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प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों पर ‘चुप’ क्यों?

उत्तर प्रदेश में माफ़िया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या ने उस ख़बर को दबा दिया जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए, द वायर के एक साक्षात्कार कार्यक्रम में कहा कि “प्रधानमंत्री जी को भ्रष्टाचार से कोई बहुत नफरत नहीं है”। भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ़ ऐसा आरोप कोई सामान्य बात नहीं है। कोई भी दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि सत्यपाल मलिक द्वारा प्रधानमंत्री मोदी पर लगाया गया भ्रष्टाचार संबंधी आरोप कितना सही है लेकिन भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह इस आरोप पर निष्क्रिय प्रतिक्रिया दी है, वह तमाम सवालों को जरूर खड़ा करता है।

सत्यपाल मलिक जिन्होंने पीएम मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है वह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। 28 साल की उम्र में पहली बार जनप्रतिनिधि बने मलिक 2012 में भाजपा के उपाध्यक्ष और 2017 से 2022 के बीच 4 राज्यों के राज्यपाल भी रह चुके हैं। राज्यपाल के रूप में उनका सबसे अहम पड़ाव तत्कालीन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का राज्यपाल बनना था। सत्यपाल मलिक जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल उस समय रहे जब पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद-370 को हटाने का फैसला लिया था। अनुच्छेद-370 को हटाने की प्रक्रिया सत्यपाल मलिक की देखरेख में ही हुई। 1951 में जनसंघ के बनने से लेकर 1980 में भाजपा की स्थापना और उसके बाद से अनुच्छेद-370 को हटाया जाना भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा से राजनीतिक वर्चस्व का सबसे अहम एजेंडा रहा है। ऐसे में इस बात को समझने में ज्यादा समस्या नहीं होनी चाहिए कि सत्यपाल मलिक, भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कितने अहम और विश्वास के पात्र रहे होंगे!
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इसके बावजूद अगर सत्यपाल मलिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार से जोड़ रहे हैं तो उनकी बात को ध्यान से सुना जाना चाहिए। मलिक ने CRPF जवानों के काफ़िले पर हुए हमले को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल पर सवाल उठाए। पुलवामा हमले के समय जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने यह खुलासा किया कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने उनसे इस मामले में (सरकार की गलती को लेकर) ‘चुप’ रहने को कहा था। सत्यपाल मलिक द्वारा किए गए खुलासों को लेकर ‘टाइमिंग’ पर सवाल और बहस हो सकती है लेकिन उन्होंने जिस दृढ़ता से 2019 लोकसभा चुनावों के पहले हुई पुलवामा त्रासदी और भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री पर सवाल उठाए हैं उन पर चर्चा बहुत जरूरी है। लेकिन ताज्जुब की बात तो यह है कि इस मामले को लेकर जहां पीएम मोदी को नैतिक आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिए वहीं उन्होंने इस मामले पर एक शब्द भी बोलना उचित नहीं समझा।  
एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसे जनता के सामने बोलने में बात करने में आनंद आता है, जो ‘मन की बात’ और ‘परीक्षा पे चर्चा’ जैसे नवाचार के कार्यक्रम करता है, अपने किसी भी पब्लिक सम्बोधन में सामान्यतः एक घंटे से कम नहीं बोलता है वह इतने गंभीर मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं बोला! 

खामोशी के अपने मायने होते हैं। इस खामोशी के भी होंगे! लेकिन गौर से देखा जाए तो कुछ खास मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री सदा से खामोश रहे हैं उसमें भ्रष्टाचार सबसे अहम है।


जब भी किसी राजनीतिक दल या प्रतिद्वंदी पर उन्हें आरोप लगाना होता है पीएम मोदी कभी नहीं चूकते लेकिन जब भ्रष्टाचार का यह तीर उनके स्वयं के ऊपर या उनके किसी मंत्री या सांसद या सहयोगी पर आता दिखता है तो अचानक से उनमें एक खास किस्म की ‘खामोशी’ छा जाती है। मानो खामोशी न हुई कोई ‘डिफेन्स मेकनिज़्म’ हो!
21 अप्रैल को सिविल सर्विस डे के मौके पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि “जो राजनीतिक दल सत्ता में आया है वह टैक्स के पैसे का इस्तेमाल अपने लिए कर रहा है या देश के हित में, उसका उपयोग कहाँ हो रहा है यह आप लोगों (लोकसेवकों) को देखना ही होगा दोस्तों!” प्रधानमंत्री आगे कहते हैं “वो राजनीतिक दल अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल कर रहा है या सभी का जीवन आसान बनाने के लिए उस धन का इस्तेमाल कर रहा है, वह राजनैतिक दल सरकारी पैसे से अपना प्रचार कर रहा है या ईमानदारी से लोगों को जागरूक कर रहा है..ये आप लोगों को देखना है..”।

यह देखना सुखद है कि प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर चिंता है, लेकिन यह दुखद और चिंता की बात है कि प्रधानमंत्री अपने ऊपर लगे आरोपों पर हमेशा ‘चुप’ रह जाते हैं।


