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भारत के अलावा दुनिया के कई और देशों में भी किसान क्यों नाराज हैं?

दुनिया भर में कृषि क्षेत्र बढ़ते संकट से जूझ रहा है क्योंकि किसानों को महंगाई, विदेशी प्रतिस्पर्धा और बढ़ती पर्यावरण संरक्षण लागत से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति धीरे-धीरे चरम पर पहुंच रही है। बेल्जियम, बुल्गारिया, ग्रीस, फ्रांस, इटली, पोलैंड, जर्मनी आदि में भारत की तरह ही प्रदर्शन हो रहे हैं। हालांकि भारतीय किसानों की स्थिति इन देशों के मुकाबले बहुत अच्छी नहीं है। यहां तो उसे अपनी फसल का वाजिब दाम तक पाने के लिए जूझना पड़ रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन भारत सरकार की प्राथमिकता फिलहाल कृषि नहीं है। 

विश्व स्तर पर किसान अपनी-अपनी सरकारों से फसलों का बेहतर दाम, बेहतर कामकाजी परिस्थितियां और अधिक समर्थन की मांग कर रहे हैं। यूरोपीय संसद की कृषि समिति ने यूरोपीय किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को स्वीकार किया है, जिसमें आर्थिक चिंताएं, नौकरशाही की बाधाएं और कोविड-19 महामारी और यूक्रेन में युद्ध जैसे संकटों का प्रभाव शामिल है।

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कृषि क्षेत्र में बढ़ती अशांति के राजनीतिक आयाम भी हैं। भारत जैसा हाल और जगहों पर भी है। तमाम देशों में लोकलुभावन नारों के साथ वहां के राजनीतिक दल और संगठन किसानों के मुद्दों के साथ जुड़ गए हैं। यूरोपीय संघ की ग्रीन डील और कृषि नीतियों के बारे में चिंताएँ उठाई गई हैं, जिससे तमाम मुद्दों की जटिलता बढ़ गई है। एंटवर्प, सोफिया और एथेंस में विरोध प्रदर्शनों में किसानों ने सरकारी अधिकारियों के इस्तीफे के साथ-साथ बेहतर दाम और काम करने की बेहतर स्थिति की मांग की है। यूरोपीय आयोग और राष्ट्रीय सरकारों ने किसानों की शिकायतों को दूर करने के लिए रियायतें दी हैं, लेकिन स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।

कृषि क्षेत्र में बढ़ती अशांति एक जटिल मुद्दा है जिस पर सरकारों, नीति निर्माताओं और स्टेकहोल्डर्स को तत्काल ध्यान देने और कार्रवाई करने की आवश्यकता है। साथ मिलकर काम करने से किसानों और पूरे समाज के लाभ के लिए एक स्थायी और न्यायसंगत समाधान खोजा जा सकता है।

फ्रांस में क्या चल रहा है

फ्रांसीसी किसानों का कहना है कि यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा कृषि उत्पादक होने के बावजूद उन्हें पर्याप्त भुगतान नहीं किया जा रहा है। बढ़ती महंगाई के बीच खाद्य वस्तुओं के दाम उनके विरोध के केंद्र में है। फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रॉन लैटिन अमेरिकी देशों के साथ हाल ही में यूरोपीय संघ की व्यापार वार्ता का विरोध कर रहे हैं। किसानों का यह भी कहना है कि अत्यधिक पर्यावरण संरक्षण नियम उनकी आजीविका को नुकसान पहुंचा रहा है।

पोलैंड में क्या चल रहा है

पोलिश किसान पड़ोसी यूक्रेन से अनाज की आवक का विरोध कर रहे हैं, जिसने सरकार को बातचीत के लिए प्रेरित किया है। 2022 में रूस द्वारा अपना सैन्य अभियान शुरू करने के बाद से यूक्रेन से यूरोपीय संघ में आयात शुल्क से मुक्त हो गया है। यूरोपीय संघ के किसान यूक्रेन को ढील देने और आवश्यक समान पर्यावरणीय मानकों को पूरा नहीं करते हुए कीमतों पर दबाव डालने के लिए नाराज हैं।

