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सीएसडीएस सर्वेः दावे के विपरीत बीजेपी से नहीं दिखी ब्राह्मणों और जाटों की नाराज़गी

यूपी चुनाव 2022 में बीजेपी की जीत के आधार में व्यापक सामाजिक गठबंधन ने बड़ी भूमिका निभाई है। उसने 2014 के बाद जिस तरह इस आधार को तैयार किया, वो 2022 में यूपी चुनाव में बरकरार दिखा। यूपी चुनाव में यह भी प्रचार ज्यादा था कि इस बार ब्राह्मण और जाट बीजेपी से नाराज हैं लेकिन आंकड़े कुछ और बताते हैं। देश के प्रतिष्ठित अखबार द हिन्दू ने लोकनीति-सीएसडीएस का चुनाव के बाद का सर्वेक्षण प्रकाशित किया है। इसमें जाति-वार वोट वरीयता के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। उसी से पता चलता है कि बीजेपी का ओबीसी आधार न सिर्फ मजबूत है, बल्कि उसने कुछ और भी तबकों को जोड़ा है।हालांकि सपा ने भी उच्च जातियों को छोड़कर कुछ ओबीसी समुदायों के बीच अपने प्रदर्शन में सुधार किया है, लेकिन वो बीजेपी को हराने के लिए पर्याप्त नहीं था।
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ब्राह्मण फैक्टर

यूपी में इस बात का बाकायदा प्रचार किया गया कि बीजेपी से ब्राह्मण नाराज है। कतिपय मीडिया ने यह भी बताया कि इस बार ब्राह्मणों का वोट सपा को जा सकता है। लेकिन द हिन्दू की इस रिपोर्ट के मुताबिक असली तस्वीर कुछ और है। दरअसल, यूपी में इस बार 7 फीसदी ब्राह्मणों ने पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी को ज्यादा वोट दिया है। 2017 में 83 फीसदी ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया था, इस बार 89 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट दिया है। हैरानी की बात ये है कि 2017 में 7 फीसदी ब्राह्णणों ने सपा को वोट दिया था तो इस बार 6 फीसदी ही ब्राह्मणों ने वोट दिया। बीएसपी को तमाम सोशल इंजीनियरिंग के बाद 2017 में ब्राह्मणों के दो फीसदी वोट मिले थे, लेकिन इस बार किसी भी ब्राह्मण ने बीएसपी को वोट नहीं दिया। मायावती को अब अपने महासचिव सतीश मिश्रा की लीडरशिप पर सोचना होगा। वहीं कांग्रेस की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। 2017 में भी उसे एक फीसदी ब्राह्मणों ने वोट दिया था और इस बार भी वही आंकड़ा है।

राजपूतों की पार्टी बीजेपी

इस साल के आंकड़े देख कर लग रहा है कि बीजेपी पूरी तरह राजपूतों (क्षत्रीय) की पार्टी बन गई है। 2017 में उसे 70 फीसदी राजपूतों ने वोट दिया था लेकिन इस बार इसमें 17 फीसदी का इजाफा होकर यह 87 फीसदी पर जा पहुंचा है।

सपा ने 2017 के मुकाबले राजपूत वोटों में 4 फीसदी की गिरावट दर्ज की है। 2017 में उसे 11 फीसदी राजपूत वोट मिले थे तो इस बार सिर्फ 7 फीसदी राजपूतों ने वोट दिया है। बीएसपी ने 2017 में जहां 9 फीसदी राजपूत वोट पाए थे, इस बार सिर्फ 2 फीसदी राजपूतों ने ही वोट दिया है। कांग्रेस का ग्राफ भी उत्साहजनक नहीं है, उसे सिर्फ एक फीसदी राजपूत वोट मिले।

जाटों अभी भी बीजेपी के साथ

किसान आंदोलन की वजह से यह उम्मीद थी कि पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और सपा गठबंन बेहतर प्रदर्शन करेंगे। लेकिन नतीजा कुछ और ही बता रहा है। बीजेपी को 2017 में जहां 38 फीसदी वोट मिला था, 2022 में उसे 54 फीसदी वोट मिला है। सपा-रालोद गठबंधन को 2022 में जाटों का महज 33 फीसदी वोट मिला है, जबकि 2017 में सपा को 57 फीसदी वोट मिला था। यानी इस बार ज्यादा वोट पाने के बावजूद बीजेपी पिछले चुनाव के सपा के मुकाबले वोट प्रतिशत में पीछे है। लेकिन बीएसपी ने आशा के विपरीत करीब 12 फीसदी वोट प्राप्त किया है, जो पिछली बार (3 फीसदी) से 9 फीसदी ज्यादा है।
Statistics: BJP's vote increased in every class, every community in UP, BSP wasted - Satya Hindi
लोकनीति-सीएसडीएस का चुनाव बाद सर्वे, जिसे द हिन्दू अखबार ने प्रकाशित किया है

