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क्या राहुल गांधी की संसद सदस्यता इस समय जाना एक इत्तेफाक है?

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान कर्नाटक की एक रैली में काँग्रेस नेता राहुल गाँधी द्वारा नीरव मोदी, ललित मोदी जैसे भगोड़े अपराधियों को लेकर की गई टिप्पणी को उन सभी लोगों के साथ जोड़ दिया गया जिनके नाम के पीछे ‘मोदी’ लगा हुआ है। हिन्दू, मुस्लिम और पारसियों तक फैले इस ‘मोदी’ सरनेम (सोहराब मोदी, सर होमी मोदी,काल्पेन मोदी, करिश्मा मोदी,गूजरमाल मोदी,सुभाष मोदी,मुरूगप्पा मोदी,पीलू मोदी, रूसी मोदी) को समाहित करने वाला एक स्वघोषित नेता (पूर्णेश मोदी) उभर गया, जो इत्तेफ़ाकसे भारतीय जनता पार्टी का सदस्य और विधायक निकला और उसने कर्नाटक में दिए गए भाषण को लेकर गुजरात में मानहानि का मामला दर्ज करवा दिया। 23 मार्च को सूरत के चीफ जूडिशल मजिस्ट्रेट ने राहुल गाँधी को 15 हजार के जुर्माने के साथ 2 साल की सजा सुना दी। 
अभी जबकि राहुल गाँधी के पास उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय जाने का रास्ता बचा हुआ था साथ ही सूरत के न्यायालय ने ही सजा को 30 दिनों के लिए निरस्त कर दिया था, इसके बावजूद लोकसभा के सचिवालय ने सजा मिलने के 24 घंटे के अंदर ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 8(3) के अंतर्गत राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता को निरस्त कर दिया।
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चीफ जूडिशल मजिस्ट्रेट की अदालत ने फैसला किस मेरिट पर लिया उसकी जांच करने के लिए उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय हैं। पूरी संभावना है कि मामले की मेरिट और निचली अदालत के इरादे को लेकर सही प्रश्न उठाए जाएंगे। लेकिन जिस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है वह यह है कि भारतीय राजनीति इन दिनों कानून की आड़ में इत्तेफ़ाकका खेल बन गई है। तमिल अभिनेत्री खुशबू सुंदर ने राहुल गाँधी की कर्नाटक रैली से लगभग एक साल पहले 15 फरवरी 2018 को ट्विटर पर लिखा “यहाँ #मोदी वहाँ #मोदी जहां देखो #मोदी..लेकिन यह क्या? हर #मोदी के आगे #भ्रष्टाचार सरनेम लगा हुआ है..तो बात को समझो..#मोदी मतलब #भ्रष्टाचार..चलिए #मोदी का मतलब बदलकर भ्रष्टाचार कर दिया जाए...अच्छा जंच रहा है..#नीरव #ललित #नमो = भ्रष्टाचार”। 
खुशबू सुंदर के इस ट्वीट से न किसी पिछड़ी जाति का अपमान हुआ और न ही प्रधानमंत्री का। उनके खिलाफ कोई भी मानहानि का मुकदमा नहीं चला। ऐसा क्यों हुआ होगा नहीं पता बस इत्तेफ़ाकइतना है कि खुशबू सुंदर अब भारतीय जनता पार्टी की बड़ी नेता बन गईहैं और स्वयं केंद्र सरकार ने उन्हे राष्ट्रीय महिला आयोग का सदस्य बनाया है। 
भाजपा और उसके प्रवक्ता प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह बताने में लगे हुए हैं कि राहुल गाँधी द्वारा नीरव मोदी और ललित मोदी को भ्रष्टाचारी कहने से सम्पूर्ण पिछड़ी जाति का अपमान हुआ है। जबकि यह सर्वविदित है कि मोदी सरनेम का अर्थ किसी जातीय समूह से लगाना न सिर्फ अनुचित है बल्कि एक किस्म का मिथ्या प्रचार भी है। इत्तेफ़ाकसे सिर्फ राहुल गाँधी द्वारा दिए भाषण से ही ‘मोदी’ सरनेम का अपमान हुआ है लेकिन खुशबू सुंदर जैसे नेता जो भारतीय जनता पार्टी की छतरी में हैं वह इस अपराध से मुक्त क्यों हैं, यह बात मुझे नहीं समझ में आ रही है?
गौतम अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर राहुल गाँधी के सवाल सत्ता पक्ष को एक्स-रे की तरह जांच रहे थे, राहुल गाँधी के द्वारा संसद में दिया गया भाषण और उसमें अडानी को लेकर पीएम मोदी से जो सवाल पूछे गए उनमे से एक का भी जवाब प्रधानमंत्री ने नहीं दिया, देश में इससे पहले मीडिया और विपक्ष के सवालों का इससे कम जवाब देने वाला प्रधानमंत्री नहीं हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब भी इंडिया टुडे द्वारा आयोजित कान्क्लैव में गए उनसे झोली भर भर के सवाल पूछे गए लेकिन यह इत्तेफ़ाकही है कि पीएम मोदी न संसद को और न ही बाहर किसी अन्य प्लेटफॉर्म को इस लायक समझते हैं कि वहाँ लोगों के सवालों का जवाब दे सकें।
इंडिया टुडे के 2023 कॉन्क्लेव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण दिया, उनकी आवभगत हुई, उनकी तारीफ़ों के पुलबांधे गए, लेकिन एक नेता के लिए मुख्यतया एक प्रधानमंत्री के लिए जो सबसे अहम है कि वह लोगो के जेहन में उठ रहे सवालों का जवाब दे, वह प्रधानमंत्री ने बिल्कुल नहीं किया। इसी कॉन्क्लेव में भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस चंद्रचूड़ भी आए उन्होंने भी लगभग 40 मिनट तक देश दुनिया के सामने पत्रकारों के सवालों का सामना किया लेकिन पीएम मोदी ने यह जरूरी नहीं समझा।
इत्तेफ़ाकयह है कि देश के सभी सरकारी और प्राइवेट संस्थानों को ऐसा रूप मिलता जा रहा है जिसमें प्रधानमंत्री से खुलकर प्रश्न पूछने पर ‘राजनैतिक एम्बार्गो’ लगा दिया गया है। यह इत्तेफ़ाकजो सिर्फ सत्ता पक्ष को लाभ पहुँचा रहा है उसकी सीमाएं बढ़ती चली जा रही हैं। जब राहुल गाँधी अपने पहले संसदीय भाषण(फरवरी 2023) को संसदीय कार्यवाही से हटाए जाने के बाद भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष से एक बार फिर से संसद में बोलने का निवेदन किया; इस संबंध में उन्होंने दो बार पत्र भी लिखा लेकिन इत्तेफ़ाक से उनके किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया गया। 
राहुल गाँधी के खिलाफ माफी मांगों अभियान (यूके में दिए गए उनके भाषण के कारण) भी शुरू कर दिया गया ताकि संसद में उनके द्वारा बोले जाने या यह कहें कि अडानी और प्रधानमंत्री के संबंधों पर उनकी राय को रखे जाने पर रुकावट डाली जा सके। इत्तेफ़ाकसे सूरत अदालत का फैसला जो 2019 से लंबित था वह भी इसी समय आ गया। इत्तेफ़ाकयह भी कि राहुल गाँधी को इस मानहानि के मामले में कानूनन मिल सकने वाली अधिकतम सजा ही सुनाई गई। अब यह अधिकतम सजा जोकि 2 वर्ष है, इत्तेफ़ाकसे जनप्रतिनिधित्व कानून धारा8(3) से मेल खा गई, जो किसी भी सांसद की सदस्यता को रद्द करने के लिए पर्याप्त थी। और राहुल गाँधी इस इत्तेफ़ाक का शिकार बन गए। जिसका सीधा मतलब था कि राहुल गाँधी अब संसद सदस्य नहीं रहेंगे।

