यूएस राष्ट्रपति ट्रंप ने 7 अप्रैल को चीन के खिलाफ नया आर्थिक कदम उठाने की धमकी दी थी। जिसमें उन्होंने कहा कि यदि चीन अपनी हालिया 34% की जवाबी टैरिफ वृद्धि को वापस नहीं लेता, तो अमेरिका 9 अप्रैल से चीनी आयात पर अतिरिक्त 50% टैरिफ लागू करेगा। चीन ने मंगलवार 8 अप्रैल को उसका कड़ा जवाब दिया।
चीन ने इस धमकी का जवाब देते हुए कहा कि वह "टैरिफ ब्लैकमेल" से डरने वाला नहीं है। ट्रंप की धमकी पर प्रतिक्रिया देते हुए चीन ने कहा कि वह अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए दृढ़ता से जवाबी कदम उठाएगा। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "चीन के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने की अमेरिकी पक्ष की धमकी एक बड़ी गलती है, जो एक बार फिर अमेरिकी पक्ष की ब्लैकमेलिंग प्रकृति को उजागर करती है।" मंत्रालय ने कहा, "यदि अमेरिका अपनी बात पर अड़ा रहा तो चीन अंत तक लड़ेगा।"
ताजा ख़बरें
बीजिंग ने पहले ही अमेरिकी सामानों पर 34% की जवाबी टैरिफ लगाई थी, जो ट्रंप के पिछले टैरिफ कदमों के प्रतिशोध में थी। इसके अलावा, चीन ने दुर्लभ पृथ्वी तत्वों (rare-earth elements) पर निर्यात नियंत्रण जैसे मजबूत कदम उठाए हैं, जो ग्लोबल सप्लाई चेन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
ट्रंप की इस घोषणा के बाद ग्लोबल शेयर बाजारों में भारी उथल-पुथल देखी गई। हालांकि भारत के बाजार ने मंगलवार 8 अप्रैल को कुछ रिकवरी की है। लेकिन 7 अप्रैल को डाउ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज 1,212.98 अंक (3.17%) गिरकर 37,101.88 पर बंद हुआ, जबकि S&P 500 में 181.37 अंकों (3.57%) की गिरावट आई और यह 4,892.71 पर पहुंच गया। नैस्डैक कंपोजिट 623.23 अंक (4%) नीचे 14,964.56 पर आ गया। यह गिरावट 2025 में टेक्नोलॉजी क्षेत्र में सबसे बड़ी हानि के साथ आई, जहां ऐपल, एनवीडिया और माइक्रोसॉफ्ट जैसे बड़े नामों में क्रमशः 30%, 34% और 19% की कमी दर्ज की गई।

एशिया में भी स्थिति गंभीर रही। टोक्यो का निक्केई सूचकांक 7.1% गिरा, जो दशकों में सबसे बड़ी एकल-दिवसीय गिरावट थी। चीन, हांगकांग और ताइवान के बाजारों में भी भारी नुकसान हुआ, खासकर क्योंकि ये बाजार पहले छुट्टियों के कारण बंद थे और सोमवार को वैश्विक गिरावट के साथ तालमेल बिठाया। भारत में बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी 50 में 5% की शुरुआती गिरावट देखी गई, जो मार्च 2020 के बाद सबसे बड़ी थी, हालांकि बाद में मामूली सुधार हुआ।

विश्लेषकों का मानना है कि यह टैरिफ वॉर ग्लोबल मंदी की आशंकाओं को बढ़ा रहा है। ब्लैकरॉक के सीईओ लैरी फिंक ने न्यूयॉर्क इकोनॉमिक क्लब में कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले ही मंदी में प्रवेश कर चुकी हो सकती है और शेयर बाजार में 20% की और गिरावट संभव है।

ताजा अपडेट



ट्रम्प का अड़ियल रुख: सोमवार को ट्रंप ने संवाददाताओं से कहा कि वह टैरिफ नीति को रोकने या नरम करने के मूड में नहीं हैं। उन्होंने कहा, "हम इसे रोकने के बारे में नहीं सोच रहे हैं।" यह बयान तब आया जब तमाम देशों के नेता और निवेशक उनसे राहत की उम्मीद कर रहे थे।

चीन का जवाब: चीन ने ट्रंप के नवीनतम खतरे को "गलती पर गलती" करार दिया और रोनाल्ड रीगन के 1987 के ट्रेड वॉर विरोधी भाषण का हवाला देते हुए कहा कि इससे बाजार ढह सकते हैं और लाखों नौकरियां जा सकती हैं। बीजिंग ने संकेत दिया कि वह और प्रतिशोधी कदम उठा सकता है।

बाजार की स्थिति: सोमवार सुबह अमेरिकी बाजारों में थोड़ी अस्थिरता के बाद स्थिरता के संकेत दिखे, लेकिन एशियाई बाजार अभी भी दबाव में हैं। यूरोपीय संघ ने भी जवाबी टैरिफ की योजना बनाई है, जिससे व्यापार युद्ध का दायरा बढ़ रहा है।

उद्योगों पर प्रभाव: ऐपल जैसी कंपनियां भारत और चीन से आईफोन शिपमेंट बढ़ाकर टैरिफ के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रही हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि लागत में वृद्धि से उपभोक्ता कीमतें बढ़ सकती हैं।

विश्लेषक चेतावनी: जेपी मॉर्गन चेस के सीईओ जेमी डिमन ने चेतावनी दी कि ट्रम्प के टैरिफ से वैश्विक मांग गायब हो सकती है और अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय स्थिति कमजोर हो सकती है।
ट्रम्प की यह नीति उनके "अमेरिका फर्स्ट" एजेंडे का हिस्सा है, लेकिन यह दुनियाभर की अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम भरा दांव साबित हो रही है। जहां एक ओर वह दावा करते हैं कि इससे अमेरिका को साप्ताहिक अरबों डॉलर की आय होगी और कोई महंगाई नहीं है। लेकिन विशेषज्ञ इससे असहमत हैं। उनका कहना है कि टैरिफ से कीमतें बढ़ेंगी, सप्लाई चेन बाधित होगी और मंदी का खतरा बढ़ेगा। दूसरी ओर, चीन जैसे देशों की जवाबी कार्रवाई से यह संकट और गहरा सकता है।

दुनिया से और खबरें
डोनाल्ड ट्रंप की चीन को 50% अतिरिक्त टैरिफ की धमकी ने सिर्फ चीन ही नहीं तमाम बाजारों को हिलाकर रख दिया है। 8 अप्रैल, तक यह स्पष्ट है कि यह टकराव अभी खत्म नहीं हुआ है। यदि चीन आज के अंत तक अपनी स्थिति नहीं बदलता, तो 9 अप्रैल से नई टैरिफ दरें लागू हो सकती हैं, जिसके दूरगामी नतीजे होंगे। यह स्थिति न केवल अमेरिका और चीन, बल्कि भारत जैसे अन्य व्यापारिक साझेदारों के लिए भी चुनौतीपूर्ण है, जो इस अस्थिरता के बीच अवसर और जोखिम दोनों देख रहे हैं।