मुस्लिम-यादव गठजोड़

यूपी में जिस यादव-मुस्लिम मतदाताओं के गठजोड़ की बात कही जाती थी, दरअसल वो इस बार खुलकर सामने आया है। इस गठजोड़ की पहली पसंद सपा फिर से बन गई है। 2017 में सपा को 68 फीसदी यादव वोट मिले थे लेकिन 2022 में उसे 83 फीसदी वोट मिले हैं। बीजेपी ने भी दो फीसदी में इजाफा किया है। 2017 में बीजेपी को 10 फीसदी तो 2022 में उसे 12 फीसदी यादव मिले हैं। बीएसपी और कांग्रेस इस मामले में कुछ खास हासिल नहीं कर सके।2017 में मुसलमानों का 46 फीसदी वोट पाने वाली सपा को 2022 में 79 फीसदी वोट मिले हैं। हालांकि बीजेपी ने 2017 में जहां 6 फीसदी मुस्लिम वोट प्राप्त किये थे, इस बार उसे 8 फीसदी मुस्लिम वोट मिले हैं। वहीं पर बीएसपी और कांग्रेस के ग्राफ में बेहद कमी आई है। उस कमी का उल्लेख बेकार है।

दलित-ओबीसी का चमत्कार

बीजेपी की 2022 की जीत में महा ओबीसी, अन्य ओबीसी और दलित वोटों का बहुत बड़ा योगदान है। आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ग के मतदाताओं ने बीएसपी को जड़ से साफ कर दिया है और वो बीजेपी की तरफ चली गई हैं।

दलित बीएसपी का परंपरागत मतदाता रहा है, लेकिन इस बार जमीन दरक गई है। 2022 में 21 फीसदी जाटव ने बीजेपी को चुना है, जबकि 2017 में बीजेपी को 8 फीसदी जाटव मिले थे। जबकि 2017 में 87 फीसदी जाटव वोट पाने वाली बीएसपी को 2022 में 65 फीसदी वोट मिलने के बावजूद वो सीटों में तब्दील नहीं हो सके। सपा को सिर्फ 9 फीसदी ही जाटव मिल सके। दलितों की अन्य जातियों ने भी बीजेपी को भरपूर वोट दिया। 2017 में बीजेपी को अन्य दलित जातियों का 32 फीसदी वोट मिला था तो इस बार वह बढ़कर 41 फीसदी हो गया है। बीएसपी इस बार सिमट कर 27 फीसदी पर रह गई है। हालांकि 2017 में उसे 44 फीसदी वोट मिले थे।बीजेपी गठबंधन को इस बार केवट, कश्यप, मल्लाह, निषाद जातियों के 63 फीसदी मतदाताओं ने वोट दिया है। पहले ये जातियां बीएसपी को वोट देती थीं लेकिन उन्होंने इस बार बीजेपी को दिया है। बीजेपी ने इस बार निषाद पार्टी और अपना दल (अनुप्रिया पटेल) से चुनावी समझौता किया था। अन्य ओबीसी जातियों ने भी इस बार बीजेपी गठबंधन को भरपूर वोट दिया। इस बार उसे 66 फीसदी वोट मिले हैं। इनमें से बहुत सारा वोट बीएसपी से खिसक कर बीजेपी में चला आया है। अन्य ओबीसी जातियों का बीएसपी को महज 4 फीसदी वोट मिला है।

कुर्मी, कोइरी, मौर्य किधर

लोकनीति-सीएसडीएस का आंकड़ा बताता है कि कुर्मी, कोइरी और मौर्य जातियों ने भी बीजेपी की जीत में खास भूमिका निभाई। 2017 में 63 फीसदी कुर्मी वोट पाने वाली बीजेपी को इस बार 66 फीसदी कुर्मी मतदाताओं ने वोट डाले। ये बढ़ोतरी बीएसपी से शिफ्ट हुए कुर्मी मतदाताओं की है। 2017 में जिन 56 फीसदी कोइरी, मौर्य, कुशवाहा, सैनी मतदाताओं ने बीजेपी को वोट दिया था, 2022 में उसी वर्ग के 64 फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी की झोली भर दी है। इसी वर्ग के मतदाताओं ने 2017 में बीएसपी को 22 फीसदी वोट दिया था लेकिन इस बार इस वर्ग से महज 4 फीसदी वोट बीएसपी को मिला। इस तरह इस वर्ग का वोट भी काफी तादाद में बीजेपी और कुछ सपा की तरफ चला गया है।
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वैश्य और अन्य उच्च जातियां

बीजेपी का वैश्य और अन्य उच्च जातियों का वोट बैंक अपनी जगह कायम है या फिर वो लगातार बढ़ रहा है। 2017 में 71 फीसदी वैश्यों ने बीजेपी को चुना था, इस बार 83 फीसदी वैश्य ने उसे वोट दिया है। इसी तरह अन्य अपर कास्ट का जहां 2017 में 70 फीसदी वोट बीजेपी को मिला, जबकि 2022 में 78 फीसदी वोट मिला।
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क़मर वहीद नक़वी
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