मंगलवार को संसद के उच्च सदन, राज्यसभा में अभूतपूर्व हंगामा हुआ। विवाद का मुख्य कारण केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) की कथित मौजूदगी थी, जिसे विपक्ष ने लोकतंत्र पर हमला करार दिया। सत्र के दौरान विपक्ष और सत्तारूढ़ एनडीए के बीच तीखी नोकझोंक और नारेबाजी हुई।  हालांकि, बीजेपी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि सदन में केवल मार्शल तैनात थे। लेकिन यह भेद जल्द ही खुल गया कि दरअसल सीआईएसएफ को बुलाया गया था।

सीआईएसएफ पर आपत्ति और हरिवंश की टिप्पणी 

हंगामा तब शुरू हुआ जब उपसभापति हरिवंश ने विपक्ष द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के एक पत्र को मीडिया में जारी करने की आलोचना की। उन्होंने कहा, “संवैधानिक पदाधिकारियों के बीच कम्युनिकेशन गोपनीय होना चाहिए।” दरअसल इसी पत्र में खड़गे ने सदन में सीआईएसएफ बुलाए जाने का मुद्दा उठाया था। हरिवंश नहीं चाहते थे कि खड़गे का पत्र सार्वजनिक हो। क्योंकि बीजेपी और सरकार लगातार खंडन कर रहे थे कि सीआईएसएफ को नहीं बुलाया गया। नीचे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का ट्वीट है, जिसमें पुष्टि की जा रही है कि सीआईएसएफ को बुलाया गया था। जयराम रमेश ने खड़गे का पत्र भी जारी कर दिया।

CISF बुलाने पर खड़गे का तीखा हमला 

विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार पर तीखा हमला बोला और CISF या अन्य अर्धसैनिक बलों को सदन में तैनात करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “यदि CISF या कोई अन्य अर्धसैनिक बल हमारी आवाज दबाने के लिए सदन में बुलाया गया है, तो यह अत्यंत आपत्तिजनक है और लोकतंत्र के मूल्यों का उल्लंघन करता है।” खड़गे ने जोर देकर कहा, “हम लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे हैं, यह हमारा अधिकार है।”
खड़गे ने पूर्व विपक्षी नेताओं अरुण जेटली और सुषमा स्वराज का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने भी सदन में व्यवधान को लोकतंत्र का हिस्सा माना था। “जब जेटली जी और सुषमा जी विपक्ष के नेता थे, उन्होंने स्पष्ट कहा था कि सदन में व्यवधान भी लोकतंत्र का हिस्सा है।”
केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने खड़गे के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सदन में कोई भी CISF कर्मी मौजूद नहीं था। “सिर्फ मार्शल थे। खड़गे जी को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उनका पत्र औपचारिक जवाब का इंतजार किए बिना प्रेस में क्यों लीक किया गया।” इस तरह बीजेपी का स्टैंड काबिलेगौर है। केंद्रीय मंत्री एक तरफ कह रहे हैं कि सदन में कोई सीआईएसएफकर्मी नहीं है। दूसरी तरफ उनको खड़गे के उस पत्र को लीक किए जाने पर आपत्ति थी, जिसमें खड़गे ने सीआईएसएफ को लेकर सवाल पूछे हैं। 

खड़गे ने इस पर एक तीखा तंज कसते हुए कहा, “क्या यह सदन उपसभापति चला रहे हैं या गृह मंत्री अमित शाह?” इस बयान ने सत्तारूढ़ बेंचों को और भड़का दिया।

जेपी नड्डा का पलटवार 

सदन के नेता जेपी नड्डा ने विपक्ष पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “सदन की कार्यवाही में व्यवधान डालना, किसी और के माइक से नारेबाजी करना और अपनी सीट छोड़ना, यह लोकतंत्र नहीं, अराजकता है। मैंने 40 साल विपक्ष में बिताए हैं। अगर आपको विरोध का सही तरीका सीखना है, तो मुझसे ट्यूशन लें।” नड्डा ने चेतावनी दी कि उनके दो कमेंट रिकॉर्ड में दर्ज होंगे और “हमेशा के लिए संदर्भ बने रहेंगे।” उन्होंने कहा कि असहमति एक अधिकार है, लेकिन दूसरे सदस्य के स्थान पर अतिक्रमण करना और नारेबाजी करना संसदीय नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।
विपक्ष की ओर से डीएमके सांसद तिरुचि सिवा ने एक ऐतिहासिक उदाहरण का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “संसद बहस का स्थान है, दमन का नहीं। मैं सदन को याद दिलाता हूं कि जब भगत सिंह ने केंद्रीय विधानसभा में बम फेंका था, तब अध्यक्ष विट्टलभाई पटेल ने गृह सदस्य को सुरक्षा बलों को हटाने या बाहर जाने को कहा था। यही संसदीय गरिमा है।”
राज्यसभा में मंगलवार का यह हंगामा संसद के भीतर बढ़ते राजनीतिक तनाव को बता रहा है। CISF की कथित मौजूदगी को लेकर विपक्ष का आक्रोश और सरकार का खंडन इस विवाद को और गहरा सकता है। लेकिन यह सवाल अभी भी बना हुआ कि आखिर उपसभापति ने सीआईएसएफ के बुलाने पर चुप्पी क्यों साध ली।