कुपथ-कुपथ रथ दौड़ाता जो, पथ निर्देशक वह है,
अपने रथ से ख़ून की लकीरें खींचने वाले आडवाणी कितने उदार?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 8 Apr, 2019

आडवाणी ने टिप्पणी की है कि बीजेपी अपने विरोधियों या आलोचकों को कभी राष्ट्रविरोधी नहीं कहती। इसे पढ़कर कई लोग गदगद हो उठे और कहने लगे कि देखिए यह है एक वरिष्ठ उदारचेता नेता का स्वभाव। लेकिन इसपर नहीं सोचा कि आडवाणी रथ निकालते थे और यह रथ जिस रास्ते से गुज़रा वहाँ और जहाँ नहीं पहुँचा, वहाँ भी ख़ून की लकीरें खिंच गयीं।
लाज लजाती जिसकी कृति से, धृति उपदेश वह है,
मूर्त दंभ गढ़ने उठता है शील विनय परिभाषा,
मृत्यु रक्तमुख से देता जन को जीवन की आशा...
समय था जब हिंदी पढ़नेवालों को जानकी वल्लभ शास्त्री की ये पंक्तियाँ ज़ुबानी याद रहा करती थीं। इनका इस्तेमाल करने के मौक़े भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कम नहीं रहा करते थे। पिछले कुछ वर्षों में बार-बार ये कानों में बज उठी हैं। इधर 6 अप्रैल को जब लाल कृष्ण आडवाणी को अख़बारों और मीडिया में अपनी तक़रीबन 600 शब्दों की टिप्पणी के चलते फिर छाया हुआ देखा तो फिर से शास्त्रीजी याद आ गए।