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चंडी पाठ के बाद ममता ने अपना गोत्र बताया, क्या हो गया बंगाल को?

बुद्धिजीवियों के लिए मशहूर और भद्र लोक बंगाली के लिए परिचित राज्य की राजनीति अब बदल गई है। जिस राज्य में नीतियों पर चुनाव प्रचार होता था धर्म और जाति की बात कोई सार्वजनिक मंच तो क्या आपसी और निजी बातचीत में भी नहीं करता था, वहाँ अब पहचान की राजनीति इतनी गहरी हो गई है कि धर्म और जाति ही नहीं, गोत्र तक की दुहाई दी जा रही है। 
इसे इससे समझा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की मु्ख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से अपना गोत्र शांडिल्य बताया है। हालांकि उन्होंने इसे वोट से नहीं जोड़ा है, पर उनका मक़सद साफ है, वह यह बताना चाहती हैं कि वह हिन्दू हैं, ब्राह्मण हैं और उसमें भी उच्च गोत्र की कन्या हैं। 
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क्या कहा ममता ने?

ममता बनर्जी मेदिनीपुर के नन्दीग्राम से चुनाव लड़ रही हैं, जहाँ उनके पूर्व सहयोगी शुभेंदु अधिकारी चुनौती दे रहे हैं। मंगलवार को चुनाव प्रचार के अंतिम दिन एक रैली में ममता ने कहा, 

अपने दूसरे चुनाव प्रचार में मैं एक मंदिर गई तो पुजारी ने मुझसे मेरा गोत्र पूछा, मैंने कहा, माँ-माटी-मानुष।


ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल

उन्होंने इसके आगे जोड़ा, “इससे मुझे त्रिपुरा के त्रिपुरेश्वरी मंदिर का दर्शन याद आ गया, जहाँ पुरोहित ने मुझसे यही सवाल किया था और मैंने उस समय भी कहा था, माँ-मानुष-माटी।” 

जिस पर विवाद मचा हुआ है और खुद उनसे सहानुभूति रखने वाले परेशान हैं, वह मुख्यमंत्री ने इसके बाद कहा, 

दरअसल, मैं शांडिल्य गोत्र की हूँ।


ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल

चौतरफा हमला

बता दें कि उच्च कुल ब्राह्मणों के सबसे ऊँचे आठ गोत्रों में एक है शांडिल्य। 

केंद्रीय मंत्री और सांप्रदायिक पहचान की बात करने के लिए कई बार विवादों में घिर चुके बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने ममता पर हमला बोलते हुए कहा, “मुझे अपना गोत्र बताने की ज़रूरत ही नहीं है, मैं तो इसे लिखता हूँ। लेकिन वह अब गोत्र इसलिए बता रही हैं कि उन्हें चुनाव हारने का डर है।”

गिरिराज सिंह यहीं नहीं रुके। उन्होंने बहुत ही कड़वे अंदाज में तंज किया

ममता बनर्जी, यह भी बताइए कि क्या रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए भी शांडिल्य गोत्र के ही हैं?


गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री

ओवैसी ने साधा निशाना

बता दें कि रोहिंग्या म्याँमार से आए बांग्लाभाषी मुसलमान हैं। 

मुसलमानों की राजनीति करने वाले और एआईएमआइएम के प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी भी इस बहस में कूद पड़े। उन्होंने ट्वीट किया, 

मुझ जैसे लोगों का क्या होना चाहिए जो ना शांडिल्य हैं और ना ही जनेऊधारी। जो ना तो किसी खास भगवान का भक्त है और ना ही चालीसा या कोई और पाठ करता है।


असदउद्दीन ओवैसी, प्रमुख, एआईएमआईएम

उन्होंने इसके आगे एक अहम बात कही, जो पश्चिम बंगाल के कई लोगों की जेहन में है। ओवैसी ने कहा, 

“हर पार्टी जीतने के लिए हिंदू कार्ड खेलने में लगी है। अनैतिक, अपमानजनक और यह सफल नहीं होगा।''

