डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि ‘भारत में लोकतंत्र केवल एक ऊपरी परत (top-dressing) है, जबकि इस देश की ज़मीन मूल रूप से गैर-लोकतांत्रिक है।’ आंबेडकर कहना चाह रहे थे कि भारत में लोकतंत्र ऊपर-ऊपर से दिखता है, लेकिन समाज की जड़ें असमानता और भेदभाव में गहराई तक धंसी हैं। आंबेडकर के अनुसार, जाति-प्रथा ही भारतीय जीवन के इस गैर-लोकतांत्रिक स्वभाव का मुख्य कारण है, क्योंकि यह मनुष्य को जन्म के आधार पर ऊँच-नीच में बाँट देती है, जिससे बराबरी और स्वतंत्रता की भावना पनप नहीं पाती। आंबेडकर कहना चाहते थे कि जब तक समाज में जाति-भेद रहेगा, तब तक भारत का लोकतंत्र सिर्फ ऊपर से दिखने वाला नकली आवरण ही रहेगा, असली लोकतंत्र नहीं बन पाएगा।
दलित उत्पीड़न: भारत का संविधान लचीला है, कमज़ोर नहीं!
- विमर्श
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- 12 Oct, 2025

सीजेआई गवई और भारत का संविधान।
CJI बीआर गवई और दलित आईपीएस अफसर की उत्पीड़न घटनाओं के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत का संविधान अपनी मूल भावना खो रहा है?
बीते 75 सालों में काफ़ी कुछ बदल गया, भारत ग़ुलाम से आज़ाद हो गया; अंग्रेजी कानून और सत्ता को समाप्त कर भारत की अपनी कानून व्यवस्था और संविधान लागू कर दिया गया; यहाँ के नागरिक अपने प्रतिनिधियों को ख़ुद चुनकर विधायिकाओं में भेजने लगे; नागरिकों की सुरक्षा और सहूलियत के लिए कानून बनाये जाने लगे; उच्च शिक्षा और शोध आदि के संस्थान बनाये गए जिससे भारत एक प्रगतिशील देश बन सके। लेकिन इस देश में जिस बात ने बदलने से इनकार कर दिया वो थी गहरे धंसी हुई जातीय भेदभाव, ऊंच नीच के भेदभाव की मानसिकता। पिछले 75 सालों में कई बार ऐसा लगा जैसे जातीय शोषण कम होने वाला है और शायद यह एक दिन ख़त्म भी हो जायेगा। लेकिन अचानक कुछ ऐसी घटनाएँ घटने लगीं और इतनी संख्या में घटने लगीं कि संविधान निर्माण के 75 सालों का जश्न अब फीका पड़ गया है।