सीएसडीएस-लोकनीति के मुताबिक 2017 में करीब 10 फीसदी यादवों ने यूपी में भाजपा को वोट दिया था। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में करीब 12 फीसदी यादवों ने भाजपा को वोट दिया। लेकिन भाजपा यूपी में अखिलेश यादव की यादव राजनीति को पूरी तरह तहस-नहस करना चाहती है। 

सपा और मुलायम खानदान दरअसल यादव-मुस्लिम वोटों के दम पर ही अपनी राजनीति करता रहा है। लेकिन भाजपा ने जिस तरह पिछले दो विधानसभा चुनावों में यादव वोटों में सेंध लगाई है और मुसलमान भी सपा से दूर जा रहा है, उसका अंदाजा अभी अखिलेश को नहीं हुआ है। वो अपने अंदाज की राजनीति कर रहे हैं। उनके चाचा शिवपाल यादव अपनी यादव मंडलियों से इस संतुलन को कितना मजबूत कर पाएंगे, उसकी परीक्षा अगले चंद महीनों में होने वाली है।


अब मध्य प्रदेश के मनोनीत मुख्यमंत्री के यूपी में रिश्तेदारी के साथ ही भाजपा निश्चित रूप से सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले आक्रामक कदम उठाने की कोशिश करेगी। जहां भाजपा के मुकाबले समाजवादी पार्टी सबसे बड़ा विपक्ष है। भले ही वो विपक्ष के रूप में नजर नहीं आए।
यूपी को लेकर भाजपा आलाकमान अपनी रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है। अब तस्वीर साफ हो रही है। योगी जब दूसरी बार सीएम बने तो उन्होंने सिर्फ एक ही यादव को मंत्री पद दिया। गिरीश यादव अकेले मंत्री है। भाजपा में यूपी से दो विधायक, दो विधान परिषद सदस्य और दो ही राज्यसभा सांसद हैं। जबकि यूपी में ओबीसी के अंदर यादव सबसे बड़ा जातिगत हिस्सा है। इसलिए मोहन यादव के जरिए अब यूपी के यादवों को पूरे दम-खम के साथ भाजपा आलाकमान साधेगा। यह योगी आदित्यनाथ के बजाय भाजपा आलाकमान की रणनीति होगी।
यूपी में लगभग 9 फीसदी यादवों का इटावा, बदायूँ, मैनपुरी, फ़िरोज़ाबाद, फ़ैज़ाबाद, संत कबीर नगर, बलिया, जौनपुर और आज़मगढ़ सहित कई लोकसभा क्षेत्रों में जबरदस्त प्रभाव है। जून 2022 में आजमगढ़ सीट सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खाली की थी, उपचुनाव में भाजपा के दिनेश लाल यादव 'निरहाऊआ' ने आज़मगढ़ सीट सपा से छीन ली। उस उपचुनाव में अखिलेश इतने आत्मविश्वास से भरे हुए थे कि वो आजमगढ़ प्रचार करने ही नहीं गए।
अखिलेश और कांग्रेस के रणनीतिकारों को अब समझ में आ रहा होगा कि 2022 का यूपी में चुनाव जीतते ही पीएम मोदी यूपी में यादव पॉलिटिक्स में क्यों कूदे। किसी का ध्यान तब नहीं गया जब पीएम मोदी ने पूर्व सांसद चौधरी हरमोहन सिंह यादव की 10 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर एक कार्यक्रम को संबोधित किया था। चौधरी हरमोहन मुलायम सिंह यादव के सहयोगी रहे थे। हरमोहन ने ही यादव महासभा बनाई थी। उनके पोते मोहित यादव अब भाजपा में हैं। पीएम मोदी की यह सारी राजनीति यूपी में योगी की राजनीति से अलग है।
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा मुलायम की बहू अपर्णा यादव को अपने खेमें लाई थी। हालांकि भाजपा में आने के बावजूद वो अभी तक अपने लिए कोई जगह नहीं बना पाईं लेकिन भाजपा ने अपने तरकश में मुलायम परिवार से एक तीर तो रखा ही हुआ है।

राजनीति से और खबरें
बिहार में भी लालू-तेजस्वी यादव की आरजेडी यादवों पर छाई हुई है। वो जेडीयू के मुकाबले ज्यादा प्रभावशाली है। मोहन यादव की छवि का प्रचार बिहार में भी होगा। कहीं न कहीं से कोई रिश्तेदारी भी वहां तलाश ली जाएगी। इस तरह मोहन यादव को लेकर भाजपा आलाकमान का गेम प्लान बहुत साफ है। ओबीसी राजनीति का आधार भी यूपी-बिहार ही हैं। इसलिए मोहन यादव का चयन इस राजनीति को कुंद करने के लिए किया गया है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

राजनीति से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें