उत्तर प्रदेश बीजेपी में ये क्या हो रहा है? लखनऊ में पहले कथित तौर पर क्षत्रिय विधायकों की बैठक हुई थी और अब ब्राह्मण विधायकों की। क्या पार्टी में जातिगत आधार पर गोलबंदी हो रही है? हाल में आरोप लगते रहे हैं कि ब्राह्मणों के साथ भेदभाव हो रहे हैं, तो क्या यह बैठक उसी का नतीजा है? कम से कम विपक्षी दल सपा ने तो यही आरोप लगाया है। इसने कहा है कि बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। तो क्या इसका इशारा गुटबाज़ी का है? बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी ने क्यों इन नेताओं को नसीहत देते अनुशासन में रहने की हिदायत दी है?

दरअसल, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मंगलवार की रात एक डिनर मीटिंग ने पूरे राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बीजेपी के क़रीब 40 विधायक और विधान परिषद सदस्य एक पार्टी सहयोगी के घर पर देर रात डिनर के लिए जमा हुए थे। इनमें से ज्यादातर ब्राह्मण समुदाय से थे। यह मीटिंग विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान हुई।
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रिपोर्टों के अनुसार यह बैठक शाम करीब 7 बजे शुरू हुई और आधी रात तक चली। मेजबान थे कुशीनगर से बीजेपी विधायक पीएन पाठक। बैठक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें कई विधायक साथ बैठे नज़र आ रहे हैं।

बीजेपी ने इसे सिर्फ एक अनौपचारिक मुलाकात बताया है, लेकिन विपक्ष ने इसे पार्टी के अंदर ब्राह्मण विधायकों की नाराजगी का सबूत करार दिया। विपक्ष का कहना है कि ब्राह्मण विधायक खुद को बेबस और अपमानित महसूस कर रहे हैं, इसलिए वे एकजुट होकर अपनी आगे की रणनीति बना रहे हैं।

बीजेपी नेताओं ने क्या कहा?

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने मीटिंग को सामान्य बताया। द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार उन्होंने कहा, 'यह विधानसभा सत्र के दौरान विधायकों की सामान्य अनौपचारिक मीटिंग थी। सभी लखनऊ में हैं, तो मिलते हैं। इसे जाति के नजरिए से नहीं देखना चाहिए। न ब्राह्मणों की मीटिंग थी, न किसी और समुदाय की।'
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मेजबान विधायक पीएन पाठक ने भी यही बात दोहराई। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'यह सिर्फ एक सामुदायिक डिनर था। सबको साथ बैठकर लिट्टी-चोखा खाना था, इसलिए मैंने बुलाया। हमने मुख्य रूप से राज्य में चल रही मतदाता सूची की विशेष गहन संशोधन अभियान और अपने इलाकों के विकास कार्यों पर चर्चा की। हम सभी राज्य सरकार के काम से संतुष्ट हैं।' मीटिंग में शामिल कुछ अन्य विधायकों ने भी इसे सोशल गैदरिंग बताया।

लेकिन अंदर की बात क्या थी?

द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से ख़बर दी है कि बैठक में मुख्य चर्चा ब्राह्मण समुदाय के साथ कथित भेदभाव और उन्हें हाशिए पर धकेले जाने पर हुई। विधायकों ने एकजुट होकर अपनी आवाज उठाने की ज़रूरत पर जोर दिया। विधायक अनिल त्रिपाठी ने मीडिया से कहा, 'हम चार घंटे साथ थे तो सामाजिक और राजनीतिक दोनों मुद्दों पर बात हुई। हमारी सबसे बड़ी चिंता यह है कि ब्राह्मण समाज ने भारत के निर्माण में बड़ा योगदान दिया, लेकिन आज समाज में ब्राह्मणों का अपमान हो रहा है।' हालांकि उन्होंने साफ किया कि यह सरकार के कामकाज से जुड़ा नहीं है और इसे राजनीतिक नहीं बनाना चाहिए।

दिलचस्प बात यह है कि मानसून सत्र के दौरान बीजेपी के क्षत्रिय विधायकों की भी ऐसी ही अनौपचारिक बैठक लखनऊ में हो चुकी है।

विपक्ष ने ली चुटकी

विपक्षी दलों ने इस मीटिंग को भाजपा के अंदर सबकुछ ठीक न होने का सबूत बताया। समाजवादी पार्टी के विधायक अमिताभ बाजपेयी ने एक्सप्रेस से कहा, 'सत्ताधारी पार्टी के अंदर बंटवारा साफ दिख रहा है। एक खास जाति के नेता को विशेष ध्यान मिल रहा है, बड़े वाहन मिल रहे हैं, जबकि ब्राह्मणों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। इसलिए यह मीटिंग हैरानी की बात नहीं है।'

क्यों अहम है यह बैठक?

उत्तर प्रदेश में जातिगत समीकरण सत्ता पाने का सबसे बड़ा ज़रिया माना जाता है। बीजेपी ने 2017 और 2022 के चुनावों में ब्राह्मण वोटों का बड़ा समर्थन पाया था। लेकिन हाल के कुछ घटनाओं और आरोपों से ब्राह्मण समुदाय में नाराजगी की बातें सामने आ रही हैं।

इस साल की शुरुआत में भी भाजपा की विधायक और मंत्री प्रतिभा शुक्ला ने अकबरपुर थाने पर धरना दिया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि राज्य में ब्राह्मणों का सम्मान नहीं हो रहा और पार्टी सांसद देवेंद्र सिंह ब्राह्मणों के लिए खड़े नहीं होते, जबकि ब्राह्मणों ने उन्हें वोट दिया था।
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यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब विधानसभा सत्र चल रहा है और पार्टी एकजुटता दिखाना चाहती है। यही वजह है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी ने ब्राह्मण समाज की बैठकें करने वाले जनप्रतिनिधियों पर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने कहा है कि ऐसी गतिविधियाँ बीजेपी के संविधान और आदर्शों के खिलाफ हैं और भविष्य में दोहराने पर कड़ी कार्रवाई होगी। पार्टी ने सभी नेताओं से जाति आधारित राजनीति से दूर रहने की अपील की है।

बहरहाल, बीजेपी इसे कितना भी सामान्य बताए, लेकिन विपक्ष और राजनीतिक पंडित इसे पार्टी के अंदर जातिगत असंतोष का संकेत मान रहे हैं।