आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के 75वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखे गए तारीफ़ वाले लेख ने राजनीति में नया विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस ने इस लेख को 'संघ नेतृत्व को खुश करने की हताश कोशिश' करार देते हुए तीखा हमला बोला है। कांग्रेस का कहना है कि यह क़दम पीएम मोदी की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह आरएसएस के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करना चाहते हैं। खासकर तब जब भागवत ने हाल के महीनों में सरकार की नीतियों और कार्यशैली पर कथित तौर पर आलोचनात्मक टिप्पणियाँ की हैं।

पीएम मोदी की मोहन भागवत की तारीफ वाले लेख पर कांग्रेस ने इसे रिझाने का प्रयास बताया है। क्या यह भागवत की '75 साल पर रिटायरमेंट' वाली चुभती टिप्पणी का जवाब है, या मोदी का आरएसएस से पुराने संबंध को मज़बूत करने का मास्टरस्ट्रोक? 
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मोदी का लेख, भागवत की तारीफ

दरअसल, गुरुवार यानी 11 सितंबर को मोहन भागवत के 75वें जन्मदिन के अवसर पर पीएम मोदी ने एक लेख लिखा, जो विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ। इस लेख में मोदी ने भागवत को 'वसुधैव कुटुंबकम' के मंत्र से प्रेरित एक ऐसे नेता के रूप में पेश किया, जिन्होंने समता, समरसता और बंधुत्व की भावना को बढ़ावा दिया है। मोदी ने आरएसएस को विश्व का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन बताते हुए इसके स्वयंसेवकों की सेवा, समर्पण और अनुशासन की सराहना की। उन्होंने लिखा, 'आरएसएस के 100 वर्षों की राष्ट्रीय सेवा का इतिहास गौरवशाली है और भागवत जी का नेतृत्व इसकी नींव को और मजबूत करता है।'

भागवत की 'बौद्धिक समझ' और 'संवेदनशील नेतृत्व' की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि 2009 से आरएसएस प्रमुख के रूप में उनका कार्यकाल संघ की 100 साल की यात्रा में सबसे परिवर्तनकारी काल माना जाएगा। 

पीएम मोदी ने भागवत को लेकर कहा है कि वे 'वसुधैव कुटुम्बकम' के जीवंत उदाहरण हैं और उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक परिवर्तन और सद्भाव एवं बंधुत्व की भावना को मजबूत करने के लिए समर्पित कर दिया है।

कांग्रेस का तंज

कांग्रेस ने इस लेख को लेकर पीएम मोदी पर तीखा हमला बोला। पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने 'एक्स' पर पोस्ट करते हुए कहा, 'प्रधानमंत्री ने आरएसएस नेतृत्व को खुश करने की अपनी बेताब कोशिश में आज मोहन भागवत के 75वें जन्मदिन पर एक अतिशयोक्तिपूर्ण विशेष संदेश लिखा है।' 

रमेश ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी ने अपने लेख में 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण और 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमलों का जिक्र तो किया, लेकिन 11 सितंबर 1906 को महात्मा गांधी द्वारा जोहान्सबर्ग में सत्याग्रह के पहले आह्वान को नजरअंदाज कर दिया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, 'प्रधानमंत्री से सत्याग्रह की उत्पत्ति को याद करने की उम्मीद करना बहुत ज्यादा है, क्योंकि सत्य शब्द ही उनके लिए अपरिचित है।'

क्या है विवाद का आधार?

कांग्रेस का यह हमला उस संदर्भ में देखा जा रहा है, जिसमें मोहन भागवत ने हाल के महीनों में सरकार की नीतियों और नेतृत्व के तौर-तरीकों पर कथित तौर पर आलोचनात्मक टिप्पणियाँ की हैं। 

लोकसभा चुनाव के बाद टिप्पणियाँ

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद आरएसएस की ओर से कुछ बयान आए, जिन्हें सरकार की कार्यशैली की आलोचना के रूप में देखा गया। भागवत ने एक कार्यक्रम में कहा था कि 'संगठन को अहंकार से बचना चाहिए' और 'सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए।' इन बयानों को बीजेपी के अभियान और नेतृत्व पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी माना गया।
कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने लिखा, "आडवाणी जी 75 वर्ष की उम्र में: 'नियम तो नियम है, हट जाओ।' मुरली मनोहर जोशी जी 75 वर्ष की उम्र में: 'नियम तो नियम है, शालीनता से रिटायर हो जाओ।' मोहन भागवत जी 75 वर्ष की उम्र में: मोदी 'बुद्धि और विश्वास' पर कविता लिखते हैं।" 

