क्या इंसान की आर्थिक तरक्की धरती पर जीवन को मुश्किल बना रही है? एक नई रिपोर्ट कहती है कि धरती को प्रदूषित करने में अमीर लोग सबसे आगे हैं। बुधवार को जारी ‘क्लाइमेट इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2025’ (Climate Inequality Report 2025) के अनुसार, दुनिया के शीर्ष 1% अमीर लोग वैश्विक उपभोग-आधारित कार्बन उत्सर्जन (consumption-based emissions) में 15% योगदान देते हैं। वहीं निजी पूंजी स्वामित्व 41% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि धरती का तापमान दो फ़ीसदी बढ़कर 2050 तक 15 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है जो करोड़ों लोगों की मौत और विस्थापन का कारण बनेगा।

ब्रह्मांड में छोटी-सी धरती

धरती पर जीवन ब्रह्मांड की एक अनमोल घटना है। अब तक की जानकारी के मुताबिक़ ब्रह्मांड में दो ट्रिलियन आकाशगंगाएं हैं। हर आकाशगंगा में सौ से चार सौ अरब तक तारे हैं। तारे गैस के गोले हैं, जो हाइड्रोजन जलाकर रोशनी देते हैं। हमारा सूरज भी ऐसा ही एक तारा है। उसके इर्द-गिर्द पृथ्वी समेत आठ ग्रह घूमते हैं। इससे हमारा सौरमंडल बनता है।

1977 में नासा ने वॉयजर अंतरिक्ष यान भेजा। नेप्च्यून से छह अरब किलोमीटर दूर से इसने पृथ्वी की तस्वीर खींची—14 फरवरी 1990 को। उसमें धरती एक नीले बिंदु जैसी दिखती है- 'पेल ब्लू डॉट'। ब्रह्मांड में हमारी हैसियत इससे ज्यादा कुछ नहीं। इंसान तो धूल के कण से भी छोटा। फिर भी, हम खुद को धरती का मालिक समझते हैं। युद्ध लड़ते हैं, लाखों मारते हैं—बस एक टुकड़े के लिए। जबकि पृथ्वी अकेला ज्ञात ग्रह है जहां जीवन है। इतने संयोगों का नतीजा। अनमोल। लेकिन हमने इसे संभाला नहीं, बर्बाद किया।

वानर से नर बनने की यात्रा

धार्मिक किताबें कहती हैं, ईश्वर ने ब्रह्मांड और इंसान बनाया। विज्ञान कहता है, इंसान की शुरुआत अफ्रीका में करीब 70 लाख साल पहले हुई। बंदर जैसे जीव से—साहेलैंथ्रोपस। पेड़ चढ़ता, दो पैरों पर चलता। आज का इंसान, होमो सेपियंस, तीन लाख साल पुराना है। गुफाओं में रहता, आग जलाता, शिकार करता। 70 हजार साल पहले अफ्रीका से एशिया-यूरोप गया। 12 हजार साल पहले खेती शुरू की। कबीले बने, राज्य बने। सबसे पुरानी सभ्यता है मेसोपोटामिया की—साढ़े पांच हजार साल पुरानी। भारत में मोहनजोदड़ो-हड़प्पा भी उसी दौर के।

यानी 70 लाख साल की यात्रा में आज की सभ्यता का रंग सिर्फ पांच हजार साल पहल घुला। इस बीच इंसान और प्रकृति के बीच सहअस्तित्व जैसा मामला था। समस्या शुरू हुई ढाई सौ साल पहले—औद्योगिक क्रांति से।

औद्योगिक क्रांति: तरक्की या विनाश का बीज?

इंग्लैंड में जेम्स वाट ने चाय की केतली से उठते ढक्कन के पीछे भाप की शक्ति देखी। इसी सिद्धांत पर स्टीम इंजन बना। फिर दौड़ शुरू—ज्यादा उत्पादन, ज्यादा उपभोग की। फ़ैक्टरियों के लिए नये-नये ईंधन की ज़रूरत पड़ी। 

कच्चा माल और बाजार की लड़ाई ने उपनिवेशवाद को जन्म दिया। ताकतवरों ने कमजोरों को गुलाम बनाया। दो विश्व युद्ध हुए, करोड़ों मरे। हवस ने इंसान का माथा गरमा कर दिया। लेकिन इसी के साथ धरती की गर्मी भी बढ़ी।

1750 में धरती का तापमान 13.5°C था। 1750-1850: सिर्फ 0.2°C बढ़ा। 1850-2025: 1.2°C और बढ़ गया। कारण? कोयला, तेल, फैक्टरियां। 2050 तक धरती का तापमान 15°C हो सकता है। तब स्थिति परिवर्तनीय हो जाएगी। लाखों सालों में नहीं हुआ, जो दो सौ सालों में हो गया। इंसान ने जंगल के जंगल काट डाले। धरती का फेफड़ा कमजोर हुआ।

