शुक्रवार सुबह राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक दिल दहला देने वाली घटना में पिपलोदी गांव के सरकारी प्राइमरी स्कूल की छत ढह गई, जिसमें कम से कम सात बच्चों की मौत हो गई और 17 अन्य घायल हो गए। इस हादसे में कई बच्चों के मलबे में फंसे होने की आशंका है। स्थानीय पुलिस और प्रशासन ने तत्काल बचाव कार्य शुरू कर दिया है।
यह घटना सुबह करीब 8:30 बजे उस समय हुई, जब स्कूल में बच्चे सुबह की प्रार्थना के लिए इकट्ठा हो रहे थे। पुलिस के अनुसार, मलबे में फंसे अधिकांश बच्चों को निकाल लिया गया है, लेकिन बचाव कार्य अभी भी जारी है। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, भारी बारिश के कारण स्कूल भवन की कमजोर संरचना इस हादसे का कारण बनी। स्थानीय ग्रामीणों और स्कूल कर्मचारियों ने तुरंत मलबे से बच्चों को निकालने में मदद की।
घायल बच्चों को तुरंत मनोहरथाना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) ले जाया गया, जहां पांच बच्चों को मृत घोषित कर दिया गया। आठ बच्चों की हालत गंभीर बताई जा रही है, जिन्हें झालावाड़ जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है। झालावाड़ के पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने बताया, "पांच बच्चों की मौत (बाद में दो और घायलों की भी मौत) हो चुकी है और 17 अन्य घायल हैं। दस बच्चों को झालावाड़ रेफर किया गया है, जिनमें से तीन से चार की हालत नाजुक है।"
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जिला प्रशासन, पुलिस और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे और राहत कार्यों में जुट गए। बचाव कार्य में जेसीबी मशीनों का उपयोग किया जा रहा है, और स्थानीय लोग भी बच्चों को बचाने में सक्रिय रूप से सहयोग कर रहे हैं।

सरकार का रुख और जांच के आदेश 

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, "झालावाड़ के पिपलोदी में स्कूल की छत गिरने से हुआ हादसा अत्यंत दुखद और हृदय विदारक है। संबंधित अधिकारियों को घायल बच्चों के उचित इलाज के लिए निर्देश दिए गए हैं।"
राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने इस घटना पर खेद जताया और कहा कि इसकी उच्च स्तरीय जांच की जाएगी। उन्होंने कहा, "यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। मैंने जिला कलेक्टर और शिक्षा अधिकारी को घायल बच्चों के इलाज की सभी व्यवस्थाएं करने के निर्देश दिए हैं। इस हादसे के कारणों की जांच के लिए आदेश जारी किए गए हैं।"
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस घटना पर दुख जताया और X पर लिखा, "मनोहरथाना, झालावाड़ में सरकारी स्कूल भवन ढहने की खबरें आ रही हैं, जिसमें कई बच्चे और शिक्षक घायल हुए हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि हानि कम से कम हो और घायल जल्द स्वस्थ हों।"

जर्जर भवनों पर सवाल 

स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि स्कूल भवन लंबे समय से जर्जर हालत में था और बार-बार शिकायतों के बावजूद इसकी मरम्मत या पुनर्निर्माण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया। इस घटना ने राजस्थान में सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति और बुनियादी ढांचे की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कई स्कूल भवन पुराने और कमजोर हैं, जिन्हें तत्काल मरम्मत या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है।
प्रशासन ने स्कूल परिसर में अन्य भवनों की संरचनात्मक स्थिरता की जांच शुरू कर दी है। साथ ही, इस हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करने की बात कही गई है। स्थानीय लोग इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए जिम्मेदारी तय करने और ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।
राजस्थान के कई स्कूल भवनों की हालत जर्जर है, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। कई स्कूलों में छतें टपकती हैं, दीवारों में दरारें हैं, और बुनियादी सुविधाओं जैसे शौचालय, पीने का पानी और बिजली का अभाव है। इससे बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षा पर बुरा असर पड़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है, जहां स्कूल भवन इतने कमजोर हैं कि वे कभी भी ढह सकते हैं। शिक्षकों और अभिभावकों ने कई बार शिकायत की, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। सरकार को चाहिए कि वह स्कूलों की मरम्मत और बुनियादी सुविधाओं के लिए तुरंत बजट आवंटित करे, ताकि बच्चों को सुरक्षित और बेहतर पढ़ाई का माहौल मिल सके। शिक्षा का अधिकार सिर्फ कागजों तक सीमित नहीं रहना चाहिए।

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जर्जर स्कूल भवनों का सबसे ज्यादा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। असुरक्षित और असुविधाजनक माहौल में पढ़ाई करना मुश्किल होता है, जिसके कारण बच्चों का ध्यान पढ़ाई से हटकर अन्य समस्याओं पर चला जाता है। लड़कियों के लिए शौचालयों की कमी एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं। इसके अलावा, शिक्षकों को भी ऐसी परिस्थितियों में पढ़ाने में कठिनाई होती है। कई शिक्षक अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। बारिश या गर्मी के मौसम में स्कूलों में पढ़ाई लगभग ठप हो जाती है, जिससे बच्चों का शैक्षणिक नुकसान होता है।