क्रिसमस के मौक़े पर विवाद हुआ।
भारत में हर पर्व त्योहार एक नया मौक़ा होता है जब आप शासक दल, भारतीय जनता पार्टी का दोहरा या असली चरित्र देख पाते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि भारत में हर पर्व त्योहार आज के हिंदू समाज के दोहरेपन या उनके असली चरित्र को उजागर करने के मौक़े बन गए हैं। शर्त यह है कि आपमें यह करने की इच्छा और योग्यता हो। यह आप संबोधन हिंदुओं के लिए है। यह इसलिए कहा कि सारे ग़ैर हिंदू तो हिंदू समाज के इस दोहरेपन को देख पाते हैं लेकिन हिंदू प्रायः इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं। बल्कि इसकी तरफ़ इशारा करने से वे भड़क उठते हैं और ऐसा करनेवालों को ही हिंदू द्वेष से पीड़ित बतलाने लगते हैं।
इस साल के क्रिसमस की ही बात करें। प्रधानमंत्री ने 25 दिसंबर को एक्स(ट्विटर) पर दिल्ली के कैथेड्रल ऑफ़ द रिडेम्पशन की क्रिसमस प्रार्थना में अपनी शिरकत की तस्वीरें जारी कीं। क्रिसमस शांति और प्रेम का संचार करे, यह कामना करते हुए ईसाइयों को शुभकामना भी दी। जबड़ा भींचे हुए, गहन गंभीर मुद्रा में हाथ जोड़े उनकी तस्वीरों को पूरी दुनिया ने देखा। क्रिसमस शांति और प्रेम का संचार करे, यह कामना करते हुए ईसाइयों को प्रधानमंत्री ने शुभकामना भी दी। उनके मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों ने भी इस प्रकार के बयान जारी किए।
प्रधानमंत्री के इस तस्वीर और उनके बयान को उद्धृत करते हुए उनके समर्थकों ने कहा कि इससे साबित हो गया कि प्रधानमंत्री सबको साथ लेकर चलते हैं और उनके विरोधियों के इस झूठ का पर्दाफाश हो गया है कि वे ईसाइयों के साथ नहीं हैं। जब आज हिंदुओं का सबसे बड़ा नेता यह कर रहा है तो बाक़ी हिंदुओं की क्या बात करें!
बजरंगियों ने कई जगह प्रार्थना नहीं होने दी
लेकिन जिस समय प्रधानमंत्री दिल्ली के कैथेड्रल में मुख्य बिशप से आशीर्वाद ग्रहण कर रहे थे, उस वक्त और उसके आस पास उनके प्रिय संगठन बजरंग दल के ‘बजरंगी’ देश के अलग-अलग हिस्सों में चर्चों पर हमले कर रहे थे। वे जिस तरह की प्रार्थना में शामिल हुए, देश के कई हिस्सों में उनके प्रिय बजरंगियों ने वैसी प्रार्थना होने नहीं दी। सांता की टोपी और ड्रेस बेचनेवालों पर हमला किया जा रहा था, क्रिसमस क़रोल पर हमले किए जा रहे थे, प्रार्थनाओं को बाधित किया जा रहा था। असम से लेकर केरल तक इस तरह की ईसाई विरोधी हिंसा के दर्जनों ख़बरें और तस्वीरें प्रसारित हुईं।इन सारी ख़बरों से हम जैसे बहुत लोग उद्वेलित हुए। लेकिन इन सबसे अप्रभावित, इस पूरी हिंसा से अविचलित प्रधानमंत्री यीशु का आशीर्वाद ग्रहण कर रहे थे। इससे साबित हुआ कि हिंसा कितनी भी हो, हमारे प्रधानमंत्री प्रेम और शांति के अपने पथ पर चलते रहेंगे। आप ईसाइयों का सर फोड़ते रहें, उनके चर्च तोड़ते-फोड़ते रहें, उनके घरों में घुसकर उनके साथ मार पीट करते रहें, आप प्रधानमंत्री को शांति की उनकी राह से नहीं हटा सकते। इन सबसे अप्रभावित वे हमेशा ईसाइयों के क़रीब जा खड़े होंगे। आपको इससे बड़ा सबूत और क्या चाहिए कि वे वास्तव में ईसाइयों के हितैषी हैं?
पिछले वर्ष भी वे इसी मौक़े पर इसी कैथेड्रल में जा पहुँचे थे। उस साल भी उस समय उन्होंने हिंसा पर दुख व्यक्त किया था। लेकिन जैसा ‘फ्रंटलाइन’ में प्रकाशित अपने लेख में आदित्य पांडेय ने नोट किया, उन्होंने भारत में ईसाइयों के ऊपर होनेवाली रोज़ाना हिंसा पर दुख नहीं प्रकट किया था। उन्होंने उस साल क्रिसमस के मौक़े पर जर्मनी के मैग्डबर्ग में हुई हिंसा पर दुख व्यक्त किया था।
भारत में ईसाइयों पर होनेवाली हिंसा को प्रधानमंत्री ने ध्यान देने योग्य भी नहीं माना था। क्या इससे यह साबित नहीं होता कि या भारतीय ईसाइयों पर होनेवाली हिंसा उतनी गंभीर नहीं जितना विघ्नकारी तत्त्व बतलाना चाहते हैं?
जर्मनी में हिंसा की निंदा क्यों की?
