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विश्व भारती की ज़मीन : सरकार के निशाने पर अमर्त्य सेन?

क्या केंद्र सरकार के अधीन चलने वाले विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बिद्युत चक्रवर्ती अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्मत्य सेन को निशाने पर ले रहे हैं? क्या वे इसके लिए झूठ भी बोल रहे है?

ये सवाल अहम इसलिए हैं कि सेन ने अलग-अलग समय में कई बार नरेंद्र मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों और बीजेपी-आरएसएस की आलोचना की है। ये प्रश्न महत्वपूर्ण इसलिए भी हैं कि स्वयं प्रधानमंत्री ने हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्री पढ़ाने वाले सेन का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि लोग 'हॉवर्ड जाते हैं, उन्होंने 'हार्ड वर्क' किया है।'

विश्व भारती विश्वविद्यालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को लिखी चिट्ठी में कहा है कि कई लोगों ने विश्वविद्यालय की ज़मीन पर ग़ैरक़ानूनी कब्जा कर रखा है, उसमें प्रोफ़ेसर सेन का भी नाम है। इसमें कहा गया है कि कई प्लॉट को ग़लत तरीके से दर्ज किया गया है, विश्वविद्यालय की ज़मीन का अवैध तरीके से ट्रांसफर किया गया है और कई लोगों ने रबींद्रनाथ टैगोर की ख़रीदी गई ज़मीन पर रेस्तरां और दूसरे व्यावसायिक प्रतिष्ठान तक खोल लिए हैं। 

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vishva bharti university vice chancellor bidyut chakraborty targets amartya sen in land row - Satya Hindi
विश्व भारती विश्वविद्यालय

अमर्त्य सेन की 13 डेसिमल ज़मीन

विश्वविद्यालय ने 71 ऐसे प्लॉट की पहचान की है, जिस पर अतिक्रमण किया हुआ है और उसने राज्य सरकार से अतिक्रमण हटाने को कहा है। उसका कहना है कि प्रोफेसर सेन का 13 डेसिमल इसमें शामिल है। 

विश्वविद्यालय ने अमर्त्य सेन के बारे में कहा है कि उनके पिता को 125 डेसिमल ज़मीन दी गई थी, लेकिन इसके अलावा 13 डेसिमल ज़मीन पर ग़ैरक़ानूनी कब्जा किया हुआ है। अमर्त्य सेन ने 2006 में एक चिट्ठी लिख कर तत्कालीन उपकुलपति से कहा था कि 99 साल की लीज़ उनके नाम कर दी जाए, विश्वविद्यालय के एग्ज़क्यूटिव बोर्ड के फ़ैसले के बाद ऐसा कर दिया गया था। 

कुलपति बिद्युत चक्रवर्ती ने दावा किया इस मशहूर अर्थशास्त्री ने उन्हें फ़ोन किया, अपना परिचय भारत रत्न कह कर दिया और कहा कि उनके घर के पास से सब्जी वालों को न हटाया जाए, ऐसा करने से उनकी बेटी को दिक्क़त होगी।

अमर्त्य सेन का इनकार

चक्रवर्ती ने यह दावा भी किया कि उन्होंने सेन को सलाह दी कि वे उन सब्जी वालों को अपनी ज़मीन पर जगह दे दें, इस पर अर्मत्य सेन ने फ़ोन काट दिया। 

असली बवाल तो इसके बाद मचाा। विश्वविद्यालय शिक्षकों की एक ऑनलाइन बैठक में कुलपति ने यह बात कह दी। विश्व भारती यूनिवर्सिटी फ़ैकल्टी एसोसिएशन के अध्यक्ष सुदीप्त भट्टाचार्य ने अमर्त्य सेन को ई-मेल कर पूछा कि क्या यह सच है?

हॉवर्ड विश्वविद्यालय के फ़ैकल्टी सदस्य डॉक्टर सेन ने इससे न सिर्फ इनकार किया, बल्कि इस पर ताज्जुब भी जताया। 

उन्होंने ई-मेल लिख जवाब दिया, "विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति ने ऑनलाइन बैठक में जो कुछ कहा है, उस पर मुझे आश्चर्य हो रहा है।" सेन ने कहा, 

"मैंने उनसे ऐसी कोई बातचीत नहीं की है। मैं यह भी बता दूं कि मैंने कभी भी ख़ुद को भारत रत्न नहीं कहा है। मैंने यह भी नहीं कहा है कि मेरी बेटी को सब्जी ख़रीदने में दिक्क़त न हो, इसलिए सब्जी वालों को वहां से न हटाया जाए। शांतिनिकेतन में मेरे घर के सामने कोई हॉकर नहीं है।"


अमर्त्य सेन, अर्थशास्त्री

सुदीप्त भट्टाचार्य ने यूनियन के दूसरे सदस्यों को एक खुली चिट्ठी लिख कर पूरी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि 'प्रोफ़ेसर सेन बहुत ही विनम्र व्यक्ति हैं। उन्हें अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, वे ऑक्सफ़ोर्ड के ड्रमंड प्रोफ़ेसर, कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज के मास्टर, हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में लामों प्रोफेसर हैं, वे भला अपना परिचय भारत रत्न कह कर क्यों देंगे।'

