सीपीएम ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला करते हुए उन्हें 'आरएसएस की दुर्गा' कहा। इस विवादित टिप्पणी के पीछे क्या है राजनीतिक रणनीति और बंगाल की राजनीति में इसका क्या असर पड़ेगा?
मुर्शिदाबाद हिंसा के बीच सीपीएम ने ममता बनर्जी पर बड़ा हमला किया है। इसने ममता बनर्जी को आरएसएस के लिए काम करने का आरोप लगाया है। सीपीएम के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने एक रैली में ममता को 'आरएसएस की दुर्गा' क़रार दिया और मुर्शिदाबाद हिंसा के लिए आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ज़िम्मेदार ठहराया। यह बयान न केवल राजनीतिक रूप से विस्फोटक है, बल्कि यह ममता बनर्जी और आरएसएस के बीच कथित संबंधों को लेकर एक पुरानी बहस को फिर से छेड़ता है।
ममता बनर्जी और आरएसएस के बीच आख़िर वह पुरानी बहस क्या है और इसको लेकर राजनीतिक दलों के बीच क्या आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुए हैं, वह जानने से पहले यह जान लें कि मुर्शिदाबाद हिंसा और इसको लेकर राजनीतिक दलों के बीच क्या चल रहा है।
मुर्शिदाबाद ज़िले के धुलियान और शमशेरगंज क्षेत्रों में 11 और 12 अप्रैल को वक़्फ़ संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी। इस हिंसा में तीन लोगों की मौत हो गई, कई लोग घायल हुए और कई परिवारों को अपना घर छोड़कर पड़ोसी मालदा जिले में शरण लेनी पड़ी। पुलिस ने हिंसा में शामिल होने के आरोप में 274 लोगों को गिरफ्तार किया और 60 प्राथमिकियां दर्ज कीं। हिंसा को लेकर टीएमसी, बीजेपी, और सीपीएम के बीच तीखी बयानबाज़ी शुरू हो गई।
ममता बनर्जी ने 16 अप्रैल को इसे 'पूर्व नियोजित सांप्रदायिक दंगा' क़रार देते हुए केंद्र सरकार और बीजेपी पर इसका दोष मढ़ा। उन्होंने दावा किया कि यदि बांग्लादेश से कोई तत्व शामिल था तो सीमा सुरक्षा बल की जिम्मेदारी बनती है जो केंद्र के अधीन है। दूसरी ओर, बीजेपी ने ममता सरकार पर 'हिंदू विरोधी हिंसा' को बढ़ावा देने और क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहने का आरोप लगाया।
सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने रविवार को अपनी रैली में मुर्शिदाबाद हिंसा के लिए आरएसएस को साज़िशकर्ता ठहराया और ममता बनर्जी पर आरएसएस को समर्थन देने का आरोप लगाया। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के शब्दों का हवाला देते हुए कहा, 'दंगे तब होते हैं जब सरकार चाहती है कि दंगे हों।'
सलीम ने धुलागढ़, बसीरहाट, आसनसोल, रानीगंज और रिशरा जैसी पिछली हिंसक घटनाओं का ज़िक्र करते हुए दावा किया कि ममता की सरकार ने आरएसएस को पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमाने की छूट दी है।
सलीम का 'आरएसएस की दुर्गा' वाला बयान 2003 की एक घटना की ओर इशारा करता है, जब आरएसएस नेतृत्व ने ममता बनर्जी को 'दुर्गा' कहा था। उस समय ममता ने वामपंथी दलों के ख़िलाफ़ आरएसएस से 'मात्र एक प्रतिशत समर्थन' मांगा था। सलीम ने इस ऐतिहासिक संदर्भ का उपयोग कर ममता पर आरएसएस के साथ गठजोड़ का आरोप लगाया और कहा कि टीएमसी सरकार की नीतियों ने आरएसएस को बंगाल में अपनी शाखाओं का विस्तार करने में मदद की है।
