राजस्थान में एक खाप पंचायत के तुगलकी फरमान ने विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें महिलाओं को स्मार्टफोन इस्तेमाल न करने का आदेश दिया गया। 21वीं सदी में एक 'भारत' ऐसा भी!
महिलाओं का अधिकार क्या एक स्मार्टफोन रखने तक का भी नहीं है? राजस्थान के जालोर जिले के 15 गांवों में एक खाप पंचायत ने महिलाओं के अधिकार को लेकर विवादास्पद फ़ैसला सुना दिया है। 26 जनवरी से महिलाएँ और लड़कियां स्मार्टफोन नहीं इस्तेमाल कर सकेंगी! केवल पुराने कीपैड वाले फोन की इजाजत होगी। विवाद होने पर पंचायत के कुछ लोगों का दावा है कि यह आंखें ख़राब होने से बचाने के लिए फ़ैसला लिया गया, लेकिन असल वजह? कुछ मामलों में लड़कियां घर छोड़कर चली गईं, जिससे 'समाज में मुश्किलें' पैदा हुईं। एक्टिविस्ट चीख रहे हैं कि 21वीं सदी में महिलाओं की आजादी पर ऐसी पाबंदी? जिला प्रशासन जांच में जुटा है, लेकिन सवाल बड़ा है- क्या खाप पंचायतें कानून से ऊपर हैं?
दरअसल, यह फ़ैसला जालोर जिले के गाजीपुर गांव में रविवार को हुई पंचायत की बैठक में लिया गया। बैठक में 15 गांवों के प्रतिनिधि मौजूद थे। पंचायत के फरमान के अनुसार, 26 जनवरी 2026 से इन गांवों की कोई भी महिला या लड़की कैमरे और इंटरनेट वाले स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं कर सकेगी। उन्हें सिर्फ साधारण कीपैड वाले फोन ही रखने की इजाजत होगी।
रिपोर्टों के अनुसार हालाँकि, पंचायत ने यह भी कहा कि अगर लड़कियों को पढ़ाई के लिए मोबाइल फ़ोन की ज़रूरत है तो उन्हें सिर्फ़ घर पर ही इस्तेमाल करने की इजाज़त होगी और वे उन्हें शादी, सोशल इवेंट या पड़ोसियों के घर नहीं ले जा सकेंगी। जब इस फ़ैसले पर हंगामा मचा तो पंचायत की ओर से सफाई दी गई कि यह रोक बच्चों की आंखों की रोशनी बचाने के लिए लगाई गई है।
पंचायत सदस्यों के मुताबिक़, घर में महिलाएँ बच्चों को व्यस्त रखने के लिए अपना फोन दे देती हैं, जिससे बच्चों की आंखें खराब हो रही हैं। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्टों में स्थानीय सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि असल वजह कुछ और है। द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि कुछ मामलों में महिलाएं घर छोड़कर भाग गई थीं, जिससे परिवार और समाज में परेशानी हुई। और ऐसे मामलों को रोकने के लिए ही यह फ़ैसला लिया गया है।
जालोर के जिलाधीश प्रदीप गावंडे ने बताया कि जिला प्रशासन को इस विवाद की जानकारी मिल गई है और मामले की जांच की जा रही है।
महिलाओं की आज़ादी का क्या?
पंचायत के इस फ़ैसले ने पूरे इलाक़े में हंगामा मचा दिया है। कई लोग इसे महिलाओं की आजादी छीनने वाला कदम बता रहे हैं। आगााज फाउंडेशन की मैनेजिंग ट्रस्टी सुमन देवाथिया ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, '21वीं सदी में खाप पंचायतों को इतनी ताकत मिलना गलत है। वे महिलाओं की आजादी से क्यों डरते हैं? जालोर के पुलिस अधीक्षक को खुद इस मामले का संज्ञान लेकर इस फैसले को रद्द करवाना चाहिए। यह महिलाओं की डिजिटल दुनिया में स्वतंत्रता छीनने वाला मनमाना फरमान है।'
पहले भी आते रहे ऐसे मामले
यह घटना राजस्थान और उत्तर भारत में खाप पंचायतों की पुरुष प्रधान वाली सोच को दिखाती है। ऐसे मामलों में महिलाओं की स्वतंत्रता को समाज की मर्यादा के नाम पर नियंत्रित करने की कोशिशें होती रही हैं। पहले भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अविवाहित लड़कियों पर मोबाइल प्रतिबंध या जींस पहनने पर बैन जैसे फरमान जारी हो चुके हैं। यहां स्मार्टफोन बैन का बहाना बच्चों की सेहत है, लेकिन सचाई यह है कि महिलाओं की स्वतंत्र सोच से खाप पंचायतों में डर झलकता है, खासकर सोशल मीडिया के युग में जहां महिलाएँ अपनी आवाज उठा सकती हैं।कानूनी रूप से खाप पंचायतों के ऐसे फ़ैसले गैर-कानूनी हैं, क्योंकि वे संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। अदालतों के फ़ैसले भी खाप पंचायतों के ख़िलाफ़ आए हैं, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक बहिष्कार का डर इन फैसलों को प्रभावी बनाता है।
सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि डिजिटल इंडिया के दौर में यह पीछे ले जाने वाला कदम महिलाओं को पिछड़ा रखने वाला है। स्मार्टफोन शिक्षा, स्वास्थ्य जानकारी, बैंकिंग और आपातकालीन संपर्क का माध्यम है। ऐसे प्रतिबंध महिलाओं के आगे बढ़ने से रोकते हैं और लैंगिक असमानता को बढ़ावा देते हैं।
यह फ़ैसला ऐसे समय में आया है जब सरकारें महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए डिजिटल योजनाएँ चला रही हैं। कहा जा रहा है कि ऐसे फ़ैसले महिलाओं की शिक्षा, जानकारी और संचार के अधिकार को प्रभावित करते हैं। सोशल मीडिया पर भी इसकी काफी आलोचना हो रही है।