किसानों का कहना है कि 27 देशों वाले यूरोपीय संघ की नीतियां उनके उत्पादों को गैर-यूरोपीय संघ के आयात से अधिक महंगा बनाती हैं और वे इटली, स्पेन, स्विट्जरलैंड, रोमानिया और अन्य देशों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शन के बाद कई राजधानियों को बंद करने के बाद यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा ने पिछले सप्ताह एक कीटनाशक विरोधी प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

जर्मनी के हालात

जर्मन किसानों ने अपने देश में डीजल ईंधन के लिए सब्सिडी में कटौती के खिलाफ रैली की। जिसके बारे में उनका कहना है कि सब्सिडी में कटौती से वो दिवालिया हो जाएंगे। क्योंकि उन्हें जो बचत होती थी, वो अब डीजल खरीदने में खर्च हो जाएगी। उनके पास फिर बचेगा क्या।

यूएस की स्थिति

यूनाइटेड स्टेट्स के किसानों का तर्क है कि बड़े कॉरपोरेट उनकी फसलों का मूल्य निर्धारण कर रहे हैं। 2023 में उत्पादन लागत रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई। ऐसे में अमेरिकी किसानों पर खेती का ऑपरेशन जारी रखने के लिए वित्तीय दबाव बढ़ गया।

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नीदरलैंड के हालात

डच किसानों ने देश की बड़े पैमाने पर पशुधन खेती प्रणाली से नाइट्रस ऑक्साइड प्रदूषण को रोकने की योजना के खिलाफ रोष जताया है। पिछले जून में, नीदरलैंड ने 2030 तक नाइट्रोजन-संबंधी गैसों के उत्सर्जन को आधा करने का लक्ष्य घोषित किया था। किसानों का तर्क है कि विमानन सेवा जैसे अन्य उच्च प्रदूषणकारी उद्योग इतने गंभीर प्रतिबंधों के अधीन क्यों नहीं हैं।

ग्रीस में भी नाराजगी

ग्रीस के किसान संगठनों ने उच्च उत्पादन लागत के विरोध में पूरे देश में सड़कें जाम करने की धमकी दी है। जिस पर यूनानी सरकार का कहना है कि वह इसे कम करने का प्रयास करेगी।

कुल मिलाकर दुनिया के तमाम देशों के किसानों का तर्क है कि सरकारी नीतियों की वजह से बिजली, खाद और ट्रांसपोर्ट की बढ़ती लागत को हम कवर करने में असमर्थ हैं। व्यापक ऊर्जा परिवर्तन नीति के हिस्से के रूप में, डीजल ईंधन पर किसानों के लिए टैक्स छूट को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की सरकारी योजना से भी पूरी दुनिया में किसान नाराज हैं। जब उसे अपनी फसल का वाजिब दाम ही नहीं मिलेगा तो बाकी लागत के लिए पैसा कहां से आएगा।


किसान यूरोपीय संघ के सब्सिडी नियमों को मुख्य मुद्दा मानते हैं। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के प्रभाव को साफ तौर पर देखा जा सकता है, जिसकी वजह से तमाम यूरोपीय देशों ने नीतियां बदली हैं। कई सिंचाई परियोजनाओं पर विवाद और पशु कल्याण और कीटनाशकों के बारे में आलोचना ने फ्रांसीसी किसान आबादी के बीच समाज द्वारा उपेक्षित होने की भावनाओं को बढ़ा दिया है।

यूरोपीय संघ के स्तर पर निर्धारित अधिकांश कृषि नीतियों और सब्सिडी के साथ, फ्रांस अपने सहयोगियों से वैसी ही रियायतें मांग रहा है। परती भूमि की आवश्यकता पर छूट के लिए समर्थन बनाने के मुद्दे पर राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन गुरुवार को नेताओं के शिखर सम्मेलन में जोर दे सकते हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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