कोटा में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के लिए प्रचार करतीं वसुंधरा राजे।
कोटा में गुंजल ने ओम बिड़ला को किया परेशानः लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला लगातार तीसरी बार कोटा से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह पहली बार 2014 में सांसद बने थे। 2019 में वह 2.79 लाख वोटों से जीते और लोकसभा अध्यक्ष बनाए गए। कांग्रेस इस सीट पर भाजपा से आए प्रह्लाद गुंजल पर दांव लगा रही है। इसे राजस्थान की लोकसभा लड़ाई का 'प्रमुख मैच' माना जा रहा है। प्रह्लाद गुंजल एक मजबूत गुर्जर नेता हैं, जो दो बार भाजपा से विधायक चुने गए थे लेकिन मार्च में कांग्रेस में शामिल हो गए। गुंजल दरअसल वसुंधरा राजे के वफादार लोगों में रहे हैं। कांग्रेस ने जैसे ही गुंजल को अपना उम्मीदवार बनाया, कोटा का हाई-प्रोफाइल चुनाव में बदल गया। भले ही वसुंधरा राजे यहां ओम बिड़ला के लिए प्रचार कर रही हैं लेकिन जनता इशारों और हालात को समझ रही है।
बाड़मेर में निर्दलीय हावीः केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी 2019 में 3.23 लाख वोटों के अंतर से यह सीट जीतकर सांसद बने थे। इस बार इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है क्योंकि निर्दलीय उम्मीदवार रविंदर सिंह भाटी विधायक भी हैं और युवाओं के बीच उनकी अच्छी पकड़ है। कांग्रेस हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से आए उम्मेदाराम बेनीवाल पर दांव खेल रही है। बाड़मेर में निर्दलीय भाटी ने मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। वो भाजपा से विद्रोह करके चुनाव लड़ रहे हैं। उनका प्रचार अभियान काफी आक्रामक है। चुनाव समीक्षक मुकाबला ही निर्दलीय और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच बता रहे हैं। भाजपा से टिकट से इनकार किए जाने के बाद 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले भाटी ने पार्टी छोड़ दी, और बाड़मेर जिले के शेओ विधानसभा क्षेत्र से स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा। उनकी रैलियों और रोड शो में भारी भीड़ उमड़ी, विशेषकर युवाओं की, और उन्होंने 31 प्रतिशत से अधिक वोट-शेयर के साथ जीत हासिल की थी। उनको उसी करिश्मे का भरोसा लोकसभा में भी है। लेकिन उनके साथ यह प्रचार भी जुड़ गया है कि वो अगर चुनाव जीते तो भाजपा में शामिल हो जाएंगे।
बांसवाड़ा के आदिवासी किधर जाएंगेः आदिवासी बहुल यह सीट इसलिए महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि यहां बीजेपी ने महेंद्र जीत सिंह मालवीय को मैदान में उतारा है, जो पिछली अशोक गहलोत सरकार में मंत्री थे लेकिन लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने पार्टी बदल ली थी। दूसरी ओर, कांग्रेस भारतीय आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार राजकुमार रोत का समर्थन कर रही है जो विधायक भी हैं। कांग्रेस के बागी अरविंद डामोर के कारण इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। दक्षिण राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर और उदयपुर जिलों में राजस्थान की 14% आदिवासी आबादी का लगभग दो तिहाई हिस्सा रहता है। वे धीरे-धीरे आरएसएस से संबद्ध वनवासी कल्याण परिषद का गढ़ बन गए हैं, जो यहां काम करता है और स्कूलों, सांस्कृतिक समूहों और यहां तक कि चिकित्सा शिविरों के माध्यम से हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाता है। इस संदर्भ में, मालवीय का पाला बदलना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था और इसका उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा-आरएसएस की उपस्थिति को बढ़ाना था। इसके बावजूद कांग्रेस समर्थित बीएपी उम्मीदवार राजकुमार रोत के पास सुनहरा मौका है। आदिवासी पहचान पर जोर, आदिवासी समुदाय के लिए एक अलग राज्य की मांग और आदिवासियों के लिए शिक्षा और नौकरियों में 75% आरक्षण के वादे के कारण बीएपी का समर्थन आधार दक्षिण राजस्थान में तेजी से बढ़ा है। इसके अलावा, रोत की युवा अवस्था, स्वच्छ छवि और आदिवासी मुद्दों और आदिवासी अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता ने बीएपी की चुनावी संभावनाओं को बेहतर कर दिया है। इसलिए त्रिकोणीय मुकाबला होने के बावजूद भाजपा के लिए यहां कुछ भी आसान नहीं है।