जब राहुल गाँधी ने बहुत दृढ़ता के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी के बीच ऐसे रिश्तों को उजागर किया जो कि भ्रष्टाचार से संबंधित हैं, तो पीएम मोदी ने जवाब क्यों नहीं दिया? जब राहुल गाँधी ने शेल कंपनियों के माध्यम से अडानी की कंपनियों मे 20 हजार करोड़ रुपये निवेश करने वाले के बारे में पूछा तो पीएम मोदी ने जवाब क्यों नहीं दिया? जब राहुल गाँधी ने नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और पंजाब नेशनल बैंक में हुए घोटाले को लेकर सवाल पूछा तो पीएम मोदी ने जवाब क्यों नहीं दिया। जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने पीएम मोदी की डिग्री को लेकर संदेह दर्शाते हुए दिल्ली विधानसभा में बोलते हुए न सिर्फ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया बल्कि यह तक कह डाला कि अडानी की कंपनियों में नरेंद्र मोदी का पैसा लगा हुआ है तब भी पीएम मोदी ने कोई जवाब नहीं दिया, और अब जब सत्यपाल मलिक सीधे सीधे उन पर भ्रष्टाचार को लेकर आरोप लगा रहे हैं तब भी प्रधानमंत्री जवाब नहीं दे रहे हैं। सत्यपाल मलिक के अनुसार, प्रधानमंत्री ने तब भी कोई जवाब नहीं दिया जब उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर और गोवा में चल रहे भ्रष्टाचार के खेल के खिलाफ राज्यपाल की हैसियत से प्रधानमंत्री को अवगत कराया। सीधे राज्यपाल द्वारा शिकायत के बावजूद पीएम मोदी ने चुप ही रहना बेहतर समझा।
अडानी और पीएम मोदी के बीच क्या है यह तो नहीं पता लेकिन हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी ने किसी भी पत्रकार, मीडिया संस्थान या रिसर्चस्कॉलर के खिलाफ कोई मानहानि का केस नहीं किया जैसा की वह पहले पुरंजय ठाकुरता के खिलाफ कर चुके थे। आखिर क्या कारण है कि किसान आंदोलन के दौरान छोटी सी रिपोर्टिंग करने वाले एक यूट्यूब चैनल लोकतंत्र टीवी पर करोड़ों रुपये के मानहानि का दावा ठोंकने वाली अडानी की कंपनी राहुल गाँधी द्वारा संसद में और संसद के बाहर लगाए गए आरोपों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोली? राहुल गाँधी के खिलाफ तो इस समय मानहानि के मुकदमों की बौछार हो रही है, ऐसे में अडानी भी क्यों नहीं इस बौछार में शामिल हो जाते?
शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खामोशी को अपना हथियार बना चुके हैं इसीलिए जब उन पर भ्रष्टाचार जैसे आरोपों को लेकर बात होती है तो वह खामोशी ओढ़ लेते हैं। भारत में तो ‘प्रतिक्रिया’ देने की परंपरा रामायण काल से चली आ रही है। सीता पर लगे आरोपों पर सीता और राम को भी प्रतिक्रिया देनी पड़ी थी। जब कोई व्यक्ति जनसाधारण के बीच कार्य करता है तो उसमें जवाबदेही होनी ही चाहिए। वर्ना यदि वह भ्रष्ट के रूप में चिन्हित हो जाए तो उसे पद त्याग में तकलीफ नहीं होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी कोई जवाब नहीं दिया था जब वित्त मंत्रालय और नीति निर्मात्री संस्था नीति आयोग द्वारा लिखित विरोध किया गया और सवाल किया गया कि अडानी पोर्ट्स को 6 बंदरगाह एक साथ क्यों दे दिए गए? नीति आयोग वही संस्था है जिसे पीएम मोदी ने बड़े ‘विज़न’ के साथ सत्ता में आते ही योजना आयोग को प्रतिस्थापित करके बनाया था। 

अडानी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘कद’ बहुत संदेह के घेरे में है इसमें कोई शक नहीं है। काले धन के खिलाफ़ मसीहा बनने की छवि लेकर सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अडानी के खिलाफ कोई कैबिनेट जांच क्यों नहीं बिठाते?


