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बोलने की आज़ादी की पैरवी करने वाले ट्विटर को एक शख्स ने बदल दिया?

क़रीब दो साल पहले ट्विटर से कुछ खातों को ही बंद करने के लिए कहा जाने लगा था। पिछले साल जुलाई में तो ट्विटर ने आरोप लगाया था कि सरकार वजह बताए बिना ही बड़ी संख्या में खाते ब्लॉक करने के लिए कह रही है। इस तरह के आदेश सैकड़ों खातों को बंद करने के लिए मिल रहे थे। यह बड़ा बदलाव था। इससे पहले ट्विटर को आम तौर पर ट्वीट को ही हटाए जाने के आदेश मिलते थे। तो सवाल है कि यह बदलाव कैसे हो पाया और इसके पीछे वजह क्या थी कि खातों को ब्लॉक किया जाने लगा?

इस सवाल का जवाब कोरोना संक्रमण काल के बाद से ट्विटर के रवैये को देखने से मिल सकता है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कंटेंट को लेकर काफी समय से कंपनियों के प्रतिनिधियों और सरकार के अधिकारियों के बीच बैठकें होती रही हैं। पहले भारत की सूचना, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों के अधिकारी भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरों का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पोस्ट पेश करते रहे थे और उन्हें वे हटवाना चाहते थे। कई बार बोलने की आज़ादी का हवाला देकर कंपनियाँ पोस्ट हटाने का विरोध भी करती थीं। अदालतों तक मामले गए थे। लेकिन अब वैसे मामले नहीं आते हैं। अब काफ़ी बदलाव आ चुके हैं!

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ये बदलाव कोरोना काल में और किसान विरोधी आंदोलन के बाद से साफ़ तौर पर महसूस किया जा सकता है। तब किसानों का आंदोलन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा था। किसानों ने एक "आईटी सेल" को बनाया और दुनिया भर में पंजाबी और सिख प्रवासी लोग इससे जुड़े। उन्होंने एक सोशल मीडिया अभियान चलाया जिसे एनबीए खिलाड़ियों, ग्रेटा थुनबर्ग और रिहाना जैसी हस्तियों का समर्थन मिला। इसमें मोदी सरकार की खूब किरकिरी हुई। किसान आंदोलन ने भाजपा सरकार के सामने गंभीर चुनौती पेश की। इसके बाद ट्विटर पर किसान आंदोलन और कोविड से जुड़े हैशटैग को हटाने के लिए दबाव बढ़ गया था।

एक साथ ही बड़ी संख्या में हैशटैग से जुड़े ट्वीट हटाए जाने लगे। कुछ ट्विटर खाते भी हटाने का दबाव बनने लगा। उसी समय किसान आंदोलन पर खालिस्तान से जुड़ाव, अंतरराष्ट्रीय टूलकिट के इस्तेमाल जैसे आरोप लगाए गए। तब ट्विटर ने सरकार द्वारा चिह्नित अधिकांश खातों और पोस्ट को हटाया भी, लेकिन कंपनी ने कभी-कभी विरोध भी किया। इस तरह से विरोध किए जाने पर ट्विटर के कमर्चारियों को निशाना बनाया गया। तब ख़बरें आई थीं कि कर्मचारियों को ख़तरा है। कुछ कर्मचारियों पर एफ़आईआर भी हुई। ट्विटर के एक शीर्ष कर्मचारी को तो भारत से हटाया भी गया।

इस बीच भारत में नए आईटी नियम लागू हुए। सरकार ने सख्ती से कहा कि सोशल मीडिया कंपनियों को ये नियम मानने ही होंगे। पिछले साल आईटी मंत्री ने जोर देकर कहा था कि सोशल मीडिया और डिजिटल दुनिया को और अधिक जवाबदेह बनाने की ज़रूरत है। सरकार की तरफ से लगातार ऐसे बयान आते रहे।
इसी बीच सरकारी आदेश को पूरा करने के लिए ट्विटर ने विनय प्रकाश को नियुक्त किया। उन्होंने ट्विटर में शिकायत और अनुपालन अधिकारी दोनों के रूप में काम शुरू किया।

वाशिंगटन पोस्ट ने ख़बर दी है कि विनय प्रकाश वह शख्स हैं जो सीधे बीजेपी मंत्री से जुड़े रहे थे। रिपोर्ट के अनुसार विनय प्रकाश पिछली सबसे लंबी नौकरी चंद्रशेखर के लिए राजनीतिक विश्लेषक के तौर पर की है। चंद्रशेखर पहले संसद में थे और अब भाजपा सरकार में आईटी राज्य मंत्री हैं। 

अनुपालन अधिकारियों के पास आमतौर पर कानूनी और मानव-संसाधन मुद्दों के साथ-साथ यूज़रों की जानकारी के बारे में आंतरिक चर्चा तक पहुंच होती है। इस पद पर नियुक्ति से पहले शख्स की पूरी पड़ताल की जाती है। विनय प्रकाश की भी पड़ताल की गई थी। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार ट्विटर ने फ्लोरिडा स्थित एक बुटीक रिसर्च फर्म, डिवाइन इंटेल से एक स्वतंत्र मूल्यांकन और पृष्ठभूमि की पड़ताल करने के लिए कहा था। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे परिचित दो लोगों के अनुसार, प्रकाश के नाम पर फर्म ने चिंता जताई थी। 

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अमेरिकी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार डिवाइन इंटेल के एक कार्यकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'हमारे मूल्यांकन ने एक आवेदक को उच्च-जोखिम/उच्च-खतरे के रूप में पहचाना और हमने संसद के सदस्यों के अनुचित प्रभाव की संभावना के कारण व्यक्ति को काम पर रखने के खिलाफ सलाह दी'। कार्यकारी ने कहा कि इन निष्कर्षों के बावजूद उस व्यक्ति को काम पर रखा गया। हालाँकि डिवाइन इंटेल ने ट्विटर को अपने ग्राहक के रूप में नहीं पहचाना, केवल यह कहा कि यह एक प्रमुख अमेरिकी तकनीकी कंपनी थी। लेकिन इस मामले के जानकार लोगों ने कहा कि यह प्रकाश की जांच का जिक्र कर रहा था। वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा है कि प्रकाश ने इस लेख के लिए टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, 'पिछले साल ट्विटर के पूर्व सुरक्षा प्रमुख पीटर ज़टको ने अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग और न्याय विभाग के साथ एक व्हिसलब्लोअर शिकायत दर्ज की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि किसानों के विरोध के समय, भारत सरकार ने ट्विटर को उन विशिष्ट व्यक्तियों को काम पर रखने के लिए मजबूर किया जो सरकारी एजेंट थे।' कांग्रेस के समक्ष गवाही में उन्होंने कहा कि सरकारी एजेंट को गुप्त रूप से निगरानी करनी थी कि ट्विटर राजनीतिक और सार्वजनिक दबाव पर कैसे प्रतिक्रिया देता है और कंपनी को इसके बारे में पता था।

ज़टको को जनवरी 2022 में कंपनी से निकाल दिया गया था। हालाँकि ज़टको ने कभी भी सार्वजनिक रूप से उस कर्मचारी का नाम नहीं लिया जिसके बारे में उनका मानना था कि वह भारत सरकार के लिए काम कर रहा था। ट्विटर ने ज़टको के आरोपों का खंडन किया है।

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क़मर वहीद नक़वी
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