9 अगस्त 2024 को जब कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की पोस्टग्रेजुएट ट्रेनी डॉक्टर के बलात्कार और हत्या की खबर सामने आई तो पूरा देश हिल गया। महिला होने के नाते ख़ुद को यह समझाना मुश्किल था कि उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाली लड़कियाँ भी सुरक्षित नहीं हैं। छोटी क्लास से लेकर पोस्टग्रेजुएट तक, सामान्य शिक्षा से लेकर उच्च स्तरीय तकनीकी शिक्षा तक, कहीं कोई सुरक्षित नहीं है, यह एहसास रीढ़ में सिहरन देने वाला है। यह एहसास बहुत चुभन और ग़ुस्सा पैदा करता है कि एक महिला का अस्तित्व पुरुष की निगाह में एक शरीर से ज़्यादा कुछ नहीं। एक महिला कितनी भी योग्य क्यों न हो, पुरुष के पास उसकी योग्यता को पढ़ने या समझने के लिए कोई रिसीवर नहीं है, वह सिर्फ़ शरीर से अधिक कुछ पढ़ ही नहीं पाता। इन तमाम बलात्कार की घटनाओं से उत्पन्न असुरक्षा का बेहिसाब ‘फोर्स’ महिलाओं को घरों के भीतर रहने को मजबूर कर रहा है। हर एक सरकार, हर एक नेता, हर एक दल महिलाओं में सुरक्षा का भाव पैदा करने में नाकाम रहा है।
सरकारों की यह नाकामी बहुत ही बेशर्मी भरी है। जिन्हें सुरक्षा का ज़िम्मा दिया गया है, जिन्हें क़ानून बनाने के लिए अधिकृत किया गया है, जिन्हें संविधान ने ‘नागरिक प्रथम’ का ज़रूरी संदेश दिया है वो मौकापरस्त भाषणबाजी के अलावा कुछ और नहीं कर पा रहे हैं। मुझे याद है जब कोलकाता की यह घटना सामने आई तब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जमकर राज्य की टीएमसी सरकार को कोसा। पीएम मोदी ने महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली के दौरान अगस्त में कहा कि ‘महिलाओं की सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। मैं एक बार फिर सभी राज्य सरकारों से कहूंगा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध अक्षम्य हैं। चाहे अपराधी कोई भी हो, उसे बख्शा नहीं जाना चाहिए।’ पीएम ने आगे कहा कि ‘मैंने इस मुद्दे को लाल क़िले से भी उठाया है… अपनी बहनों बेटियों की पीड़ा को उनके ग़ुस्से को मैं समझ रहा हूं’। बात बहुत जरूरी थी लेकिन क्या पीएम इसे लेकर गंभीर थे? क्या पीएम मोदी महिलाओं के गुस्से को समझ रहे हैं? पीएम मोदी ने जब यह बात कही थी तब उसके दो महीने बाद ही महाराष्ट्र में विधान सभा चुनाव होने थे, तो क्या पीएम मोदी ने ये बातें चुनाव के कारण कहीं या वे अपराधियों को मिलने वाली कड़ी सजा को लेकर गंभीर थे?