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वाराणसी: कोर्ट का आदेश- ज्ञानवापी मसजिद का सर्वे करें 

वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर और इसके ठीक बगल में स्थित ज्ञानवापी मसजिद के मामले में जिला अदालत ने गुरूवार को फ़ैसला सुनाया है। अदालत ने कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को मसजिद का पुरातात्विक सर्वेक्षण करना चाहिए। अदालत ने यह फ़ैसला तीन दशक पुरानी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। 

याचिका में कहा गया है कि मुगल शासक औरंगजे़ब ने भगवान विश्वेश्वर का प्राचीन मंदिर तोड़कर उसके खंडहर के ऊपर मसजिद का निर्माण किया था। 

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अदालत ने एएसआई के महानिदेशक को आदेश दिया है कि वे पांच सदस्यों की एक कमेटी गठित करें और ये वे लोग होने चाहिए जो विशेषज्ञ हों और पुरातत्व विज्ञान के अच्छे जानकार हों और इनमें से दो लोग अल्पसंख्यक समुदाय से होने चाहिए। अदालत ने एएसआई के महानिदेशक से यह भी कहा कि वह किसी जानकार या शिक्षाविद को कमेटी के पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त करे। 

अदालत ने आगे कहा, “पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का आदेश देने के पीछे मक़सद यह है कि इससे पता चलेगा कि विवादित स्थल पर जो धार्मिक ढांचा है क्या वह किसी के ऊपर रखा गया है, इसमें किसी तरह का परिवर्तन किया गया है या जोड़ा गया है या फिर एक ढांचे को परस्पर दूसरे के ऊपर या साथ में रखा गया है।” 

Gyanvapi Mosque Vishwanath Temple controversy - Satya Hindi

अदालत ने कहा कि इस कमेटी को यह भी जांच करनी होगी कि क्या वहां मसजिद से पहले हिंदू समुदाय का कोई मंदिर था। इस मामले में सबसे पहले 1991 में वाराणसी के कुछ लोगों के द्वारा याचिका दायर की गई थी। याचिका में तर्क दिया गया था कि मसजिद को औरंगज़ेब ने 1664 में मंदिर के ऊपर बनाया था। 

ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य आर. शमशाद ने इसका विरोध यह करते हुए कहा था कि यह मामला मुक़दमा चलाने लायक नहीं है और 1991 के क़ानून को देखते हुए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मामला अभी इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है और ऐसी स्थिति में जिला अदालत को यह फ़ैसला नहीं देना चाहिए था। 

पूजा स्थल अधिनियम, 1991 

बता दें कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के अनुसार, किसी भी पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त 1947 को जैसा था, वैसा ही रहेगा और उसे बदला नहीं जा सकता है। इससे अयोध्या मामले को बाहर रखा गया था और बाकी सभी मुद्दों पर इस तरह की क़ानूनी प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी। 

पिछले महीने ही पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती दी गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि वह इस मामले में जवाब दे। 

अखाड़ा परिषद का बयान

अखाड़ा परिषद का कहना है कि मुग़ल काल में मुसलिम आक्रांताओं ने मंदिरों को तोड़ कर वहां मसजिद व मक़बरे बना दिए। अखाड़ा परिषद ने यह भी कहा था कि इस मामले में विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी मदद ली जाएगी। हालांकि संघ ने पहले इससे ख़ुद को अलग कर लिया था लेकिन हाल ही में उसने कहा है कि यदि समाज इस पर पहल करता है तो विचार किया जाएगा। बता दें कि काशी के विश्वनाथ मंदिर से ज्ञानव्यापी मसजिद सटी हुई है और मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि मंदिर शाही ईदगाह के पास स्थित है।

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अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से यह सवाल खड़ा होता रहा है कि क्या अब मथुरा और वाराणसी की बारी है? क्या वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के लिए आंदोलन शुरू होने वाला है? अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद कई बार कह चुका है कि वह इन दो मंदिरों के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ेगा। 

अब देखना होगा कि पांच लोगों की कमेटी कब से सर्वे शुरू करती है और वह क्या कुछ सामने लाती है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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