केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने फ़िल्म अभिनेता रजनीकांत के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की जैसे ही घोषणा की, बंगाल और असम में मतदान का लाइव दिखा रहे न्यूज़ चैनल और वहां मौजूद विश्लेषकों में दो खेमे बन गये। एक इस घोषणा को राजनीतिक बता रहा था तो दूसरा इस पर राजनीति नहीं करने की सलाह दे रहा था।
चुनावी चाल है रजनीकांत को ‘दादा साहेब फाल्के’?
- राजनीति
- |

- |
- 2 Apr, 2021


रजनीकांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के प्रशंसक रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का उन्होंने समर्थन किया था और मोदी सरकार को इस बात के लिए बधाई भी दी थी।
सबके सुर इस बात पर एक जैसे जरूर दिखे कि रजनीकांत को यह सम्मान मिलना ही चाहिए। सवाल सम्मान पर नहीं, सम्मान के राजनीतिक इस्तेमाल पर है और किसी हद तक यह सम्मान के अपमान से भी जुड़ा है। इसे समझना जरूरी है।
कोरोना ने अगर रजनीकांत को उनकी ढलती उम्र और उम्र पर हावी थकान का अहसास न कराया होता, तो रजनीकांत आज तमिलनाडु में वोट मांग रहे होते- अपनी उस पार्टी के लिए, जिसकी घोषणा से वे पीछे हट गये। राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि नयी पार्टी की घोषणा नहीं करने के पीछे बीजेपी-एआईएडीएमके गठबंधन है।




