लेकिन जर्मनी में क्रिसमस के मौक़े पर हुई हिंसा की निंदा करना प्रधानमंत्री के लिए उपयोगी था क्योंकि उस हिंसा में मुसलमानों के शामिल होने का शक था। यह बात अलग है कि जिसने यह हिंसा की थी, वह ख़ुद इस्लाम विरोधी था। लेकिन उस समय यह सूचना नहीं थी इसलिए इस हिंसा की निंदा से मुसलमानों के हिंसक होने की बात और पुष्ट होती। प्रधानमंत्री ईसाइयों पर होने वाली उस हिंसा से दुखी होंगे जिसके लिए मुसलमान ज़िम्मेवार होंगे लेकिन जब हिंदू यह हिंसा करेंगे तो वे खामोशी अख़्तियार किए रहेंगे। क्योंकि हिंदुओं की हिंसा का कोई न कोई वाजिब कारण तो होगा ही!
इस साल भी द नेशनल काउंसिल ऑफ़ चर्चेज़ इन इंडिया ने क्रिसमस के रोज़ दिल्ली के कैथेड्रल ऑफ़ द रिडेम्पशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति की प्रशंसा की। अपने बयान में इसने कहा है कि ऐसे समय जब पूरे देश में चर्चों और ईसाइयों पर हमले हो रहे हैं, क्रिसमस के मौक़े पर प्रधानमंत्री की चर्च में मौजूदगी से ईसाइयों को भरोसा मिल सकता है। इससे यह भी मालूम हो सकता है कि आज का शासक गठबंधन ईसाइयों के साथ है। लेकिन यह संकेत तभी अर्थपूर्ण होगा जब बिना किसी अगर मगर के भारत में जगह जगह ईसाइयों पर होनेवाली हिंसा के लिए ज़िम्मेवार लोगों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाए।ईसाई धर्मगुरु सच को सच कहें!
मेरी शिकायत ईसाई धर्मगुरुओं से भी है। ईसा मसीह और कुछ न दें, सच बोलने का साहस देते हैं, ऐसी मान्यता है। सच को सच और झूठ को झूठ बोलना और धोखे को धोखा कहना धार्मिक लोगों के लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री जिस समय कैथेड्रल में थे, मुख्य बिशप क्रिसमस के अपने प्रवचन में उन्हें कह सकते थे कि जैसे वे इस प्रार्थना में उनका स्वागत कर रहे हैं, वैसे भारत के अलग-अलग राज्यों में उनका स्वागत नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हीं के दल से जुड़े लोग उन चर्चों पर और प्रार्थनाओं पर हमले कर रहे हैं। हर चर्च में हमले और हिंसा की आशंका के बीच क्रिसमस मनाया गया है। क्या भारत में अब ईसाई निश्चिंत होकर अपने धार्मिक कार्य नहीं कर सकते?
क्या प्रधानमंत्री, जो हिंदुओं के सबसे बड़े नेता हैं, जिस तरह क्रिसमस में शामिल हुए, बाक़ी हिंदू भी क्या उसी तरह शामिल हो सकते हैं? प्रधानमंत्री के दल के सहयोगी संगठन, विश्व हिंदू परिषद ने बयान जारी करके हिंदुओं को इस त्योहार से दूर रहने का आह्वान किया। एक दूसरे बयान में उसने कहा कि ईसाइयों को क्रिसमस सिर्फ़ अपने गिरिजाघरों और अपने इलाक़ों में मनाना चाहिए, हिंदुओं के इलाक़ों में नहीं। इससे क्या ज़ाहिर होता है? हिंदुओं के इलाक़ों में ईसाई जाकर क्रिसमस तो नहीं मनाते? वे अपने घरों, चर्चों और अपने लोगों के बीच ही यह त्योहार मनाते है। वह तो हिंदू हैं जो इस मौक़े पर चर्च जाकर हमले कर रहे हैं। क्रिसमस के मौक़े पर इस्कॉन के लोग चर्च के सामने जाकर हरे राम हरे कृष्ण गा रहे हैं।ग़ैरहिंदू यह देखकर अचंभित रहते हैं कि हिंदू उनके उपासनागृहों के सामने आकर या अनेक भीतर घुसकर क्यों जयश्रीराम का नारा लगाते हैं? क्या अनेक पास पूजा स्थलों की कमी हो गई है? अभिधा में कहें तो लिखा होगा कि अब हिंदू दूसरे धर्मों के लोगों को अपने धर्म का पालन नहीं करने देना चाहते और उन्हें चैन से नहीं रहने देना चाहते।
कुछ लोग एतराज करेंगे कि यह सरलीकरण है कि इतने विशाल देश में इक्का दुक्का ऐसी घटनाओं से हिंदुओं के बारे में सामान्य निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। यह भी इनके लिए प्रधानमंत्री को ज़िम्मेवार ठहराना ग़लत है। उन्होंने तो चर्च जाकर साबित कर दिया कि उनके मन में कोई मैल नहीं है।
लेकिन यह साफ़ है कि प्रधानमंत्री की चर्च में उपस्थिति सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ईसाई विरोधी घृणा और हिंसा के लिए एक आड़ थी। प्रधानमंत्री के दल के सहयोगी संगठन, विश्व हिंदू परिषद ने उनकी तस्वीरों के बाद भी ईसाइयों को चेतावनी देते हुए बयान जारी किया है। जिन्होंने उनकी मेज़बानी की थी, उनकी गुहार का जवाब देना भी प्रधानमंत्री ने ज़रूरी नहीं समझा है। इसके बाद भी अगर कोई यह कहना चाहता है कि क्रिसमस के समय ईसाइयों के ख़िलाफ़ होनेवाली हिंसा के पीछे कोई योजना नहीं है तो वह तो तो भोला है या बदमाश है।