दिल्ली में बीजेपी पिछले पाँच चुनावों से लगातार हार रही है। उस दौर में भी हारी जब 2015 में मोदी लहर थी। क्या गुटबाज़ी कारण रही है?
केजरीवाल ने अगले चुनाव में अपनी तरफ़ से एजेंडा तय कर दिया है। अब यह बीजेपी पर निर्भर करता है कि वह इस एजेंडे को कैसे बदलती है।
दिल्ली में बीजेपी का चेहरा बनने के लिए पार्टी नेताओं के बीच लड़ाई चल रही है। ऐसे में केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के एक बयान के बाद यह लड़ाई और तेज होने का डर है।
जीवन के लिए कुदरत की दो नियामतें सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं- हवा और पानी। अगर हम कुदरत के साथ खिलवाड़ करते हुए उन्हें ज़हरीला बना दें तो फिर इसका मतलब यह है कि हम जीना ही नहीं चाहते।
महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों के बाद बीजेपी इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई कि वह झारखंड के साथ दिल्ली में भी चुनाव करा ले। दिल्ली में उसे अब राम मंदिर पर कोर्ट के फ़ैसले से ही उम्मीद है।
आख़िर दिल्ली की अवैध बनाम कच्ची कॉलोनियों के लिए वह घड़ी आ ही गई जब केंद्र सरकार ने इन कॉलोनियों को मंज़ूर करने का एलान कर दिया।
अगर सिर्फ़ वीआईपी से लूटपाट करने वाला ही पकड़ा जाएगा तो ऐसी घटनाओं का शिकार आम आदमी ज़रूर सवाल उठाएगा कि आख़िर उनके साथ हुई लूटपाट के अपराधी खुले क्यों घूम रहे हैं।
गंभीर भी कहने लगे हैं कि अगर दिल्ली में बीजेपी जीत जाए तो वह मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हैं और दिल्ली का मुख्यमंत्री बनना उनके लिए एक सपने के मुकम्मल होने जैसा होगा।
एनआरसी को लेकर मनोज तिवारी पर टिप्पणी करने के बाद केजरीवाल घिर गए हैं और उन्होंने संजय सिंह को दिल्ली का प्रभारी बना दिया है लेकिन क्या यह दाँव काम करेगा?
केजरीवाल यह कहते कि अगर प्रदूषण बहुत ज़्यादा बढ़ गया तो हम ऑड-ईवन लागू कर सकते हैं लेकिन उन्होंने तो बस बाईपास सर्जरी का फ़ैसला ही कर लिया है।
‘आप’ पिछले दो चुनावों में बीजेपी को मुख्यमंत्री के चेहरे के सवाल पर उलझाती रही है और इस बार भी वह यही करने जा रही है।
जिस दिन आप दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर बुरी तरह हारी थी, शायद उसी दिन केजरीवाल ने फ़ैसला कर लिया था कि अब सरकारी ख़ज़ाने का मुँह मुफ़्त सुविधाओं के लिए खोल देंगे।
आम आदमी पार्टी एक बार फिर दिल्ली की जनता के लिए मुफ़्त की खैरात का पिटारा खोल लाई है। अब 200 यूनिट तक बिजली इस्तेमाल करने वालों को कोई बिल नहीं आएगा।
अगर इंदिरा गाँधी के बाद देश में सबसे मज़बूत इरादों वाली महिला राजनीतिज्ञ का नाम ढूंढा जाए तो एक ही नाम ज़हन में आएगा और वह है शीला दीक्षित का। दिल्ली के विकास में भी उनका योगदान काफ़ी अहम था।
विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने का वक़्त रह गया है लेकिन दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित और प्रभारी पीसी चाको खुलकर एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
अगर कोई यह पूछे कि भारत में सबसे ज़्यादा पैंतरेबाज़ राजनीतिज्ञ कौन है तो शायद कुछ लोग लालू यादव का नाम लें तो कुछ मायावती या फिर मुलायम सिंह यादव को भी याद कर सकते हैं। लेकिन मोदी और केजरीवाल का क्या?
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पीएम नरेंद्र मोदी से मिलें और फिर कहें कि बातचीत बहुत अच्छी रही। वह भरोसा भी जताएँ कि मिलकर दिल्ली का विकास करेंगे तो क्या यह बात पचती है?
दिल्ली में महिलाओं को मेट्रो और डीटीसी में मुफ़्त सफर की योजना क्यों लायी गयी? क्या विधानसभा चुनाव आने वाला है इसलिए तो नहीं? यदि ऐसा है तो वह इस बार सफल हो पाएगी या नहीं?
दिल्ली की सात लोकसभा सीटों की तसवीर साफ़ हो चुकी है। कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी का समझौता नहीं हो पाया। इसका फ़ायदा बीजेपी को मिलेगा भी या नहीं?