यूपी में  2 करोड़ 91 लाख (करीब 19%) मतदाताओं के फॉर्म अभी तक एसआईआर के दौरान जमा नहीं हो सके हैं। यह भी कह सकते हैं कि 19 फीसदी मतदताओं ने फॉर्म लौटाए ही नहीं या उनसे बीएलओ फॉर्म ले नहीं सके।  यूपी के मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) नवदीप रिनवा के अनुरोध पर केंद्रीय चुनाव आयोग ने एसआईआर की अवधि 26 दिसंबर कर दी। हालांकि ये अवधि पहले 11 दिसंबर तक बढ़ाई गई थी। चुनाव आयोग 31 दिसंबर 2025 तक ड्राफ्ट मतदाता सूची का प्रकाशन करेगा। लेकिन यूपी में 2 करोड़ 91 लाख मतदाता कहां गए, यह सवाल अपनी जगह मौजूद है। जिसका संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा।
  • 2.91 करोड़ मतदाताओं के फॉर्म जमा नहीं हैं
  • 15 दिनों तक एसआईआर की सीमा बढ़ा दी गई है
  • 15 दिनों में यह टारगेट पूरा करने के लिए बीएलओ को क्या करना होगा
  • 19 लाख 40 हजार फॉर्म अगर प्रतिदिन जमा कराए गए तो ही 2.91 करोड़ फॉर्म जमा करने का टारगेट पूरा हो सकता है
बुधवार तक प्रदेश में 2003 की मतदाता सूची के हिसाब से 76% मतदाताओं का मिलान पूरा कर लिया गया। जबकि 24% मतदाताओं का मिलान अभी भी लंबित है। इस तरह चुनाव आयोग अब तक दो बार एसआईआर प्रक्रिया बढ़ा चुका है।  ये जो 24% मतदाताओं का मिलान मूल मतदाता सूची से बाकी है तो कहीं वो यही 2 करोड़ 91 लाख मतदाता तो नहीं हैं। यह आंकड़ा कई सवाल खड़े कर रहा है। 
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राज्य में अगले 15 दिनों तक 19 लाख 40 हजार फॉर्म रोज़ाना जमा करने पर ही 2.91 करोड़ का टारगेट पूरा हो सकता है। तो सवाल यही है कि इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं के फॉर्म क्यों नहीं एकत्र हो पाए? क्या यह चुनावी मशीनरी की अक्षमता, संसाधनों की कमी या राजनीतिक हस्तक्षेप का नतीजा है? जब बीएलओ रो-रोकर अपने दबाव का हाल बता रहे थे, कथित तौर पर खुदकुशी कर रहे थे, तब अजीबोगरीब ढंग से चुनाव आयोग और बीजेपी इसका काउंटर कर रही थीं। अब खुद यूपी के सीईओ कह रहे हैं कि 19 फीसदी फॉर्म तो वापस लौटे ही नहीं।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 27 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित चुनावी सूचियों में उत्तर प्रदेश में 15.44 करोड़ मतदाता दर्ज हैं। एसआईआर अभियान के दौरान, बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) ने 15.43 करोड़ (99.97%) मतदाताओं को गणना फॉर्म वितरित किए, लेकिन केवल 80.29% फॉर्म ही वापस प्राप्त हुए, जिनमें मतदाता या परिवार के सदस्य के हस्ताक्षर थे। शेष 19% फॉर्म असंग्रहणीय (uncollectible) हैं। जिनमें अनट्रेसेबल, मृत, डुप्लिकेट, स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाता और फॉर्म लेकर वापस नहीं करने वाले मतदाता हैं। यही आंकड़ा चिंताजनक है, क्योंकि यह चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है। क्या इतनी बड़ी संख्या में 'गायब' मतदाता वोटर फ्रॉड का संकेत हैं?

विश्लेषण से पता चलता है कि राज्य में 1.27 करोड़ (8.22%) मतदाताओं को स्थायी रूप से स्थानांतरित, 46 लाख (3%) को मृत, 23.69 लाख (1.5%) को डुप्लिकेट, 84.73 लाख (5.5%) को अनट्रेसेबल और 9.98 लाख (0.62%) को फॉर्म न लौटाने वाले के रूप में चिह्नित किया गया है। एसआईआर अभियान 4 नवंबर को शुरू हुआ था। इसे 4 दिसंबर तक पूरा होना था। फिर तारीख बढ़ा कर 11 दिसंबर की गई और अब इसे 26 दिसंबर कर दिया गया है। इससे पता चलता है कि एसआईआर प्रक्रिया की शुरुआती योजना ही कमजोर थी। क्या चुनाव आयोग और राज्य चुनाव अधिकारियों ने इतनी बड़ी चुनौती का आकलन ठीक से नहीं किया?
एक तरफ यह स्थिति है कि रोजाना 19 लाख 40 हजार फॉर्म जमा कराए जाएं तब 2.91 करोड़ बचे या वापस नहीं लौटे फॉर्मों का टारगेट पूरा होगा। दूसरी तरफ यूपी के सीईओ का कहना है कि बुधवार तक 99.13% एकत्रित फॉर्मों का डिजिटाइजेशन पूरा हो चुका है, और गुरुवार यानी 12 दिसंबर तक 100% हो जाएगा। उन्होंने जोर दिया कि 2.91 करोड़ मतदाताओं की जांच ड्राफ्ट चुनावी सूचियों के प्रकाशन से पहले पूरी की जाएगी, और मृत, स्थानांतरित, डुप्लिकेट तथा अनट्रेसेबल मतदाताओं के नाम हटा दिए जाएंगे। 

  • लेकिन यह दावा कितना व्यावहारिक है? इतनी बड़ी संख्या की जांच में कितना समय लगेगा, और क्या यह प्रक्रिया निष्पक्ष रहेगी? 19 लाख 40 हजार मतदाताओं का प्रतिदिन सत्यापन कितना सही हो पाएगा, इसका पता ड्राफ्ट मतदाता सूची से 31 दिसंबर को चल जाएगा।
कुल मिलाकर, ईसीआई द्वारा एसआईआर का विस्तार एक सही कदम तो है, लेकिन यह चुनावी प्रणाली की अंदरुनी कमजोरियों जैसे संसाधनों की कमी, समय प्रबंधन की असफलता और संभावित राजनीतिक प्रभाव को छिपाने की कोशिश लग रही है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में स्वच्छ चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अधिक मजबूत और समयबद्ध रणनीतियों की जरूरत है, वरना यह एसआईआर समय विस्तार सवालों की संख्या बढ़ाएगा, कम नहीं करेगा।
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सुप्रीम कोर्ट में बिहार विधानसभा चुनाव के समय से ही एसआईआर प्रक्रिया को लेकर सुनवाई जारी है। अभी तक अदालत कोई फैसला नहीं दे सकी है। इस बीच बिहार का चुनाव हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट टुकड़ों-टुकड़ों में निर्देश जारी कर रहा है। अभी पश्चिम बंगाल का मुद्दा गरमाया हुआ है। वहां बीएलओ को मिली कथित धमकियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार और सीईओ को निर्देश दे रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट सीनियर वकील कपिल सिब्बल के इस सवाल पर चुप है कि यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 में है, जबकि वहां भी चुनाव आयोग ने एक महीने में ही एसआईआर कराने का निर्देश दिया था। जिसे बढ़ाकर अब 26 दिसंबर कर दिया है, जबकि ड्राफ्ट मतदाता सूची 31 दिसंबर तक जारी होगी। यूपी की एसआईआर के घटनाक्रम में कुछ न कुछ गड़बड़ ज़रूर है। जिसका पता शायद बाद में चले।