जिसमें उन्हे छोड़कर पाँच केन्द्रीय मंत्री हों जो निष्पक्षता के साथ अडानी मामले की जांच करें साथ ही विपक्ष को भी ऐसी 5 सदस्यीय कमेटी बनाकर अडानी पर जांच का न्योता दें और विपक्ष की JPC वाली मांग को भी प्रधानमंत्री को आगे बढ़कर स्वीकारना चाहिए ताकि स्वघोषित ईमानदार की छवि, भ्रष्टाचार और ‘कॉर्पोरेट डाइनेस्टी’ के खिलाफ सोच-विचार और नीयत जनता के सामने भी आ जाए। लेकिन बजाय अडानी के खिलाफ कोई जरूरी, सशक्त और निर्णयकारी कार्यवाही की जाती प्रधानमंत्री कर्नाटक के चुनावों में जीत को लेकर इतना मशगूल हैं कि उन्हे यह भी याद नहीं कि जिस ईश्वरप्पा नाम के भाजपा नेता को फोन करके उसे पार्टी के साथ खड़े रहने के लिए वो धन्यवाद दे रहे हैं वह करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार में लिप्त है। 
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ईश्वरप्पा कर्नाटक सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्री थे लेकिन उन्हे अपने पद से इसलिए इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि एक कॉन्ट्रैक्टर ने ईश्वरप्पा पर लोक निर्माण कार्यों में 40% कमीशन का आरोप लगाया और एक दिन परेशान होकर कॉन्ट्रैक्टर ने आत्महत्या कर ली थी। भले ही ईश्वरप्पा को कर्नाटक पुलिस द्वारा क्लीन चिट दे दी गई हो लेकिन क्या पीएम मोदी को नहीं सोचना चाहिए था कि मात्र चुनावी फायदे के लिए एक ऐसे व्यक्ति को व्यक्तिगत फोन कॉल करना जिसकी वजह से एक आदमी आत्महत्या कर लेता है? लेकिन प्रधानमंत्री इस बात पर सवाल किए जाने पर भी चुप ही रहेंगे क्योंकि “भ्रष्टाचार से उन्हें कोई बहुत नफ़रत नही है”।

प्रधानमंत्री इस बात पर भी हमेशा चुप रहे कि अरबों खरबों का गबन करके देश छोड़कर भाग जाने वाले नीरव मोदी, ललित मोदी और मेहुल चौकसी भारत के कानून के अंतर्गत कब लाए जाने वाले हैं?


प्रधानमंत्री इस बात पर भी चुप रहे हैं कि असम के मुख्यमंत्री हिमन्ता बिस्वा सरमा, केन्द्रीय मंत्री नारायण राणे, मुकुल रॉय, बीएस येदियुरप्पा, सुवेन्दु अधिकारी और व्यापम मामले में शिवराज सिंह चौहान पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं हुई? जिन लोगों और नेताओं पर कार्यवाही नहीं होती इत्तेफाक से वह सभी भाजपा के नेता और समर्थक ही क्यों होते हैं, क्या पीएम मोदी इस बात का जवाब देंगे? आखिर क्यों न मान लिया जाए कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को भ्रष्टाचार से सच में परहेज नहीं है खासकर तब तक, जब तक कि भ्रष्टाचारी उनकी ही अपनी पार्टी का हो या ऐसा व्यक्ति या दल हो जो संसद और संसद के बाहर पीएम मोदी और उनकी सरकार की हर नीति का समर्थन करता हो? उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी के खिलाफ 31 आपराधिक मामले हैं जो सीबीआई, ED समेत तमाम अन्य संस्थाओं से जुड़े हैं लेकिन अभी तक उनके खिलाफ कोई केस अंतिम परिणाम तक नहीं पहुँचा, क्यों? शायद इसलिए कि वह हमेशा संसद में और बाहर केंद्र सरकार के साथ खड़े दिखते हैं, लेकिन दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को हाल ही के एक मामले में जेल तक भेज दिया गया, क्यों? इसका जवाब खोजा जाना चाहिए! 

मुद्दा यह नहीं है कि किसे सजा हुई किसे नहीं, यह भी मुद्दा नहीं है किसे जल्दी हुई किसे देर में, मुद्दा असल में यह है कि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं, यदि यह मुद्दा होता तो भ्रष्टाचारी की पार्टी, संगठन और निष्ठा को देखे बगैर उसपर कार्यवाही होती, जो कि नहीं हो रही है।


शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुप रहने की रणनीति इसलिए बनाई है क्योंकि उनके पास जवाब नहीं है। ऐसा जवाब जिससे जनता संतुष्ट हो सके। वरना सबसे पहले जवाब तो वो पीएम केयर फंड को लेकर देते। आखिर वो क्यों ऐसा सोचते हैं कि जनता को यह जानने का हक नहीं है कि जनता का पैसा प्रधानमंत्री द्वारा कहाँ खर्च किया गया? वो स्वयं भी तो सिविल सेवा डे के अवसर पर दिए संबोधन के दौरान यही सवाल उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री नैतिकता की बात हमेशा अपने भाषणों में करते हैं। 

यदि वे सच में इतने ईमानदार हैं तो इस बार एक कदम आगे बढ़कर वह विपक्ष द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब के लिए उनके और अडानी के बीच के आर्थिक संबंधों के जांच की खुली चुनौती दे देते? आखिर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई राहुल गाँधी और विपक्ष की ही लड़ाई क्यों बन गई है? जबकि इसका निदान प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केंद्र सरकार के पास है। बस उन्हे इतना करना है कि भ्रष्टाचार जैसे संगीन मुद्दे को लेकर हमेशा चुप्पी साध लेने के बजाय उस पर संसद और संसद के बाहर वस्तुनिष्ठ प्रतिक्रिया दें ताकि देश यह जान सके कि प्रधानमंत्री किसी उद्योगपति, भगोड़े या अपराधी राजनेता के साथ नहीं बल्कि देश के साथ खड़े हैं। 
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वंदिता मिश्रा
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