प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क़रीबी माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा क्या योगी सरकार में पूरी तरह शक्तिहीन हैं? क्या वह एक छोटे कर्मचारी का तबादला तक नहीं कर सकते और क्या उनके ख़िलाफ़ यह सब एक साज़िश के तहत किया जा रहा है? कम से कम शर्मा ने तो ऐसा ही आरोप लगाया है। उन्होंने अपने ही विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए सनसनीखेज दावा किया है कि कुछ अराजक तत्व उनके खिलाफ सुपारी लेकर काम कर रहे हैं। उनके आधिकारिक एक्स हैंडल से किए गए एक पोस्ट में उन्होंने बिजली विभाग के कर्मचारियों के एक वर्ग को 'असामाजिक तत्व' करार दिया और कहा कि ये लोग उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने और निजीकरण की प्रक्रिया को बाधित करने की साज़िश रच रहे हैं। शर्मा ने यह भी कहा कि वह एक जूनियर इंजीनियर का तबादला तक नहीं कर सकते। 

एके शर्मा 1998 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं। इन्हें नरेंद्र मोदी के सबसे भरोसेमंद नौकरशाहों में से एक माना जाता है। शर्मा मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद संयुक्त सचिव के रूप में पीएमओ में शामिल हुए। वे 2020 तक पीएमओ में रहे, जब उन्होंने वीआरएस ले लिया। जनवरी 2021 में वह बीजेपी में शामिल हो गए और इसके तुरंत बाद एमएलसी चुने गए और उन्हें यूपी भाजपा का उपाध्यक्ष बनाया गया। 2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद शर्मा को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई और उन्हें ऊर्जा और शहरी विकास जैसे दो अहम विभाग दिए गए। ताज़ा विवाद ऊर्जा विभाग से जुड़ा है।
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ताज़ा विवाद का मुद्दा क्या?

यह विवाद उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण के निजीकरण की योजना से जुड़ा है, जिसका कर्मचारी यूनियनों ने कड़ा विरोध किया है। कुछ महीने पहले राज्य सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स बनाकर बिजली वितरण को निजी क्षेत्र को सौंपने की योजना की घोषणा की थी। कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण से उनकी नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं, जिसके चलते उन्होंने कई बार हड़ताल और विरोध प्रदर्शन किए हैं। शर्मा के तीन साल के कार्यकाल में कर्मचारियों ने चार बार हड़ताल की, जिसमें पहली हड़ताल उनके कार्यभार संभालने के मात्र तीन दिन बाद शुरू हुई थी।

शर्मा के कार्यालय ने सोमवार को अपने एक्स पोस्ट में कहा, 'निजीकरण का इतना बड़ा फ़ैसला अकेले ऊर्जा मंत्री का नहीं हो सकता। जब एक जूनियर इंजीनियर का तबादला भी ऊर्जा मंत्री नहीं कर सकता और जब उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड का संचालन स्वतंत्र है, तो इतना बड़ा फैसला मैं अकेले कैसे ले सकता हूं?' उन्होंने यह भी दावा किया कि यह निर्णय मुख्य सचिव की अगुवाई वाली टास्क फोर्स और उच्च-स्तरीय सरकारी मंजूरी के बाद लिया गया है।'
आधिकारिक पोस्ट में कहा गया है, 'ऊर्जा मंत्री श्री ए के शर्मा की सुपारी लेने वालों में विद्युत कर्मचारी के वेश में कुछ अराजक तत्व भी हैं…। कुछ विद्युत कर्मचारी नेता काफ़ी दिनों से परेशान घूम रहे हैं क्योंकि उनके सामने ऊर्जा मंत्री जी झुकते नहीं हैं। ये वही लोग हैं जिनकी वजह से बिजली विभाग बदनाम हो रहा है।... अन्य विभागों में हड़ताल क्यों नहीं हो रही? वहाँ यूनियन नहीं हैं क्या? वहाँ समस्या या मुद्दे नहीं हैं क्या? इन लोगों द्वारा ली गई सुपारी के तहत ही कुछ दिन पहले ये अराजक तत्व ने ऊर्जा मंत्री जी के सरकारी निवास पर आकर निजीकरण के विरोध के नाम पर छह घंटे तक अनेक प्रकार की अभद्रता की और उनके और परिवार के विरुद्ध असभ्य भाषा का प्रयोग किया।'

पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऊर्जा विभाग की समीक्षा बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने अधिकारियों को चेतावनी दी कि किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इस बैठक में शर्मा वर्चुअली शामिल हुए थे। रिपोर्टों के अनुसार योगी सरकार में मंत्रियों और अधिकारियों के बीच तनाव की खबरें पहले भी सामने आ चुकी हैं, लेकिन शर्मा और उनके विभाग के अधिकारियों के बीच टकराव खास तौर पर चर्चा में है।
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शर्मा को यूपी भेजने की वजह क्या?

जब शर्मा को 2021 में उत्तर प्रदेश भेजा गया तो राजनीतिक हलकों में कई तरह की अटकलें लगाई गईं। उस समय योगी आदित्यनाथ की छवि एक मज़बूत नेता के रूप में उभर रही थी। कुछ विश्लेषकों का मानना था कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व, विशेष रूप से नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहते थे। शर्मा की नियुक्ति को इस संदर्भ में देखा गया कि वह दिल्ली से योगी सरकार पर नजर रखेंगे और केंद्र की नीतियों को लागू करने में अहम भूमिका निभाएंगे।

मुख्यमंत्री पद की दौड़ में भी थे?

कुछ मीडिया रिपोर्टों और राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा थी कि शर्मा को भविष्य में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया जा सकता है। उनकी प्रशासनिक पृष्ठभूमि, मोदी के साथ निकटता और गुजरात मॉडल की सफलता को उत्तर प्रदेश में लागू करने की संभावना ने इस अटकल को हवा दी थी। हालाँकि, 2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत और योगी की दूसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति ने इन चर्चाओं को कम कर दिया। कुछ विश्लेषकों का मानना था कि शर्मा को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस और बीजेपी के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए भी लाया गया। 
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निजीकरण और सुधारों के लिए नियुक्ति

शर्मा की नियुक्ति को बिजली वितरण के निजीकरण और ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों को लागू करने की केंद्र की रणनीति से भी जोड़ा गया। गुजरात में बिजली क्षेत्र में उनके अनुभव को देखते हुए, माना गया कि वह उत्तर प्रदेश में इस क्षेत्र में बड़े बदलाव लाएंगे। लेकिन कर्मचारी यूनियनों के विरोध और प्रशासनिक बाधाओं ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया।

एके शर्मा का यह बयान कि 'उनके खिलाफ सुपारी ली गई है' और वह एक जूनियर इंजीनियर का तबादला तक नहीं कर सकते, उत्तर प्रदेश में गहरे टकराव और प्रशासनिक चुनौतियों को सामने लाता है। हालाँकि शर्मा ने बिजली के अधिकारियों और कर्मचारियों का नाम लिया है, लेकिन क्या यह बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के ऐसा संभव है? और यदि यह राजनीतिक हस्तक्षेप का नतीजा है तो फिर ऐसा करने वाला कौन है?