पश्चिम बंगाल में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं और मोदी सरकार को मनरेगा की याद आ गई है। केंद्र सरकार ने तीन साल के लंबे अंतराल के बाद बंगाल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना को फिर से शुरू करने का फैसला किया है।  हालांकि, यह बहाली 'विशेष शर्तों और उपायों' के साथ की जा रही है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 6 दिसंबर को इस संबंध में आदेश जारी किया, जिसमें कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए योजना को तत्काल प्रभाव से फिर से लागू करने की बात कही गई है।

मंत्रालय के आदेश में कहा गया है, "ग्रामीण विकास विभाग पश्चिम बंगाल राज्य में मनरेगा के संभावित कार्यान्वयन को तत्काल प्रभाव से शुरू करता है।" यह बहाली 1 अगस्त 2025 से प्रभावी मानी जाएगी, जैसा कि कलकत्ता हाईकोर्ट के 18 जून के आदेश में निर्देशित है। सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को केंद्र की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज कर दिया था, जिसमें हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी।

मनरेगा फंड रोकने का पुराना कारण

केंद्र ने 9 मार्च 2022 से पश्चिम बंगाल को मनरेगा के फंड जारी करना बंद कर दिया था। इसका कारण केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन न करना बताया गया था। मनरेगा 2005 की धारा 27 का हवाला देते हुए यह कार्रवाई की गई थी। निलंबन से पहले राज्य मनरेगा में शीर्ष राज्यों में शुमार था, जहां 2014-15 से 2021-22 तक हर साल 51 से 80 लाख परिवारों को योजना का लाभ मिलता था। बता दें कि मनरेगा कार्यक्रम कांग्रेस की डॉ मनमोहन सिंह सरकार लाई थी। इससे गांवों में रोज़गार के अवसर पैदा हो रहे थे। लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद इसमें काफी बदलाव किए। पूरी दुनिया में कांग्रेस शासनकाल की मनरेगा योजना की तारीफ आज भी होती है।

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बंगाल के लिए मनरेगा की नई शर्तें क्या हैं? 

बहाली पारदर्शिता और अखंडता सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्ट के निर्देशित विशेष शर्तों के अधीन है। प्रमुख शर्तें इस प्रकार हैं:  

  • सभी श्रमिकों का 100% ई-केवाईसी पूरा करना अनिवार्य होगा। ई-केवाईसी के बिना मस्टर रोल जारी नहीं किए जाएंगे। 
  • श्रम बजट की मंजूरी तिमाही आधार पर होगी (आमतौर पर यह वार्षिक होती है), जो प्रदर्शन और शर्तों के अनुपालन पर निर्भर करेगी। 
  • 20 लाख रुपये से अधिक अनुमानित लागत वाले किसी कार्य की अनुमति नहीं होगी। सभी सामुदायिक कार्यों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) अनिवार्य होगी, जिसे जिला मजिस्ट्रेट और जिला कार्यक्रम समन्वयक द्वारा 20 लाख रुपये तक की परियोजनाओं के लिए मंजूरी दी जाएगी। 
  • सभी अनुमान सिक्योर सॉफ्टवेयर के माध्यम से अनिवार्य रूप से उत्पन्न किए जाएंगे।
इसके अलावा, वित्तीय प्रबंधन, कार्यों की निगरानी, जवाबदेही, रिकवरी और दंडात्मक कार्रवाई से संबंधित अन्य शर्तें भी लागू की गई हैं।

बंगाल में मनरेगा के राजनीतिक संदर्भ

यह फैसला अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य के लिए राहत के रूप में देखा जा रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा था कि उन्हें दिल्ली की 'दान' की जरूरत नहीं है और राज्य अपनी खुद की योजना चलाएगा। हालांकि बीजेपी अपने पावरफुल प्रचार तंत्र के सहारे इसका श्रेय मोदी सरकार को बीजेपी को दिलाने की कोशिश करेगी। जिसके जरिए वोट पर निशाना लगाया जाएगा। इसके जरिए कैश भी ट्रांसफर किया जा सकता है।

केंद्र का यह कदम अदालती निर्देशों के अनुपालन में उठाया गया है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना फिर से पटरी पर आएगी, हालांकि सख्त निगरानी के साथ। लेकिन इसका चुनाव के साथ पूरा संबंध है।

बंगाल में मनरेगा के राजनीतिक निहितार्थ

पश्चिम बंगाल, जो 2026 में विधानसभा चुनावों का सामना करने वाला है, में मनरेगा एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। इस मुद्दे पर टीएमसी और बीजेपी के बीच संघर्ष पहले से ही चल रहा है। यह मुद्दा ग्रामीण मतदाताओं, जो राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा हैं, को सीधे प्रभावित करता है।

केंद्र के खिलाफ 'बंगाल-विरोधी' नैरेटिव: टीएमसी ने मनरेगा फंड्स की रोक को केंद्र की 'प्रतिशोध की राजनीति' के रूप में चित्रित किया है, खासकर पिछले चुनाव में बीजेपी की करारी हार के बाद। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी ने इसे बंगाल की गरीब जनता के खिलाफ साजिश बताया है। हाल ही में, ममता ने केंद्र की शर्तों वाले नोट को फाड़कर विरोध जताया और कहा कि राज्य अपनी 'कर्मश्री' योजना से रोजगार देगा, बिना 'दिल्ली के दान' के।

चुनावी लाभ: राज्य ने केंद्र की रोक के बावजूद अपनी जेब से 59 लाख जॉब कार्ड धारकों को 20,776 करोड़ रुपये दिए और 78 लाख लोगों के लिए 104.58 करोड़ मैन-डे रोजगार सृजित किया। यह टीएमसी को 'मां-माटी-मानुष' की सरकार के रूप में मजबूत बनाता है। 2026 चुनावों से पहले, यह मुद्दा टीएमसी को ग्रामीण इलाकों में मजबूत आधार दे सकता है, जहां मनरेगा से 51-80 लाख परिवार सालाना लाभान्वित होते थे।

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कुल मिलाकर, मनरेगा पश्चिम बंगाल में सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि राजनीतिक हथियार है। टीएमसी इसे केंद्र की 'दुश्मनी' के खिलाफ लड़ाई बनाकर फायदा उठा रही है, जबकि बीजेपी भ्रष्टाचार पर फोकस कर रही है। 2026 चुनावों में यह ग्रामीण मतदाताओं की प्राथमिकताओं को आकार देगा, और परिणाम इस पर निर्भर करेगा कि कौन सा नैरेटिव ज्यादा प्रभावी साबित होता है।