भारत में जहां धर्म को लेकर इतनी नफरत फैल रही है, वहीं दुनिया के दूसरे देशों में लोग अपने धर्म को ही छोड़ रहे हैं। इस रिपोर्ट को पढ़िए और जानिए कि ऐसा क्यों हो रहा है।
दुनिया में ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है जो अपने धर्म से ऊब कर अपना धर्म ही छोड़ रहे हैं। धर्म छोड़ने वालों की संख्या आज इतनी बढ़ गई है कि ‘धर्महीनता’ चौथा सबसे बड़ा धर्म बन गया है। जी हाँ, आपने सही समझा, ये धर्म छोड़ने वाले लोग किसी और धर्म में नहीं जा रहे हैं। वे अपने आप को या तो नास्तिक करार देते हैं या फिर अग्नोस्टिक, यानि वैसे लोग जो इस बात को लेकर निश्चिंत नहीं हैं कि कोई ईश्वर है भी या नहीं... कुछ लोग अपने धर्म के कॉलम में ‘कोई धर्म नहीं’ भी लिखते हैं।
नई प्यू रिपोर्ट में कहा गया है कि ईसाई और बौद्ध धर्म में पैदा हुए सैकड़ों/हजारों लोग अब अपने धर्म को छोड़ रहे हैं। वे तमाम लोग खुद को ‘धर्महीन’ बता रहे हैं। प्यू रिसर्च सेंटर ने पूरे 36 देशों में सर्वे करके यह रिपोर्ट तैयार की है। इसमें ही यह बात सामने आई कि अब "धर्म नहीं मानने वाले लोग" दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धार्मिक समूह बन गए हैं। अगर आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो इस समय दुनिया में 31.6% ईसाई धर्म मानने वाले, 25.8% मुस्लिम और और 15.1% लोग हिन्दू हैं। धर्म न मानने वाले लोगों की संख्या 14.4% है।
सबसे ज्यादा बदलाव ईसाई और बौद्ध धर्म के लोगों में देखा गया है। इलाकों के लिहाज से यूरोप, अमेरिका और पूर्वी एशिया में यह चलन तेज़ी से बढ़ा है। यूरोप के स्वीडन में 29 प्रतिशत लोग जो पहले ईसाई थे, अब किसी भी धर्म से जुड़ाव नहीं रखते। वहीं स्पेन में 33% लोगों ने ईसाई धर्म छोड़कर धर्म हीनता को अपनाया।
ऐसे ही आँकड़े लगभग नीदरलैंड्स, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस , जर्मनी और इटली की मिलेगी। यहाँ तक कि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में भी बड़ी संख्या में लोग ईसाई धर्म छोड़कर धर्महीन हो रहे हैं। अमेरिका में 16%, कनाडा में 25 % और ऑस्ट्रेलिया में 24 % लोगों ने ईसाई धर्म छोड़ दिया और धर्महीन हो गये।
वहीं जापान में 24 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 13 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म छोड़ चुके हैं। दक्षिण कोरिया में धर्म छोड़ने का मामला बड़ा महत्वपूर्ण है। वहाँ करीब 50 प्रतिशत लोग अपने बचपन के धर्म को छोड़ चुके हैं। सिंगापुर में भी 5% लोगों ने बौद्ध धर्म छोड़कर बिना किसी धर्म का हो जाना चुना।
इन देशों में कई लोग धर्म को अब रोज़ की ज़िंदगी का हिस्सा नहीं मानते। वे इसे सिर्फ परंपरा का दर्जा देते हैं। वमाना जा रहा है कि शिक्षा, विज्ञान और निजी आज़ादी के चलते धर्म का असर धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। युवा पीढ़ी खुद सोचकर फैसले ले रही है और धर्म को जरूरी नहीं मान रही है।
कमाल की बात यह है कि यूं तो हिन्दू धर्म को मानने वालों में धर्म छोड़ने का अधिक उत्साह नज़र नहीं आया पर अमेरिका और श्रीलंका में क्रमशः 18% और 11% पैदाइशी हिंदुओं में धर्म छोड़ दिया है।
भारत के मामले में चित्र एकदम अलग है। यहाँ धर्म को लेकर बहुत अधिक जुड़ाव है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों में धर्महीन होने वाले लोगों की संख्या लगभग नगण्य रही। यहाँ धर्म को आस्था के अतिरिक्त पहचान, संस्कृति और समाज का हिस्सा माना जाता है।
यहाँ गौर करने वाली बात यह भी है कि भारत में धर्म छोड़ना आसान नहीं माना जाता है। यहां धर्म का संबंध परिवार, समाज, जाति और रीति-रिवाज़ों से जुड़ा होता है। इसी वजह से ज़्यादातर लोग जीवनभर अपने धर्म में बने रहते हैं। समाज में धर्म का इतना गहरा असर है कि लोग धर्म छोड़ने से डरते हैं या हिचकिचाते हैं।
हिन्दू और इस्लाम धर्मों में धर्म छोड़ने वालों की नगण्य संख्या की एक वजह इन धर्मों की सामाजिक और पारिवारिक मज़बूती है। इन दोनों धर्मों में धार्मिक शिक्षा, धार्मिक आयोजन और रीति-रिवाज़ का बड़ा महत्व है, जो लोगों को धर्म से जोड़े रखते हैं।
इससे ठीक अलग प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक बौद्ध धर्म वाले देशों में लोग धर्म को एक आध्यात्मिक अभ्यास की तरह मानते हैं। यह उनके लिए जीवन के हर हिस्से का नियम नहीं है। इसलिए बौद्ध धर्म माँने वालों का धर्म छोड़ना आसान है।
ईसाई धर्म में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। पश्चिमी देशों में लोग अब चर्च जाना या धार्मिक नियमों को मानना जरूरी नहीं समझते। वे खुद को "स्पिरिचुअल" यानी आध्यात्मिक तो मानते हैं, लेकिन किसी धर्म से जुड़ा हुआ नहीं। इस रिपोर्ट को परखने पर यह भी नज़र आया कि धर्म छोड़ने वाले लोगों के मामले जहां भी अधिक हैं वे देश अमूमन सम्पन्न हैं। केवल श्रीलंका अपवाद है।
इससे दिखता है कि दुनिया में धर्म के प्रति सोच बदल रही है। जहां कुछ देश धर्म से दूर हो रहे हैं, वहीं भारत जैसे देश अब भी धर्म को अपनी पहचान का बड़ा हिस्सा मानते हैं।