एक पाकिस्तानी चैनल पर बहस ख़त्म करते हुए स्तंभकार, क्रिकेट प्रशासक और गाहे ब गाहे राजनीति में भी सक्रिय नज़म सेठी ने देश के क्षितिज पर उभर रही उस काली आँधी का ज़िक्र किया जिसे ज़्यादातर लोग नज़रअंदाज़ करते हुए शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन ज़मीन में गड़ा कर उसके गुज़र जाने की कामना कर रहे हैं। तहरीक ए लब्बैक पाकिस्तान नामक देश पर छा जाने को आतुर यह काली आँधी किसी शून्य से नहीं उपजी है। इसका सीधा रिश्ता पाकिस्तान के जन्म से जुड़े तर्कों से है।
पाकिस्तान में उठी काली आँधी के ख़तरे!
- दुनिया
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- 6 May, 2021

पुराने नौकरशाह और रैडिकल इस्लाम से सहानुभूति रखने वाले ओरिया मक़बूल जान ने एक टीवी कार्यक्रम में कहा कि टीएलपी अगले चुनाव में किंग मेकर होगी। उनके अनुसार उसे मुख्यधारा में शामिल होने की इजाज़त मिलनी चाहिए। इसी तरह का तर्क विपक्ष में बैठे इमरान ख़ान तालिबान के लिए देते थे, वे चाहते थे कि तालिबान को खुलेआम अपने दफ़्तर बनाने की इजाज़त मिलनी चाहिए।
पाकिस्तान और इज़राइल दुनिया के ऐसे दो मुल्क हैं जिनका जन्म धर्म के आधार पर हुआ है। दुर्भाग्य से पाकिस्तान में तो जन्म के बाद से ही कट्टरपंथी अपने अस्तित्व को बचाने के लिये धार्मिक प्रतीकों का उपयोग अलग अलग रूपों में करते रहे हैं। पहला बड़ा उन्मादी उभार साठ के दशक में अहमदियों के ख़िलाफ़ हुआ जब मुल्क के बहुत से शहरों में पहली बार मार्शल ला लगाना पड़ा था। इस आंदोलन के नतीजतन अहमदियों को न सिर्फ़ ग़ैर-मुसलिम घोषित किया गया बल्कि आज तक पाकिस्तानी संविधान में ऐसे किसी परिवर्तन के प्रयास पर हिंसा हो सकती है जिसके माध्यम से अहमदियों और मुसलमानों के बीच फ़र्क़ को धुंधला करने का प्रयास किया जाता हो।