सलीम के बयान पर बीजेपी नेता और विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने पलटवार करते हुए सलीम को 'ममता बनर्जी का एजेंट' कहा। उन्होंने सीपीएम और टीएमसी के बीच कथित साठ-गांठ का आरोप लगाया, जिससे इस विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया। दूसरी ओर, ममता बनर्जी ने एक दिन पहले, 19 अप्रैल को, एक खुले पत्र में बीजेपी और आरएसएस पर 'विषाक्त झूठी प्रचार' करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि बीजेपी और आरएसएस ने वक़्फ़ अधिनियम के ख़िलाफ़ आंदोलन को भड़काकर सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की, जबकि रामनवमी उत्सव शांतिपूर्ण रहा।
ममता ने यह भी दावा किया कि बीजेपी और आरएएसएस बंगाल के 'सार्वभौमिक हिंदू धर्म' को बदनाम कर रहे हैं, जो श्री रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं पर आधारित है। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने और 'बाँटो और राज करो' की नीति को नाकाम करने की अपील की। टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने भी ममता का बचाव करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने वक़्फ़ अधिनियम का विरोध संसद में किया था, और हिंसा में टीएमसी का कोई हाथ नहीं है।
सलीम का बयान और इस पर बीजेपी व टीएमसी की प्रतिक्रियाएँ पश्चिम बंगाल की जटिल राजनीतिक स्थिति को दिखाती हैं। सीपीएम लंबे समय से ममता बनर्जी को आरएसएस और बीजेपी के साथ जोड़कर उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।
सलीम का बयान इस रणनीति का हिस्सा है, जो 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी को घेरने का प्रयास है।
सलीम ने बांग्लादेश की स्थिति का ज़िक्र करते हुए कहा, 'सीपीएम मुर्शिदाबाद को बांग्लादेश नहीं बनने देगी।' यह बयान मुर्शिदाबाद की भौगोलिक स्थिति और वहाँ की जनसांख्यिकीय संरचना को ध्यान में रखकर दिया गया, जो सांप्रदायिक संवेदनशीलता को उजागर करता है।
2003 में आरएसएस द्वारा ममता को 'दुर्गा' कहने का संदर्भ ऐतिहासिक रूप से अहम है। उस समय ममता ने वामपंथी शासन के ख़िलाफ़ आरएसएस से समर्थन मांगा था। सीपीएम इस इतिहास को बार-बार उठाकर ममता की धर्मनिरपेक्ष साख पर सवाल उठाती है।
हालाँकि, ममता ने हाल के वर्षों में आरएसएस और बीजेपी की कड़ी आलोचना की है, खासकर मुर्शिदाबाद हिंसा के संदर्भ में। उनके खुले पत्र में आरएसएस को 'विषाक्त प्रचार' का हिस्सा बताना इस बात का संकेत है कि वह अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को मज़बूत करना चाहती हैं।
बीजेपी ने इस हिंसा को हिंदू विरोधी करार देकर ममता सरकार पर हमला बोला है। शुभेंदु अधिकारी और अमित मालवीय जैसे नेताओं ने इसे ममता की 'वोट बैंक की राजनीति' और 'जिहादी तत्वों' को समर्थन देने का परिणाम बताया।
बहरहाल, ममता बनर्जी इस विवाद में दोहरे दबाव में हैं। एक ओर, वह बीजेपी के 'हिंदू विरोधी' और 'जिहादी समर्थक' के आरोपों का सामना कर रही हैं। दूसरी ओर, सीपीएम और अन्य विपक्षी दल उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठा रहे हैं।
मोहम्मद सलीम का 'ममता आरएसएस की दुर्गा हैं' वाला बयान मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया है। यह बयान सीपीएम की उस रणनीति का हिस्सा है, जो ममता बनर्जी की धर्मनिरपेक्ष छवि को कमजोर करने और आरएसएस के साथ उनके कथित ऐतिहासिक संबंधों को उजागर करने की कोशिश करती है। दूसरी ओर, ममता ने बीजेपी और आरएसएस को हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराकर अपनी स्थिति मज़बूत करने की कोशिश की है। बीजेपी ने इस अवसर का उपयोग कर ममता पर 'हिंदू विरोधी' होने का आरोप लगाया और सीपीएम को टीएमसी का 'एजेंट' बताया।