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पंजाब में इस बार आसान नहीं है अकाली-बीजेपी की राह

पंजाब में इस बार सियासी फिजाएँ बदली हुई हैं। शिरोमणि अकाली दल (बादल) के दबदबे वाले इस प्रदेश में इस बार कांग्रेस पार्टी सत्ता पर क़ाबिज है।  कैप्टन अमरिंदर सिंह के सामने उनकी कैबिनेट के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बढ़ते क़द के बावजूद कांग्रेस पार्टी में कोई ख़ास गुटबाज़ी नहीं है। वहीं, दूसरी ओर न तो अकाली दल (बादल) में सबकुछ ठीक चल रहा है और न ही आम आदमी पार्टी में।
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यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस की नज़र लोकसभा चुनाव 2019 में भी बड़ी जीत हासिल करने पर है। अकाली दल (बादल) की कमान सुखबीर बादल के हाथों में आने के बाद बादल अपने कुनबे को अपने साथ लेकर चलने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं तो दूसरी ओर केजरीवाल की पार्टी में भी बग़ावत हो चुकी है।
एक समय ऐसा भी था जब पंजाब के ग्रामीण इलाक़ों में अकाली दल (बादल) का बोलबाला था तो शहरों में बीजेपी को समर्थन मिलता था लेकिन अब हालात बदल गये हैं और दोनों ही दलों के सामने कई चुनौतियाँ हैं।

बीजेपी ने पंजाब में अकाली दल (बादल) के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरने का फ़ैसला किया है। पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से अकाली दल 10 और बीजेपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 

पिछले लोकसभा चुनाव में भी पंजाब में अकाली दल (बादल) 10 और बीजेपी 3 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। तब अकाली दल (बादल) को 4 और बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन बाद  में गुरदासपुर लोकसभा सीट पर विनोद खन्ना के निधन के चलते हुए उपचुनाव में कांग्रेस को भारी जीत मिली व कांग्रेस के सुनील जाखड़ सांसद चुने गये। लिहाज़ा, मौजूदा समय में पंजाब में बीजेपी के पास मात्र एक ही सांसद है।

अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ भी पंजाब में लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है। बताया जा रहा है कि पंजाब में ‘आप’ और शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) का लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन हो गया है।

सूत्रों के मुताबिक़, अकाली दल (टकसाली) पंजाब की 3 से 4 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ सकती है जबकि आम आदमी पार्टी 9 से 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पंजाब में मतदान 19 मई को होगा व मतगणना 23 मई को होगी।  

पंजाब में विधानसभा की कुल 117 सीटें हैं। इनमें से कांग्रेस के पास 78, शिरोमणि अकाली दल (बादल) के पास 14, बीजेपी के पास 3, 'आप' के पास 20 और लोकसभा इंसाफ पार्टी के पास 2 सीटें हैं। 

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लोकसभा चुनाव के ख़ास मुद्दे 

लोकसभा चुनावों में मुद्दों की बात करें तो अकाली दल (बादल)की सरकार में 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान और इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की गोलीबारी, बादल परिवार व अकाली दल (बादल) के साथ-साथ बीजेपी के लिये भी सिरदर्द साबित होगा। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में 14 फ़रवरी को हुआ पुलवामा आतंकी हमला और जवाबी बालाकोट एयर स्ट्राइक की भी लोगों में चर्चा है। 

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करतारपुर कॉरिडोर से करतारपुर गुरुद्वारा (नारोवाल, पाकिस्तान) के साथ डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा (गुरदासपुर, भारत) को जोड़ने को लेकर कांग्रेस व अकाली दल (बादल) में श्रेय लेने की होड़ मची है।
कांग्रेस सरकार में सभी सीमांत किसानों को कर्ज में 2 लाख रुपये की छूट दी गई है और छोटे किसानों को दी गई छूट को सत्तारूढ़ दल चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। हालाँकि विपक्षी दल, अमरिंदर सरकार पर चुनावी वादों को पूरा न करने का आरोप लगा रहे हैं।

देखना होगा कि केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल इस बार बठिंडा या फिरोजपुर से टिकट मिलने की सूरत में तीसरी बार लोकसभा के लिये चुनी जाती हैं या नहीं। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते रवनीत सिंह बिट्टू पहली बार आनंदपुर साहिब से तो दूसरी बार लुधियाना से सांसद बन चुके हैं और उन्हें इस बार भी लुधियाना से कांग्रेस का टिकट मिलने की उम्मीद है। 

अकाली दल (बादल) के शेर सिंह घुबाया ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। वह दो बार फिरोजपुर लोकसभा सीट से सांसद बन चुके हैं। देखना होगा कि घुबाया तीसरी बार चुने जाते हैं या नहीं। 

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विजयेन्दर शर्मा
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