राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने पश्चिम बंगाल की केंद्रीय ओबीसी सूची से 35 मुस्लिम बहुल समुदायों को बाहर करने की सिफारिश की है। जनवरी 2025 में इस सिफारिश को केंद्र को भेजा गया था। लेकिन इसे चुनाव से पहले लागू करने की कोशिश हो रही है।
बंगाल के ओबीसी मुस्लिमों को सूची से निकालने की सिफारिश
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) ने पश्चिम बंगाल की केंद्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सूची से 35 समुदायों को बाहर करने की सिफारिश की है। इनमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के ओबीसी हैं। यह सिफारिश 2014 में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सूची में जोड़े गए 37 समुदायों की एनसीबीसी द्वारा शुरू की गई विस्तृत जांच से सामने आई है, जिनमें से 35 मुस्लिम समूहों के रूप में पहचाने गए हैं। राज्य में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इससे कौन सा पक्ष अपना हित साध रहा है, इसका पता लगाना मुश्किल नहीं है।
एनसीबीसी ने फरवरी 2023 में पश्चिम बंगाल का दौरा किया था। गहन जांच प्रक्रिया के बाद जनवरी 2025 में उसने केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को अपनी सलाह सौंपी। पदमुक्त हो चुके एनसीबीसी अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर, जिनका कार्यकाल 1 दिसंबर 2025 को समाप्त हुआ, ने जोर दिया कि यह कदम "ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध मुस्लिम समुदायों की अधिक संख्या" के कारण चल रही समीक्षा का हिस्सा है। उन्होंने कहा, "बाहर करने की सिफारिश किए गए 35 समुदायों की सूची में अधिकांश मुस्लिम समुदाय हैं। उनमें से एक-दो गैर-मुस्लिम समुदाय हो सकते हैं।" अहीर ने विशिष्ट नामों का खुलासा करने से परहेज किया, कहा कि यह "सरकार के फैसले का विषय" है।
सरकार ने 2 दिसंबर को संसद में दी जानकारी
मंत्रालय ने 2 दिसंबर 2025 को संसद को सिफारिश के बारे में सूचित किया, जो कर्नाटक और केरल सहित नौ राज्यों की ओबीसी सूचियों की एनसीबीसी समीक्षा के बीच आया। 102वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत, केंद्रीय ओबीसी सूची में कोई बदलाव संसद द्वारा अनुमोदित और राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित होना चाहिए। जांच में प्रक्रियागत सवाल उठे, क्योंकि सलाह उप-अध्यक्ष के बिना जारी की गई थी, हालांकि इसे अध्यक्ष और एक सदस्य द्वारा हस्ताक्षरित किया गया।
भाजपा आईटी सेल चलाने वाले अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर मंत्रालय के जवाब को साझा करते हुए दावा किया कि 35 समुदाय मुस्लिम हैं। उन्होंने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार पर "दशकों की तुष्टिकरण-प्रेरित विकृतियों" का आरोप लगाया। दावा किया कि नरेंद्र मोदी प्रशासन "पिछड़ेपन पर आधारित सच्चे सामाजिक न्याय" के लिए इन्हें "सुधार" रहा है, न कि वोट-बैंक राजनीति के लिए। बता दें कि यह घटनाक्रम पश्चिम बंगाल के 2026 विधानसभा चुनावों की तैयारी के बीच आया है, जहां भाजपा राज्य की ओबीसी नीतियों पर हमले तेज कर रही है।
आयोग की सिफारिश इन समुदायों को शिक्षा और रोजगार में केंद्रीय आरक्षण से वंचित कर सकती है। यह पश्चिम बंगाल की राज्य ओबीसी सूचियों में मुस्लिम जातियों पर चल रही सुप्रीम कोर्ट कार्यवाहियों से मेल खाता है, जहां कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेशों पर रोक लगा दी गई है। दिसंबर 2022 से अहीर के नेतृत्व में एनसीबीसी के कदमों ने राजनीतिक बयानबाजी को हवा दी है। खासकर 2024 लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने इसे विपक्षी राज्यों में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से जोड़ दिया।
कर्नाटक में भी आयोग ने यही किया
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने पश्चिम बंगाल की तरह 2024 की शुरुआत से कर्नाटक की ओबीसी आरक्षण नीतियों की गहन जांच कर रहा है। उसका फोकस राज्य की ओबीसी सूची के श्रेणी II-B के तहत पूरे मुस्लिम समुदाय को बाहर करने पर है। एनसीबीसी मुस्लिम ओबीसी होने को सामाजिक न्याय सिद्धांतों का उल्लंघन मानता है। उसने अपडेटेड सामाजिक-आर्थिक डेटा की कमी का हवाला भी दिया है। पूर्व अध्यक्ष हंसराज गंगाराम अहीर के नेतृत्व में यह जांच पश्चिम बंगाल वाली जांच की तरह धर्म-आधारित वर्गीकरणों और अन्य पिछड़े वर्गों पर उनके प्रभाव पर सवाल उठाती है।
कर्नाटक की जांच अप्रैल 2024 में गति पकड़ चुकी थी जब एनसीबीसी ने राज्य के मुख्य सचिव राजनीश गोयल को राज्य ओबीसी वर्गीकरण के मुद्दे पर तलब किया था। कर्नाटक सरकार शिक्षा और रोजगार में आरक्षण के लिए सभी मुसलमानों को एकल पिछड़े वर्ग के रूप में मानती है। 2002 में पेश यह प्रावधान 32% ओबीसी आरक्षण के भीतर 4% उप-कोटा आवंटित करता है, लेकिन एनसीबीसी ने पीजी मेडिकल प्रवेशों में अधिक प्रतिनिधित्व (2021-22 और 2022-23 में मुसलमानों को 4% के बजाय 16% सीटें) पर चिंता जताई।
पूर्व अध्यक्ष अहीर ने जोर दिया कि राज्य की सूची सामाजिक रूप से पूरी तरह पिछड़े उप-समूहों और "क्रीमी लेयर" वाले जैसे सैयद, शेख और पठानों के बीच भेदभाव नहीं करती। इस वजह से वास्तविक ओबीसी को अवसरों से वंचित कर सकती है।
भाजपा की 2023 में तत्कालीन सीएम बसवराज बोम्मई के नेतृत्व में सरकार मुस्लिम विशिष्ट श्रेणियों (IIIA और IIIB) को समाप्त करने और वोकालिगा और लिंगायत समुदायों में इस आरक्षण को बांट देने का असफल प्रयास किया था। लेकिन सरकार बदलने पर उनकी कोशिश नाकाम हो गई।