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विशेषज्ञों का आकलन- कोरोना संक्रमण से अमेरिका में हो सकती हैं 2 से 17 लाख मौतें

कोरोना वायरस से दुनिया में कितने लोग मर सकते हैं? कितने लोगों को कोरोना संक्रमण हो सकता है और कितने लोग इसकी चपेट में आकर अस्पताल में भर्ती कराए जा सकते हैं?

अमेरिकी अध्ययन

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक ख़बर के अनुसार, अमेरिका के सेंटर्स फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेन्शन (सीडीसी) ने दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने और विशेषज्ञों की मदद लेने के बाद एक अनुमान लगाया है। 

इस मॉडल में पाया गया है कि अमेरिका में 16 करोड़ से लेकर 21.4 करोड़ लोग संक्रमित हो सकते हैं। इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि दो लाख से 17 लाख लोग कोरोना संक्रमण से मर सकते हैं।
सीडीसी का अनुमान है कि अमेरिका में 24 लाख से 2.10 करोड़ तक लोगों को कोरोना वायरस की वजह से अस्पतालों में भर्ती कराया जा सकता है। यह उस अमेरिका में है, जहाँ अस्पतालों में सिर्फ़ 9,25,000 बिस्तर हैं। 

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उम्मीद की किरण

यह भी समझा जाता है कि यदि लोगों ने अपना व्यवहार बदला, जीवन शैली बदली तो स्थिति इतनी बुरी नहीं होगी। जॉन हॉपकिन्स वाइटिंग स्कूल ऑफ़ इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर लॉरन गार्डनर ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ‘यदि लोगों ने अपना व्यवहार बदला तो पुराने मॉडल की बातें लागू नहीं होंगी। स्थिति में काफी सुधार हो सकता है।’

जितनी देर, उतना नुक़सान

पहले की महामारियों के अध्ययन से यह पाया गया है कि अफसरों ने लोगों को समझाने-बुझाने और ख़ुद को अलग करने में जितनी देर की, इन सुझावों का असर उतना ही कम हो गया। यह भी समझा जाता है कि कोरोना वायरस इतना घातक है कि मामूली उपायों का ख़ास असर नहीं होगा।
स्वास्थ्य सलाहकार डॉक्टर कार्टर मेशर ने अख़बार से बात करते हुए कहा, ‘यदि आपके रसोईघर में रखे स्टोव में आग लगी हो तो आग बुझाने वाला उपकरण कारगर हो सकता है, पर यदि रसोईघर में ही आग लगी हो तो वह कारगर नहीं होता है।’ 

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कितना नुक़सान?

इन मॉडल में चार अलग-अलग तरह के अनुमान लगाए गए हैं, इसलिए इनके नतीजे भी अलग हैं। पर मोटे तौर पर अनुमान लगाया गया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित एक आदमी दो से तीन लोगों को प्रभावित करेगा।
अस्पताल में दाखिल कराए जाने वाले लोगों की तादाद 3 से 12 प्रतिशत हो सकती है। और इनमें से एक प्रतिशत लोगों की मौत हो सकती है। ये अनुमान चीन के अनुभव के आधार पर लगाए गए हैं। 

नेब्रास्का मेडिकल सेंटर के डॉक्टर जेम्स लॉलर ने अपने अध्ययन में पाया है कि अमेरिका में 9.60 करोड़ लोग कोरोना वायरस से प्रभावित हो सकते हैं। इसमें से लगभग 5 प्रतिशत लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता है।

अस्पताल में 50 लाख लोग!

इसका मतलब यह है कि लगभग 50 लाख लोगों को अस्पताल में दाखिल कराया जा सकता है। इनमें से कम से कम 20 लाख लोगों को इन्टेंसिव केअर की ज़रूरत पड़ सकती है। डॉक्टर लॉलर ने अनुमान लगाया है कि 4,80,000 हज़ार लोगों की मौत हो सकती है। 

लेकिन अमेरिका के नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड वायरल डिजीज़ के डॉक्टर एंथनी फॉची ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा है कि लोगों को क्वैरेन्टाइन करने के मामले में चीन ने बहुत ही अच्छा काम किया है और उसे संक्रमण रोकने की दिशा में बहुत कामयाबी मिली है।
डॉक्टर फ़ॉची ने पत्रकारों से कहा, 'चीन इस रोग का केंद्र है, लेकिन जिस सक्रियता से उसने लोगों को क्वैरेन्टाइन किया और सामाजिक रूप से अलग-थलग किया, उससे उसे रोकथाम में काफी हद तक कामयाबी मिली। '
इसी तरह की कोशिश यदि अमेरिका और दूसरे देशों में की गई तो कोरोना संक्रमण को बहुत हद तक रोका जा सकता है। ऐसा हुआ तो यह मुमकिन है कि इन मॉडल के आधार पर जो अनुमान लगाया गया है, उससे कम तबाही हो।

क्या सीखा स्पैनिश फ़्लू से?