मोदी के आलोचक सेन

बता दें कि प्रोफ़ेसर सेन ने अतीत में कई बार नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार, उनकी नीतियों और आरएसस-बीजेपी की आलोचना की है। उन्होंने अक्टूबर में अमेरिकी पत्रिका 'द न्यूयॉर्कर' को दिए एक साक्षात्कार में कहा था 'नरेंद्र मोदी बहुत ही कामयाब व्यक्ति हैं, पर वे आरएसएस के प्रचार से प्रभावित हैं।'

सेन ने इसके आगे कहा कि 'इस समय भारत में उग्र हिन्दुत्व की लहर चल रही है, आरएसएस हिन्दू-समर्थक आन्दोलन चला रहा है'। उन्होंने इसी इंटव्यू में यह भी कहा था कि 'मुसलमानों को निशाने पर लिया जा रहा है, कई की हत्या कर दी गई है, कई लोगों को जेल में डाल दिया गया है।'

इसी तरह सेन ने 2019 के आम चुनावों में बीजेपी की ज़बरदस्त जीत के पीछे पार्टी के पास बहुत ज़्यादा पैसा होना एक कारण बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि चुनावों में 40 प्रतिशत वोट पाने वाले को बहुमत मिल गया।

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विश्व भारती विश्वविद्यालय में नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ

मॉब लिन्चिंग का विरोध

इसके पहले अर्मत्य सेन ने मोदी को नसीहत देते हुए कहा था कि उन्हें बहुलतावाद को स्वीकार करना चाहिए। 

सेन ने मॉब लिन्चिंग के दौरा में भी खुल कर इसका विरोध किया था और कहा था कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। 

इसके पहले अक्टूबर 2018 में सेन ने कहा था कि 2014 के बाद से देश ग़लत दिशा में जा रहा है। उन्होंने कहा था, "चीजें काफी बिगड़ चुकी हैं। देश 2014 के चुनाव के बाद से ग़लत देश में छलांग लगा चुका है, हम सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के बदले बहुत ही तेजी से पीछे की ओर जा रहे हैं।" 

लेकिन मोदी पर सबसे बड़ा हमला सेन ने जनवरी, 2020 में किया। इस अर्थशास्त्री ने कहा कि वे नहीं चाहते कि 'नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री बनें क्योंकि उनकी पहचान धर्मनिरपेक्ष की नहीं हैं।' 

उन्होंने एक न्यूज़ चैनल से कह दिया, 

"हां, मैं उन्हें नहीं चाहता। एक भारतीय नागरिक के रूप में मैं मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पसंद नहीं करता, उन्होंने अल्पसंख्यकों को सुरक्षित होने का अहसास दिलाने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया है।"


अमर्त्य सेन, अर्थशास्त्री

'ग़लत दिशा में जा रहा है देश'

उन्होंने कहा, "हम भारतीय ऐसी स्थिति नहीं चाहते जहाँ अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षत महसूस करते हों, उनके ख़िलाफ़ 2002 में संगठित अपराध किया गया था।"

इसी तरह अप्रैल, 2019, में न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में हुए एक सम्मेलन में नरेंद्र मोदी की आलोचना कर दी थी।

प्रोफेसर सेन ने कहा कि "नरेंद्र मोदी के बीते पाँच साल के कार्यकाल में दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद बढ़ा है और लोकतांत्रिक सुधार की ज़रूरत है।" 

अमर्त्य सेन ने नोटबंदी की भी आलोचना की थी। उन्होंने कहा, "अर्थशास्त्र का प्रशिक्षण लिया हुआ कोई भी आदमी यह यकीन नहीं करेगा कि एक ख़ास किस्म का नोट रखना ग़ैरक़ानूनी है और ऐसा नहीं करने से आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी।" 

निशाने पर अर्थशास्त्री

राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए ईडी, आयकर विभाग, सीबीआई, एनआईए जैसी केंद्रीय एजंसियों का इस्तेमाल मोदी राज में बढ़ गया है। चुनाव के ठीक पहले शरद पवार, मायावती, अखिलेश यादव जैसों को निशाना बनाया जाता रहा है। 

इस समय चल रहे किसान आन्दोलन को समर्थन देने वाले आढ़तियों को आयकर विभाग ने नोटिस दिया, उनके यहां छापे मारे। इसी तरह आन्दोलन को समर्थन देने वाले गायकों को ईडी ने नोटिस दिया है और उनके विदेशी खातों का ब्योरा मांगा है।

क्या केंद्र सरकार एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति को सहारे नोबेल पुरस्कार से नवाजे गए अर्थशास्त्री को निशाना बना रही है? और वह भी इसलिए कि उन्होंने सरकार, उसके मुखिया, उनकी पार्टी और उनके वैचारिक स्रोत वाले संगठनों की आलोचना की है?

 

 

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क़मर वहीद नक़वी
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