राहुल गांधी मध्य प्रदेश के महू में पार्टी की ‘जय बापू, जय भीम, जय संविधान’ रैली में क्या बोले? जानिए, उन्होंने संविधान और आंबेडकर के मुद्दे पर बीजेपी और आरएसएस को कैसे घेरा।
भारत गणतंत्र दिवस मना रहा है लेकिन क्या डॉ. आंबेडकर के सपने का गणतंत्र हम बना पाए? क्या सामाजिक और आर्थिक असमानता मिल पाई? कहीं संविधान के आदर्श ही तो ख़तरे में नहीं?
राहुल गांधी संविधान को लेकर अपने पुराने अंदाज में लौट आये हैं। रांची में एक कार्यक्रम में राहुल ने फिर से संविधान की कॉपी दिखाई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा को खत्म कर देगी। उन्होंने कहा कि आज मीडिया, चुनाव आयोग, सीबीआई, ईडी आदि भाजपा के आदेश से चलते हैं।
बीजेपी 400 सीटें जीतने का नारा क्यों दे रही है, क्या इसके पीछे उसका ख़ास मक़सद है? आख़िर बीजेपी सांसद ने क्यों कहा कि संविधान बदलने के लिए इतनी सीटें चाहिए?
क्या संसद द्वारा पारित कोई भी कानून इतना सशक्त हो सकता है या उसे इतनी ताकत दी जा सकती है कि वो भारत के संविधान के मूल ढांचे को चुनौती देने लगे?
सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द को भारत के संविधान में 1976 में डाला गया था । लेकिन बुधवार को जब नई संसद में संविधान की कापी दी गई तो उसमें ये दो शब्द ग़ायब थे । ये कहा गया कि पुराना संविधान दिया गया । जबकि परंपरा है लेटेस्ट संविधान की कापी देने की ताकि नये संशोधन में हो ? सवाल उठता है क्या इन दोनों संविधान को हटाने जा रही है मोदी सरकार ?
क्या देश के नाम के लिए सरकार अब India का इस्तेमाल नहीं करने की तैयारी कर रही है? जी20 के आमंत्रण पर 'President of Bharat' का इस्तेमाल क्यों?
भारत के संविधान को बदलने की बात क्यों की जा रही है? ऐसी बात करने वाले लोग आख़िर कौन हैं और उन्हें मौजूदा संविधान से दिक्कत क्या है?
संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता की पैरवी करने वाले संविधान को बदलने की मांग करने वाले लोग कौन?
सुप्रीम कोर्ट का संविधान के मूल ढाँचा का सिद्धांत मौजूदा सरकार को खटकता क्यों है? आख़िर एक के बाद एक बयान संसद की सुप्रीमेसी पर क्यों आ रहे हैं?
भारतीय लोकतंत्र पर हमला एक तरफ से या एक जगह से नहीं हो रहा है। चाहे वो असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हों या फिर भारत के प्रधानमंत्री हों, हमलों की बौछार है। भारतीय संसद में विपक्षी नेताओं के माइक कभी बंद नहीं किए गए, लेकिन मोदी राज में यह भी मुमकिन हो गया। ऐसे में उस शपथ का क्या महत्व रह गया है, जो किसी राज्य का मुख्यमंत्री या देश का प्रधानमंत्री संविधान के नाम पर खाता है।
कांग्रेस पार्टी आखिर किस दुविधा का शिकार है। संवैधानिक संस्थाओं को बचाने की मुहिम को लेकर उसकी सोच और एक्शन में विरोधाभास क्यों है। जिन तमाम महान संसदीय परंपराओं को उसने बनाया है, उसे बचाना उसकी ही जिम्मेदारी है। जानिए लेखक-पत्रकार अपूर्वानंद और क्या कहना चाहते हैंः
आरएसएस के विचारक सांसद प्रो. राकेश सिन्हा क्यों कहते हैं कि 'केवल संविधान के प्रति वफादारी की कसम खाने से इसका जवाब नहीं दिया जा सकता'? सवाल है कि किसके प्रति वफादारी होनी चाहिए?
आज गणतंत्र दिवस पर संविधान को बचाने की शपथ लेने का दिन है। आज यह जानना भी जरूरी है कि संविधान बनने के लिए डॉ आंबेडकर ने अपने पहले भाषण में क्या कहा था। सत्य हिन्दी बाबा साहेब के उस भाषण को हूबहू प्रकाशित कर रहा है।
संविधान के मूल ढाँचा का सुप्रीम कोर्ट का सिद्धांत मोदी सरकार को खटकता क्यों है? आख़िर एक के बाद एक बयान संसद की सुप्रीमेसी पर क्यों आ रहे हैं? जानिए, अब क़ानून मंत्री किरेण रिजिजू ने क्या कहा।
देश के संविधान पर उपराष्ट्रपति से लेकर भारत के कानून मंत्री तक टिप्पणी कर रहे हैं। लेकिन हाल ही में उपराष्ट्रपति का बयान या हमला गंभीरता से लिया जाना चाहिए। आखिर सरकार की मंशा क्या है। जानी-मानी पत्रकार वंदिता मिश्रा ने उपराष्ट्रपति के बयान से जारी विवाद के संदर्भ में सभी पहलुओं को समझाने की कोशिश की है।
देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया है तो फिर सरकारी संस्थाओं में धार्मिक आधार पर भेदभाव क्यों? क्या संवैधानिक कृत्यों का निर्वहन धार्मिक दरवाजों से किया जा सकता है?
‘ब्रह्मकुमारीज’ के एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने क्या नागरिक अधिकारों को कम करने या ख़त्म करने का संकेत दिया है? उन्होंने क्यों कहा कि 75 साल हम सिर्फ़ अधिकारों की बात कर अपना समय बर्बाद करते रहे?
संविधान और लोकतंत्र पर सत्तापक्ष और हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा जितना ही खुलकर हमला हो रहा है उतना ही डॉ. आंबेडकर और उनकी वैचारिकता की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है।
लोकसभा सचिवालय के 2020 के कैलेंडरमें इस बार संविधान की प्रस्तावना को जगह नहीं दी गई है। इसे लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।