दरअसल, सबसे पहले पुरी और ज्योतिष पीठ उत्तराखंड के शंकराचार्यों ने खुलकर प्राण प्रतिष्ठा को लेकर राजनीति करने का आरोप राम मंदिर ट्रस्ट पर लगाया। दोनों शंकराचार्यों ने कहा कि समारोह को लेकर की जा रही राजनीति धर्माचार्यों का अपमान है। इसलिए उन्होंने 22 जनवरी को अयोध्या न जाने का फैसला किया है। इनके दो अन्य शंकराचार्यों ने आलोचना तो नहीं की लेकिन 22 जनवरी को अयोध्या जाने पर उन्होंने भी चुप्पी साध ली। विपक्ष का आरोप है कि पीएम मोदी के मुकाबले शंकराचार्यों के वहां जाने पर उन्हें ज्यादा महत्व मिलता इसलिए शंकराचार्यों को तमाम बहाने कर नहीं बुलाया गया।
कांग्रेस ने कहा था कि “2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए और भगवान राम का सम्मान करने वाले लाखों लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट रूप से आरएसएस/भाजपा कार्यक्रम के निमंत्रण को सम्मानपूर्वक अस्वीकार कर दिया है।”