क्या हम ऐसे समय में पहुँच गए हैं जहाँ सत्तारूढ़ दल से जुड़े संगठनों के लोगों की ही चलती है? क्या वह समय आ चुका है कि जहाँ किसी सरकारी कर्मचारी को नौकरी से हाथ सिर्फ़ इसलिए हाथ धोना पड़ता है कि उसने अपनी ड्यूटी निभाने वाले की कोशिश में सत्तारूढ़ दल से जुड़े संगठनों के कुछ लोगों को नाराज़ कर दिया?