नन्दीग्राम में लगभग 30 प्रतिशत मुसलमान हैं जो मोटे तौर पर तृणमूल कांग्रेस के समर्थक माने जाते हैं।

चंडी पाठ

इसके पहले ममता बनर्जी ने तब सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था जब उन्होंने बीजेपी के हिन्दुत्व की राजनीति पर चोट करते हुए सार्वजनिक मंच से कहा था कि ‘वे ब्राह्मण कन्या है, रोज़ सुबह चंडी पाठ करने के बाद ही घर से निकलती है, उन्हें कोई न बताए कि हिन्दू धर्म क्या है।’

इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री ने मंच से ही उसी समय चंडी पाठ किया। उनका उच्चारण बहुत ही साफ और शुद्ध था। 

हिन्दुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में बहुत ही अहम बदलाव कर दिए हैं। उसका चुनाव प्रचार राज्य सरकार की नाकामियों और उसकी नीतियों पर आधारित न हो कर हिन्दू-मुसलिम विभाजन पर रहा है।

'पाकिस्तानियों ने बम फेंके'

बीजेपी उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने खुले आम कहा कि ‘पटाशपुर के थाना प्रभारी पर पाकिस्तानियों ने हमला किया, बम फेंका, ये पाकिस्तानी भारत के क्रिकेट मैच हारने पर पटाखे फोड़ते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं और मांस खाते हैं।’

शुभेन्दु अधिकारी पाकिस्तानियों का नाम लेकर मुसलमानों को निशाने पर ले रहे थे। 

उन्होंने इसे साफ कर दिया। उन्होंने ममता बनर्जी को ‘बेग़म’ कह कर बुलाया और कहा कि वे मुसलमानों की ‘फूफू’ और ‘खाला’ हैं।

शुभेंदु अधिकारी ने लोगों से कहा कि यदि ‘बेग़म’ जीत गईं तो यहाँ के ‘हिन्दू धोती नहीं पहन पाएंगे न ही तुलसी की माला गले में डाल पाएंगे।’

निशाने पर मुसलमान

शुभेन्दु अधिकारी ने अपने पूर्व सहयोगी जो उनके साथ तृणमूल छोड़ कर बीजेपी नहीं गए, उन सूफ़ियाँ का नाम लेकर कहा, “आपको निर्णय करना है कि पश्चिम बंगाल सूफ़ियाँ जैसे पाकिस्तानियों के हाथ में जाएगा या नहीं।”

उन्होंने यह भी कह डाला कि ‘क्या आप अपना काम करने किसी सूफ़ियाँ के घर जाएंगे’ और चेतावनी दे डाली कि ‘रात को महिलाओं का सूफ़ियाँ के घर जाना सुरक्षित नहीं है।’ 

कुछ दिन पहले तक पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री के नज़दीक रहे शुभेन्दु बाबू ऐसे नहीं थे। 

और अब राज्य की मुख्यमंत्री अपना गोत्र बताती फिर रही है। 

बड़ा सवाल तो यह है कि पश्चिम बंगाल की राजनीति में यह अभूतपूर्व परिवर्तन क्यों और कैसे हो गया। जहाँ सिर्फ नीतियों और मूल्यों की राजनीति होती थी, दूसरे के धर्म से किसी को कोई मतलब नहीं था, वहाँ की फ़िजाँ में इतना ज़हर कैसे घुल गया?

बाऊल संगीत?

हिन्दू-मुसलमानों को एकता में पिरोने वाले सूफी परंपरा की बाऊल संगीत की आवाज़ क्या कहीं खो जाएगी?

‘सबार ऊपर मानुष सत्य ताहार ऊपरे नाई’ यानी सबसे ऊपर मनुष्य मात्र है और कुछ नहीं, का उद्घोष करने वाले रवींद्र नाथ ठाकुर की ज़मीन पर सांप्रदायिकता की विष बेल कहाँ तक जाएगी?

इंतजार रहेगा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 के नतीजों का। 

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प्रमोद मल्लिक
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