दूरदर्शन तबाही के कगार पर खड़ा है। कभी वह घर-घर की आवाज़ था, अब शायद कुछ ग्रामीण इलाकों या सरकारी कार्यालयों में चलता स्क्रीन मात्र। आज यह सरकारी गोदी मीडिया का भोंडा रूप बनकर रह गया है। अब ‘सुधीर चौधरी एक्सपेरिमेंट’ से इसका क्या हाल होने वाला है बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पांडेयः
15 सितंबर 1959 को दूरदर्शन की स्थापना के समय, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक सपना देखा था। वह यह कि "दूरदर्शन एक स्वतंत्र और निष्पक्ष माध्यम बने, सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो और लोगों के हितों की सेवा करे।" नेहरू ने कहा था, "दूरदर्शन शक्तिशाली माध्यम है, जिसका उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं, इसका उपयोग देश के लोगों को शिक्षित और जागरूक बनाने के लिए भी हो।" नेहरू दूरदर्शन को BBC की तरह स्वायत्त और सीबीएस और एनबीसी की तर्ज पर ग्लोबल ब्रॉडकास्टर बनाना चाहते थे। इसी सपने को लेकर ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के टैगलाइन के साथ जन्मा 'टेलीविजन इंडिया' 1975 में 'दूरदर्शन' बन गया।
पहली अप्रैल, 1976 को जब इसका प्रसारण प्राचीन चीनी दर्शन, यिन-यांग के क्लासिक चित्रण की आभा लिये खूबसूरत लोगो के साथ, मशहूर सितार वादक पंडित रविशंकर और शहनाई वादक उस्ताद अली अहमद हुसैन खान रचित धुन पर पहली बार हुआ तो हर दर्शक भारतीय की आंखें खुशी से छलक उठीं, कानों में उस मधुर संगीत का मधु घुल गया और सीना गर्व से फूल उठा। रेडियो की नीरवता को तोड़ता एक ठहरा हुआ ध्वनि-संकेत चलते फिरते दृश्य में बदला तो लोगों को महसूस हुआ कि देश तरक्की कर रहा है।
1965 में दैनिक समाचार बुलेटिनों का प्रसारण (पहले हिंदी और अंग्रेजी में), 1982 में, एशियाई खेलों के दौरान रंगीन प्रसारण और फिर 'रामायण', 'महाभारत', 'हमलोग', 'बुनियाद' और सुरभि जैसे शो आए। ऐसी ऐतिहासिक प्रस्तुतियों के साथ क्षेत्रीय भाषाओं में भी समाचार बुलेटिन शुरु हुए। 1970 और 1980 के दशक में दूरदर्शन तेजी से विकास करने लगा था।
1984 से 1989 तक के राजीव गांधी के शासनकाल में तो रंगीन टेलीविजन और नेटवर्क के विस्तार के साथ दूरदर्शन पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। 1990 के बाद से एआईआर-डीडी के नेटवर्क में भारी विस्तार हुआ। सन 1992 में दूरदर्शन के 535 ट्रांसमीटर थे, जो 2018 तक 1415 हो गए। सन 1990 में आकाशवाणी के 186 ट्रांसमीटर व 100 स्टेशन थे, तो वे बढ़कर 546 हो गये जबकि कुल स्टेशन 376 हो गये। आज अपने 35 चैनलों (8 अखिल भारतीय, 11 क्षेत्रीय, 15 राज्य स्तरीय और एक अंतर्राष्ट्रीय) के साथ दूरदर्शन एक विश्वस्तरीय नेटवर्क तो है, पर साख गिरती जा रही है।
मनोरंजन में शुद्धता, सूचना में संतुलन और सत्य यानी ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के कंटेंट के बल पर इसकी विश्वसनीयता बनी थी। तब दूरदर्शन के प्रसारण देश में सांप्रदायिक एकता को बढ़ावा देते थे।
जब भाजपा विपक्ष में थी, तो वह दूरदर्शन पर सरकारी नियंत्रण की कड़ी आलोचना और इसे एक स्वतंत्र संस्था बनाने की पुरजोर मांग करती थी। भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी, दूरदर्शन को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष सार्वजनिक प्रसारक बनाना चाहते थे। तब वे कहते थे कि दूरदर्शन को सरकार के बजाय जनता के हितों की सेवा करनी चाहिए।
1997 में, प्रसार भारती अधिनियम प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में लागू हुआ, पर 1996 में इसकी भूमिका बनाने में वाजपेयी सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका थी। इससे पहले 1977 से 1979 में सूचना और प्रसारण मंत्री रहे आडवाणी भी दूरदर्शन की स्वायत्तता की वकालत करते थे। प्रसार भारती तो बन गया, लेकिन दूरदर्शन सरकारी नियंत्रण से मुक्त नहीं हुआ। हालांकि पूर्ण स्वायत्तता नहीं होने के बावजूद किसी सरकार ने इसे वैसा पालतू तोता कभी नहीं बनाया, जैसा आज मोदी सरकार ने बना दिया है। दूरदर्शन आज एक पेट डॉग बन कर रह गया है।
‘सत्यम शिवम सुंदरम’ से आगे बढ़कर ‘जन जन की आवाज़’ बने दूरदर्शन को मोदी सरकार के आने के बाद 2014 में ‘देश का अपना चैनल’ और ‘हर पल आपके साथ’ का नारा दिया गया। लेकिन एक तरफ निजी चैनलों की चमक धमक तेज हुई और जब दूरदर्शन की संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों वाला कंटेंट कमजोर हुआ तो उसकी राष्ट्रीय पहचान खोने लगी।