अमेजन: धरती का फेफड़ा बीमार

अमेजन जंगल दक्षिण अमेरिका के नौ देशों में फैला है। इसका 60% ब्राजील में है। 67 लाख वर्ग किलोमीटर (भारत से दोगुना में ये जंगल फैला है)। यह जंगल CO₂ सोखकर ऑक्सीजन बनाता है। हर साल 20% नई ऑक्सीजन—हमारी सांस का पांचवां हिस्सा यहीं से बनता है। लेकिन 2025 तक यह जंगल 20% कट चुका है। 25% और कटा तो सवाना बनेगा—घास का मैदान। ऑक्सीजन कम, CO₂ ज्यादा होगी। धरती को सांस की तकलीफ हो जाएगी।

मौसम का बिगड़ता मिजाज

धरती का तापमान बढ़ने से मौसम में उलट-पुलट अब सभी महसूस कर रहे हैं। गर्मी इस कदर बढ़ती है कि बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। सूखा पड़ता है तो पानी की बूंद नहीं मिलता। फिर बाढ़ आती है तो  लाखों जिंदगी तबाह हो जाती है। जंगल में आग लगती है तो बुझती नहीं। 2025 में अमेरिका में आग से 61 अरब रुपये नुकसान। भारत में हीटवेव से सैकड़ों बीमार पड़ते हैं हर साल। फ़सलें सूख जाती हैं।

इस सबकी मुख्य वजह है कार्बन उत्सर्जन। कोयला, पेट्रोल, डीजल जलता है तो CO₂ निकलती है। अब उसकी मात्रा काफ़ी बढ़ गयी है। नतीजा धरती गरम, मौसम बिगड़ा—बाढ़, सूखा, तूफान।

क्लाइमेट इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2025

सबसे जरूरी सवाल—इस उत्सर्जन का ज़िम्मेदार कौन?  क्लाइमेट इनइक्वालिटी रिपोर्ट 2025  कहती है कि धरती को बर्बाद करने में अमीर सबसे आगे हैं। दुनिया के 1% अमीर (7 करोड़ लोग)—कुल उत्सर्जन के 15% के ज़िम्मेदार हैं। उनके निजी उपभोग से: प्राइवेट जेट, बड़ी कारें, एसी, फ्रिज से ये कार्बन उत्सर्जन होता है।

लेकिन उपभोग से ज़्यादा उनकी संपत्ति उत्सर्जन की ज़िम्मेदार है। वे तेल कंपनियों में निवेश करते हैं। शेयर खरीदते हैं कंपनियां कोयला जलातीं। रिपोर्ट कहती है कि 1% अमीरों की संपत्ति से 41% उत्सर्जन का कारण है! एक अमीर का उत्सर्जन एक गरीब से 680 गुना ज्यादा। यानी अमीरी धरती का संकट बन रही।

2050 तक क्या?

ऐसा ही चला तो 2030 के बाद अपरिवर्तनीय हो जाएगी। 2050 तक भयानक हाल हो सकता है अगर 2°C तापमान बढ़ोतरी की आशंका सच हुई। ऐसा हुआ तो 14.5 मिलियन अतिरिक्त मौतें होंगी। 12.5 ट्रिलियन डॉलर का नुक़सान विश्व अर्थव्यवस्था को होगा।  
  • समुद्र 1 मीटर ऊपर—मुंबई, कोलकाता डूबेंगे। 20 करोड़ बेघर।
  • अमेजन सवाना बनेगा—जानवर मरेंगे।
  • आर्कटिक पिघलेगा। महासागर अम्लीय—मछलियां मरेंगी।
  • खाद्य संकट।

उपाय क्या?

  • सूरज-हवा से बिजली: सोलर, पवन चक्की।
  • जंगल बचाओ: पेड़ काटना बंद।
  • इलेक्ट्रिक गाड़ियां।
  • अमीरों पर टैक्स: संपत्ति पर गैस टैक्स।
लेकिन अमीर जिम्मेदार मानते कहां?  वे तो चंद्रमा पर बस्तियाँ बसाने का सपना देख रहेतहैं। मरेंगे गरीब—जिनका उत्सर्जन में योगदान न के बराबर है। यानी मौजूदा विकास विनाश बन गया। इंसान ने इंसानियत को नुकसान पहुंचाया, अब धरती के लिए भी ख़तरा बन चुका है। वैसे, खतरे में धरती नहीं, इंसान है। धरती घूमती रहेगी, इंसान डायनासोर की तरह लुप्त हो जाएगा।

गांधीजी याद आते हैं—1947 में पायनियर को दिये एक इंटरव्यू में कहा: “Earth provides enough to satisfy every man's need, but not every man's greed.” धरती सबकी जरूरत पूरी कर सकती है, सबका लालच नहीं।