राहुल गाँधी की संसद सदस्यता रद्द होने से कुछ और इत्तेफ़ाकसामने आ गए जैसे- कि अब राहुल गाँधी संसद में नहीं बोल पाएंगे, अब संसद में राहुल गाँधी द्वारा अडानी और पीएम मोदी पर कुछ भी नहीं कहा जा सकेगा, अब पीएम मोदी को राहुल गाँधी के प्रश्नों का सामना संसद में नहीं करना पड़ेगा, अब पीएम मोदी को अपनी उस छवि को बचाने का मौका मिल जाएगा जो उन्हे राहुल गाँधी के संसद में रहते, बचाना मुश्किल हो रहा था।


सत्ता पक्ष, विपक्ष के इतने बड़े नेता को जेल भेजने और संसद सदस्यता खत्म करने के पीछे भले ही कानून की एक धारा के पीछे छिप जाए लेकिन इस बात को नहीं झुठलाया जा सकता है कि यह प्रजातन्त्र की मूल धारा के बिल्कुल विपरीत है। यदि एक भाषण से किसी की सदस्यता रद्द किया जाना ही कानून है तो केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की सदस्यता कई बार रद्द की जानी चाहिए, विदेश में जाकर देश के सभी डॉक्टरों को अपमानित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की सदस्यता भी रद्द होनी चाहिए, केन्द्रीय मंत्री गिरिराज किशोर की भी सदस्यता रद्द होनी चाहिए क्योंकि वह तो उन करोड़ों भारतीयों को देश से बाहर निकल जाने को कहकर उन्हे अपमानित कर चुके हैं जो उनकी विचारधारा से मेल नहीं खाते। 