उन्होंने आगे कहा, "तो प्रसिद्ध 75 वर्ष का रिटायरमेंट नियम कोई सिद्धांत नहीं, सिर्फ़ एक साधन है। इसे आडवाणी जी और जोशी जी पर लागू करें। इसे भागवत जी के लिए तोड़े मरोड़ें। इसे मोदी के लिए नज़रअंदाज़ करें। यह सम्मान नहीं, चाटुकारिता है। भागवत जी की प्रशंसा में एक लंबा निबंध मोदी की बीमा पॉलिसी के अलावा और कुछ नहीं है - नागपुर के लिए एक संदेश: '2025 में मुझ पर 75 मत लगाओ'। यह पाखंड अद्भुत है।"
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75 साल में रिटायरमेंट की टिप्पणी

9 जुलाई 2025 को नागपुर में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में भागवत ने कहा था कि 75 साल की उम्र में नेताओं को रुक जाना चाहिए और नए नेतृत्व के लिए रास्ता बनाना चाहिए। इस बयान को विपक्ष ने तुरंत लपक लिया, क्योंकि पीएम मोदी 17 सितंबर 2025 को 75 साल के हो रहे हैं और भागवत स्वयं 11 सितंबर को इस उम्र को पार कर चुके हैं। कांग्रेस ने इसे 'मोदी को रिटायर होने की सलाह' के रूप में पेश किया, जिससे सियासी हलचल मच गई।

'भगवान' वाली टिप्पणी

जुलाई 2024 में झारखंड में एक कार्यकर्ता बैठक में भागवत ने कहा था कि कुछ लोग सुपरमैन बनना चाहते हैं, फिर देवता और फिर भगवान, लेकिन प्रगति का कोई अंत नहीं है। जयराम रमेश ने इसे पीएम मोदी की उस टिप्पणी से जोड़ा, जिसमें उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि वह 'नॉन-बायोलॉजिकल' हैं। रमेश ने इसे 'नागपुर से लोक कल्याण मार्ग पर दागी गई अग्नि मिसाइल' करार दिया।

इन बयानों के कारण यह धारणा बनी कि भागवत और आरएसएस सरकार के कुछ फ़ैसलों से असंतुष्ट हैं और मोदी का यह लेख उस तनाव को कम करने की कोशिश हो सकता है।

कांग्रेस के आरोपों के मायने

कांग्रेस के इस हमले के कई सियासी मायने हैं। कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि मोदी और आरएसएस के बीच तनाव है और यह लेख उस तनाव को कम करने की कोशिश है। यह बीजेपी के कोर वोटरों में भ्रम पैदा करने की रणनीति हो सकती है, जो आरएसएस को वैचारिक आधार मानते हैं।

कांग्रेस ने यह भी कहा कि लाल किले से स्वतंत्रता दिवस पर आरएसएस की तारीफ करना संवैधानिक मूल्यों का अपमान है, क्योंकि आरएसएस ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया था। यह तर्क विपक्ष की उस रणनीति को दिखाता है, जिसमें वह आरएसएस और बीजेपी को संवैधानिक भावना के खिलाफ पेश करती है।
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क्या यह भागवत की आलोचनाओं का जवाब है?

हालाँकि भागवत की टिप्पणियों को सरकार की आलोचना के रूप में देखा गया है, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि ये बयान सामान्य संदर्भ में थे और इन्हें सीधे तौर पर मोदी या सरकार पर हमले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। आरएसएस और बीजेपी के बीच वैचारिक एकता बरकरार है और भागवत की टिप्पणियां संगठन के दूरदर्शी नज़रिए को दिखाती हैं, न कि व्यक्तिगत आलोचना। फिर भी कांग्रेस ने इन बयानों को अपने सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।

मोदी का लेख इस संदर्भ में एक रणनीतिक कदम हो सकता है, जिसका उद्देश्य आरएसएस के साथ संबंधों को मजबूत करना और संगठन के समर्थकों को यह संदेश देना है कि सरकार और आरएसएस एक ही दिशा में काम कर रहे हैं। यह खासकर तब अहम हो जाता है, जब 2024 के चुनाव परिणामों के बाद बीजेपी गठबंधन पर निर्भर हो गई है और आरएसएस का समर्थन संगठनात्मक और वैचारिक स्तर पर ज़रूरी है।