लद्दाखी प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच 22 अक्टूबर को अहम वार्ता होने जा रही है। क्या इस बैठक से राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग पर समाधान निकलेगा या तनाव और बढ़ेगा?
लद्दाख में प्रदर्शन। (फाइल फोटो)
लद्दाख के सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने लंबे समय से चले आ रहे गतिरोध को तोड़ते हुए केंद्र सरकार के साथ वार्ता फिर से शुरू करने का फ़ैसला किया है। लेह एपेक्स बॉडी यानी एलएबी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी केडीए का प्रतिनिधिमंडल 22 अक्टूबर को दिल्ली में गृह मंत्रालय की उप-समिति से मुलाकात करेगा। यह कदम लद्दाख के निवासियों की राज्य का दर्जा, संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षण और स्थानीय संस्कृति-भाषा-भूमि की रक्षा जैसी वर्षों पुरानी मांगों को लेकर एक उम्मीद की किरण जगाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वार्ता वास्तविक समाधान की दिशा में बढ़ेगी, या फिर यह केवल एक और प्रक्रिया मात्र साबित होगी?
इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लेते हैं कि लद्दाख के लोगों की मांग क्या है। लद्दाख को 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य से अलग करके एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही यहां के निवासी असंतुष्ट हैं। आर्टिकल 370 के ख़त्म होने के बाद केंद्र ने लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया, लेकिन स्थानीय लोगों को डर सताने लगा कि बाहरी निवेश और विकास के नाम पर उनकी भूमि, भाषा (भोटी और उर्दू) तथा बौद्ध-मुस्लिम संस्कृति ख़तरे में पड़ जाएगी। एलएबी और केडीए जैसे संगठनों ने चार मुख्य मांगें रखीं-
- राज्य का दर्जा बहाल करना,
- छठी अनुसूची के तहत स्वायत्तता,
- लद्दाख के लिए अलग पब्लिक सर्विस कमीशन,
- और संसद में दो सीटें।
पिछले वर्षों में कई दौर की वार्ताएं हुईं, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। मई 2025 में हुई पिछली बैठक के बाद चार महीनों तक कोई प्रगति नहीं हुई। फिर सितंबर 2025 में लेह में हिंसक प्रदर्शनों ने हालात बिगाड़ दिए। 24 सितंबर को एलएबी द्वारा बुलाए गए बंद के दौरान पुलिस कार्रवाई में चार प्रदर्शनकारी मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक को एनएसए के तहत गिरफ्तार किया गया। इसके बाद एलएबी ने 6 अक्टूबर को निर्धारित उच्च-स्तरीय समिति की बैठक का बहिष्कार कर दिया। केंद्र ने हाल ही में घटना की न्यायिक जाँच के आदेश दिए, जिसे वार्ता की पूर्व शर्त के रूप में रखा गया था।
वार्ता में कौन शामिल, क्या चर्चा होगी?
वार्ता में आठ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल हिस्सा लेगा, जिसमें एलएबी के चेयरमैन थुपस्टान छेवांग, केडीए के क़मर अली अखून, असगर अली करबलाई और सज्जाद कारगिली प्रमुख होंगे। लेह एपेक्स बॉडी के सह-चेयरमैन चेरिंग दोर्जे लक्रुक, अंजुमन इमामिया के अध्यक्ष अशरफ अली बर्चा, लद्दाख के सांसद मोहम्मद हनीफा जान और वकील हाजी मुस्तफा भी मौजूद रहेंगे। यह बैठक एमएचए की उप-समिति के साथ होगी, जो गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अध्यक्षता वाली उच्च-स्तरीय समिति के लिए आधार तैयार करेगी। फोकस मुख्य रूप से राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची पर रहेगा, हालांकि अन्य मांगें बाद में उठाई जा सकती हैं।
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार एलएबी के लक्रुक ने कहा, 'हम केंद्र के इस त्वरित कदम का स्वागत करते हैं और सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करते हैं।' केडीए के करबलाई ने भी आशावादी रुख अपनाते हुए कहा कि यह बैठक आगे की चर्चाओं का रास्ता साफ़ करेगी।
सरकार के क़दम का संकेत
यह वार्ता लद्दाख आंदोलन के लिए एक अहम मोड़ है, खासकर सितंबर की हिंसा के बाद। केंद्र की ओर से न्यायिक जांच का ऐलान और एमएचए की सक्रियता से लगता है कि सरकार दबाव में है। गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में पटना में कहा था कि 'लद्दाख की जायज मांगों का बेहतर समाधान होगा'। उनका यह बयान वार्ता को राजनीतिक प्राथमिकता का संकेत देता है। लेकिन चुनौतियां बरकरार हैं। पिछली वार्ताओं में केंद्र ने छठी अनुसूची को लागू करने में हिचक दिखाई, क्योंकि यह रक्षा और पर्यटन जैसे राष्ट्रीय हितों को प्रभावित कर सकती है। राज्य का दर्जा देने से जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन की राजनीति पर असर पड़ सकता है, जहाँ विधानसभा चुनाव आने वाले हैं।
लद्दाखियों के लिए पहचान का सवाल
लद्दाख के निवासियों के लिए यह केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि पहचान का सवाल है। पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक जैसे नेताओं की गिरफ्तारी ने आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां दिलाईं, लेकिन इससे स्थानीय स्तर पर तनाव बढ़ा है। यदि वार्ता विफल हुई तो लेह और कारगिल में फिर से अशांति फैल सकती है, जो सीमा क्षेत्र होने के नाते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बनेगी।
22 अक्टूबर की यह बैठक लद्दाख और केंद्र के बीच विश्वास बहाली का अवसर है। यदि दोनों पक्ष ईमानदारी से आगे बढ़ें, तो यह न केवल लद्दाख को स्थिरता देगी, बल्कि संघीय ढाँचे में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को मज़बूत करेगी। लेकिन केवल बातें नहीं, छठी अनुसूची का शुरुआती कार्यान्वयन या राज्य दर्जे पर समयबद्ध योजना जैसे ठोस क़दम ही वास्तविक बदलाव ला सकते हैं। लद्दाख के लोग लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। अब देखना है कि दिल्ली उनकी आवाज गंभीरता से सुनती है या नहीं।