इत्तेफ़ाक यह है कि भारत के करोड़ों नागरिकों का अपमान कोई मानहानि नहीं है, प्रधानमंत्री द्वारा बिहार राज्य के सम्पूर्ण डीएनए पर प्रश्न उठाना कोई मानहानि नहीं है, लेकिन राहुल गाँधी जो उन प्रश्नों को उठा रहे हैं जो पीएम मोदी को असहज करते हैं, मानहानि है, अपराध है।


वर्तमान केंद्र सरकार का हथियार ही है ‘इत्तेफाक’! इत्तेफ़ाकसे सुवेन्दु अधिकारी (सारधा चिट फंड स्कैम) ईमानदार बन गए, असम के मुख्यमंत्री(सारधा चिट फंड स्कैम और लुईस बर्जर घूसखोरी) के खिलाफ चल रहे मामले इत्तेफ़ाक से आगे नहीं बढ़े! इत्तेफ़ाक से किसी भी भाजपा और उसके सहयोगी दलों के घरों पर सीबीआई ED छापे नहीं पड़े, इत्तेफ़ाक से मुस्लिमों के खिलाफ खुलेआम सामूहिक हत्याकांड की बात करने वालों पर कोई ऐसी कार्यवाही नहीं हुई जिससे उनका जहर उगलना बंद हो जाए, खुलेआम रामदेव ने देश के डॉक्टरों को भ्रष्ट कहा, पूरी आधुनिक चिकित्सा पद्धति को षड्यन्त्र कहा, कोरोना की झूठी दवा बनाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणपत्र का झूठा दावा किया, कोरोना के करोड़ों मरीजों को बेइज्जत किया उनकी सांस की कमी से मर जाने की मजबूरी का मखौल बनाया लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई! ये सब इत्तेफ़ाक ही है। 

सबसे बड़ा इत्तेफ़ाक तो यह है कि भ्रष्टाचार और देश को अपमानित करने की घटनाएं जब भारतीय जनता पार्टी में घटित होती हैं तो वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में तब्दील हो जाती हैं और पार्टी के बाहर कोई दल यदि पीएम मोदी और उनकी सरकार पर प्रश्न उठा देता है तो वह पिछड़ी जाति का अपमान और देश का अपमान बन जाता है।


पिछड़ी जाति का सम्मान करने का तरीका तो यह है कि उन्हे पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाए। जब केंद्र की मोदी सरकार जाति आधारित जनगणना को नहीं होने दे रही है तो असल में वह पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जाति, जनजाति सभी को अपमानित कर रही है। आखिर क्यों निचली जातियों के प्रतिनिधित्व को रोका जा रहा है? क्या इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए देश का हजारों करोड़ों रुपया लूटकर नीरव मोदी और ललित मोदी देश छोड़कर भाग चुके हैं पर भारत के प्रधानमंत्री अभी तक कोई ऐसा निर्णय नहीं ले सके हैं जिनसे इन दोनो लुटेरों की भारत वापसी को सुनिश्चित किया जा सके। इत्तेफ़ाकयह है कि जब प्रश्न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार से पूछे जाने चाहिए, जब उनकी सरकार की लगभग हर मोर्चे पर विफलता की चर्चा होनी चाहिए, तब इत्तेफ़ाक से चर्चा इस बात पर है कि राहुल गाँधी की लोकसभा सदस्यता समाप्त हो गई है। 
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक बयान के दौरान कहा है कि देश को पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री चाहिए। नरेंद्र मोदी की ओर इशारा करते हुए वह कहते हैं कि अबतक देश में कोई भी ऐसा प्रधानमन्त्री नहीं हुआ जो बारहवीं पास हो। केजरीवाल की बात तथ्यात्मक रूप से सही हो सकती है लेकिन इस बात का वैचारिक आधार शून्य है। लोकतंत्र को समझने के लिए ‘स्नातक’ होना कोई जरूरी नहीं है। एक कक्षा 5 पास व्यक्ति और पूरी तरह अनपढ़ व्यक्ति भी ‘लोकतंत्र-स्नातक’ हो सकता है और एक व्यक्ति देश के सबसे अच्छे संस्थान से पढ़ने के बावजूद तानाशाह हो सकता है।
बात सिर्फ इतनी है कि भारत जैसे एक मजबूत लोकतंत्र के ढांचे को किसी एक व्यक्ति/संगठन/संघ या उद्योगपति की सनक पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इत्तेफ़ाक का इस्तेमाल करके जिस तरह आज विपक्ष की आवाज दबाई जा रही है कल बाकी देश का भी नंबर आएगा। विपक्ष के सभी नेताओं के खिलाफ जिस तरह सरकार पेश आ रही उससे साफ है कि देश किस दिशा में है। इसी दिशा की चर्चा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने भी की थी। उन्होंने कहा था कि “जहां विरोध और विरोधियों को गद्दार मानने का भाव है, वहाँ लोकतंत्र समाप्त होता है और तानाशाही का उदय होता है।”   
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वंदिता मिश्रा
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