कर्नाटक के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़े धर्मस्थला मंजुनाथेश्वर मंदिर एक बार फिर सुर्खियों में है। पुलिस ने जुलाई में सैकड़ों यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं के शवों को दफ़नाने या जलाने का आरोप लगाने वाले सफ़ाई कर्मचारी सी.एन चेन्नैया को गिरफ्तार कर लिया है। इस मसले पर बीजेपी काफ़ी सक्रिय थी और राज्य भर में धर्मयात्रा निकाल रही थी। चेन्नैया की गिरफ़्तारी के बाद अब सवाल उठ रहा है कि नक़ली खोपड़ी के सहारे विवाद सुलगाने के पीछे असली खोपड़ी कौन है।
कौन है चिन्नैया?
जुलाई 2025 में, पूर्व सफाई कर्मचारी सीएन चिन्नैया उर्फ चेन्ना ने दावा किया था कि उसने 1995 से 2014 के बीच मंदिर प्रशासन के निर्देश पर करीब 100 शवों को दफनाया था। इनमें से अधिकांश महिलाओं और नाबालिगों के शव थे, जिन पर यौन उत्पीड़न के निशान थे। चिन्नैया ने 15 स्थानों की पहचान की थी और सबूत के तौर पर एक खोपड़ी और हड्डियों की तस्वीरें पेश कीं। इस दावे ने पूरे कर्नाटक में हड़कंप मचा दिया था।
हालांकि, विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच में चिन्नैया के दावों में कई विसंगतियां सामने आईं। उसकी ओर से पेश की गयी खोपड़ी नकली पायी गयी और 15 में से केवल एक स्थान पर पुरुष की हड्डियों के अवशेष मिले। बाकी स्थानों पर कोई मानव अवशेष नहीं मिला। लंबी पूछताछ के बाद, चिन्नैया को झूठी गवाही देने और नकली सबूत पेश करने के आरोप में 23 अगस्त को गिरफ्तार कर लिया।
धर्माधिकारी पर सवाल
धर्मस्थला मंजुनाथेश्वर मंदिर का प्रबंधन धर्मधिकारी डी. वीरेंद्र हेगड़े के नेतृत्व में होता है, जो 1968 से इस जिम्मेदारी को संभाल रहे हैं। यह वंशानुगत पद है, और उनके जैन परिवार ने 800 साल पहले इस हिंदू मंदिर की स्थापना की थी। हेगड़े परिवार की सामाजिक कार्यों, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में योगदान की सराहना होती रही है। डी. वीरेंद्र हेगड़े को 2009 में राज्य के सर्वोच्च सम्मान ‘कर्नाटक रत्न’ से सम्मानित किया गया था और 2022 में राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा में मनोनीत किया गया था।
इस विवाद ने उनकी छवि पर गहरा असर डाला है। उन्होंने एक साक्षात्कार में इन आरोपों को बेबुनियाद और झूठा और सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे प्रचार को नैतिक रूप से गलत करार दिया था। वहीं मंदिर के सचिव हर्षेंद्र कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मंदिर के खिलाफ अपमानजनक सामग्री हटाने की माँग की थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया कवरेज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था लेकिन निचली अदालत को इस पर दोबारा विचार करने को कहा था।
बीजेपी की सियासी धर्मयात्रा
इस मामले ने कर्नाटक की सियासत को नया मोड़ दे दिया था। बीजेपी ने इसे हिंदू धर्म पर हमला बताकर 21 अगस्त से धर्मस्थल तक एक 'धर्मयात्रा' शुरू कर दी थी। बीजेपी का दावा है कि यह यात्रा धार्मिक नहीं, बल्कि मंदिर की गरिमा और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए है। बीजेपी के कर्नाटक अध्यक्ष बी. वाई. विजयेंद्र ने कहा, "कांग्रेस सरकार सोशल मीडिया पर झूठे प्रचार को रोकने में नाकाम रही है, जिससे मंदिर और इसके श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत हो रही हैं।”
विजयेंद्र ने यह भी सवाल उठाया कि जब एक बीजेपी कार्यकर्ता ने सरकार के खिलाफ पोस्ट किया, तो तुरंत FIR दर्ज हुई, लेकिन मंदिर के खिलाफ प्रचार को रोकने में सरकार चुप क्यों है? बीजेपी इसे एक साजिश का हिस्सा मानती है, जिसका उद्देश्य मंदिर और इसके प्रशासन को बदनाम करना है।
वहीं, कांग्रेस ने बीजेपी पर इस मुद्दे का सियासी फायदा उठाने का आरोप लगाया। कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने कहा, "बीजेपी ने SIT जांच का स्वागत किया था, लेकिन अब दोहरा खेल खेल रही है। यह जांच पूरी तरह पेशेवर तरीके से हो रही है।" गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने स्पष्ट किया कि अगर शिकायतें गलत साबित होती हैं, तो प्रचार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होगी।
बीजेपी की रणनीति पर नजर डालें, तो यह साफ है कि वह इस मुद्दे को 2028 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण के हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। 2023 के विधानसभा चुनावों में 'बजरंग बली' और हिजाब विवाद को लेकर बीजेपी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की थी, लेकिन कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया। 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने जेडीएस के साथ गठबंधन कर 28 में से 17 सीटें जीतीं, लेकिन अब फर्जी वोटों के आरोपों ने इस जीत पर सवाल खड़े किये हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी इस विवाद को हिंदू मंदिरों पर हमले का नैरेटिव बनाकर अपने कोर वोटबैंक को लामबंद करने की कोशिश कर रही है। मंजुनाथेश्वर मंदिर पर लगे आरोपों की जांच से ज्यादा, बीजेपी की रुचि इसे धार्मिक मुद्दा बनाने में है।
अपराध और धर्म
यह पहली बार नहीं है जब धार्मिक व्यक्तियों या संस्थाओं पर इस तरह के गंभीर आरोप लगे हैं। 2013 में आसाराम पर एक नाबालिग लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया, और 2018 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। शुरू में उनके समर्थकों ने इसे हिंदू धर्म पर हमला बताया, लेकिन सबूतों ने उनके अपराधों को साबित कर दिया। इसी तरह, 2017 में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को बलात्कार और हत्या के मामले में सजा हुई। उनके समर्थकों ने इसे धार्मिक भावनाओं पर हमला करार दिया, लेकिन जांच ने उनके अपराधों को पुख्ता किया।
सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि धार्मिक आस्था अपराध की जांच में बाधा नहीं बन सकती। कानून सबके लिए समान है, चाहे वह धार्मिक व्यक्ति हो या संस्था।
धर्मस्थला विवाद ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या यह एक साजिश है, या इसमें कुछ सच्चाई है? SIT की जांच ने चिन्नैया को गिरफ्तार कर एक कदम आगे बढ़ाया है, लेकिन पूरे मामले की सच्चाई अभी सामने आनी बाकी है। जब आपराधिक आरोपों को धार्मिक हमले के रूप में पेश किया जाता है, तो कानूनी प्रक्रिया सियासी हथकंडों के अधीन हो जाती है। बेहतर होगा कि सभी पक्ष जांच के नतीजों का इंतजार करें।