इस अध्ययन में 1918 में पूरी दुनिया में फैले 'स्पैनिश फ़्लू' पर हुए शोधों का भी इस्तेमाल किया गया है। उस फ़्लू की वजह से पूरी दुनिया में 5 करोड़ से ज़्यादा लोग मारे गए थे, प्रभावित लोगों की तादाद इससे बहुत ही अधिक थी। उस रोग की चपेट में आकर भारत में ही लगभग दो करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। स्पैनिश फ्लू से अमेरिका में 6,75,000 लोगों की मौत हो गई थी। 
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी ख़बर में यह भी कहा है कि इंस्टीच्यूट ऑफ़ डिजीज़ मॉडलिंग ने 1918 में हुई मौतों का अध्ययन किया और उस आधार पर अनुमान लगाया कि इस बार कोरोना क्या कितना असर पड़ सकता है। 
इस अध्ययन में यह पाया गया कि स्पैनिश फ्लू जितनी तेजी से फैला था, कोरोना संक्रमण भी लगभग उतनी ही तेज़ी से और उसी घातक रूप में फैल सकता है।

क्या कहा सर्जन जनरल ने? 

डॉक्टर मेशर ने भी सौ साल पहले फैली महामारी का अध्ययन किया। उन्होंने उस महामारी की चपेट में आए लोगों की तुलना अमेरिकी में सबसे घनी आबादी वाले राज्यों में एक सेंट लुइस और फिलाडेल्फिया के लोगों से की।
इसके अलावा अमेरिका के सर्जन जनरल यानी सबसे बड़े सरकारी सर्जन डॉक्टर रूपर्ट ब्लू ने लोगों से अपील की कि 'यदि उनके इलाक़ों में इस महामारी के लक्षण दिख रहे हैं तो वे सार्वजनिक जगहों का इस्तेमाल करे से बचें।' 
ख़बर के मुताबिक़, सर्जन जनरल ने लोगों से कहा कि 'पूरे देश को ही तो बंद नहीं किया जा सकता है, पर अलग-अलग समुदायों को इसे अपने स्तर पर लागू करना चाहिए।' 

सलाह मानने के फ़ायदे!

न्यूयॉर्क टाइम्स ने दावा किया है कि सेंट लुइस के मेयर ने इस सलाह को गंभीरता से लिया। उन्होंने तमाम थिएटर, सिनेमा हॉल, स्कूल, बिलियर्ड पूल, सनडे क्लब, लॉज, कैबरे, सार्वजनिक अंत्येष्टि, डॉन्स हॉल और सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक लगा दी। हालांकि इसके बावजूद महामारी फैली है, पर उसकी रफ़्तार अपेक्षा से कम रही है। 
लेकिन दूसरी ओर, फिलाडेल्फिया में इस सलाह को गंभीरता से नहीं लिया गया। वहाँ इस सलाह के जारी होने के पहले ही संक्रमण के लक्षण दिखने लगे थे। इसके बावजूद सलाह पर अमल नहीं किया गया। नतीजा यह रहा कि वहाँ मृत्यु दर आकाश छूने लगी। 
महामारी फैलने की रफ़्तार और इससे हुई तबाही ने डॉक्टरों को विनम्र होकर बहुत कुछ सोचने पर मजबूर पर दिया है। साल 1918 की तुलना में आज जनसंख्या तो बहुत ही अधिक बढ़ी ही है, 65 साल से ऊपर की उम्र वाले लोगों की तादाद 10 गुणी तो 85 साल से अधिक के लोगों की संख्या 30 गुणी बढ़ गई है। इस उम्र के लोगों के रोग की चपेट में आने और मारे जाने की आशंका भी ज़्यादा है। इसे इटली को देख कर समझा जा सकता है, जहाँ वेन्टीलेटर के सहारे पर टिके लोगों की तादाद इतनी ज़्यादा है कि डॉक्टर परेशान हो उठे हैं।
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क़मर वहीद नक़वी
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