कभी दूरदर्शन के मर्यादित एंकरों की विशेष राष्ट्रीय प्रतिष्ठा थी। आज डीडी न्यूज़ के मौजूदा गोदी संपादकों ने सारी हदें लांघ दी हैं। मीडिया, और वह भी सरकारी चैनल! मर्यादा की अपनी ही लुंगी फाड़कर चिंदिया उड़ाता, खुद नंगा होता जाता है। एंकर कोई किताब दिखाएगा, कोई चुनिंदा हिस्सा अपनी सुविधा से पढ़ेगा, और चीख चीख कर पूछेगा, कहा था कि नहीं, बोलो कहा था कि नहीं, और इसे दस बार दोहराएगा, सामने वाले पार्टी प्रवक्ता को बोलने भी नहीं देगा और फिर अन्यायपूर्ण तरीके से खुल्लम खुल्ला कहेगा, कि इनकी आवाज बंद कर दो, और खुद को सचमुच प्रेस्टीच्यूट साबित करता नहीं शर्माएगा।
पिछले दो वर्षों में, दूरदर्शन न्यूज़ पर प्रसारित कार्यक्रमों की बानगी देखें तो पता चलता है कि किस तरह ये चैनल पक्षपातपूर्ण और कथित हिंदुत्व-समर्थक झूठा नैरेटिव प्रस्तुत करने के भोंडे प्रयास में दूरदर्शन ही नहीं एनडीए सरकार की प्रतिष्ठा भी लगातार गिरा रहा है। ये भूल गये हैं कि दूरदर्शन एक पब्लिक ब्रॉडकास्टर है। किसी पार्टी का निजी भोंपू हरगिज नहीं।
डीडी न्यूज़ की रिपोर्टिंग लगातार सरकारी प्रचार, हिंदुत्व नैरेटिव और विपक्ष-विरोध की तरफ झुकी रही है, जिससे इसकी निष्पक्षता और पेशेवर प्रतिष्ठा दोनों सवालों के घेरे में हैं। 2022-2024 में प्रसारित कुछ प्रमुख कार्यक्रमों को देखें।
कैसे एक सार्वजनिक ब्रॉडकास्टर, सत्ता का प्रचारक बन गया। प्रोग्राम्स जो सवाल उठाते हैं:
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के साथ, झारखंड सरकार पर इस्लामीकरण का आरोप — बिना किसी संतुलित दृष्टिकोण के।
विषय: "मोदी सरकार के 9 साल: भारत का वैश्विक उत्थान" | सरकारी उपलब्धियों का गुणगान; आलोचना नदारद
एंकर: भाजपा नेता सुधांशु त्रिवेदी | मेहमान: अमिश देवगन, स्वामी चिदानंद सरस्वती
एकतरफा बहस, विरोधी पक्ष अनुपस्थित
एंकर: रजत शर्मा | मेहमान: मोहन भागवत, साध्वी प्राची, जुबिन नियाज़
सरकारी स्कीम्स का प्रचार; मणिपुर या उन्नाव जैसी घटनाओं का ज़िक्र तक नहीं
एंकर: अंशुल साक्षी । मेहमान: स्मृति ईरानी, टेसी थॉमस
फिल्म को मुस्लिम-विरोधी प्रोपेगैंडा की जगह "तथ्यात्मक दस्तावेज़" बताया गया
मेहमान: विवेक अग्निहोत्री, अश्विनी उपाध्याय
हिंदुत्व को राष्ट्रीय विचार बताया गया, धर्मनिरपेक्षता की कोई बहस नहीं।
मेहमान: चंपत राय, स्वाति गोयल
भाजपा नारे को प्रमोट करने वाला कार्यक्रम
मेहमान: प्रकाश जावड़ेकर, संबित पात्रा
स्रोत - DD News के सोशल मीडिया हैंडल (Twitter-X/YouTube) से।
बात सिर्फ सरकारी पक्ष के प्रचार भर की नहीं है, जो सभी सरकारें कमोबेश करती हैं। आज इस चैनल के घटिया, पक्षपाती, नफरती, सांप्रदायिक और उन्मादी कार्यक्रमों ने इसकी प्रतिष्ठा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। भाजपा-संघ-हिंदुत्व जैसे नैरेटिव को तथ्यहीन और झूठे तरीके से बढ़ाने के कारण सरकार को लाभ की बजाय नुकसान ही हो रहा है।
दूरदर्शन की स्वायत्तता पर पहले भी सवाल उठे हैं। 2014 में, लोकसभा चुनावों के दौरान, दूरदर्शन ने नरेंद्र मोदी के एक साक्षात्कार के कुछ अंशों को संपादित करके प्रसारित किये जाने पर भाजपा ने जमीन आसमान एक कर दिया था। तब इसी भाजपा और मोदी ने सरकार पर प्रसार भारती की स्वायत्तता में हस्तक्षेप के आरोप लगाये थे। जबकि सूचना प्रसारण मंत्री रहे मनीष तिवारी ने कहा था कि सरकार प्रसार भारती से "एक हाथ की दूरी" बनाए रखती है और इसे अधिक स्वायत्तता देने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दूरदर्शन ने जब आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत के दशहरा भाषण का पहली बार सीधा प्रसारण 70 मिनट तक किया तो विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की। अप्रैल 2024 में, दूरदर्शन न्यूज ने अपने 'लोगो' का रंग लाल से बदलकर नारंगी (भगवा) कर दिया, जिससे राजनीतिक विवाद उत्पन्न हुआ। विपक्षी नेताओं, विशेषकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे दूरदर्शन के 'भगवाकरण' का प्रयास बताया और इसे अनैतिक एवं अवैध करार दिया। भाजपा नेताओं ने इसे 'घर वापसी' कहा और तर्क दिया कि 1982 में दूरदर्शन के लोगो का रंग भगवा ही था।
2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने 'दूरदर्शन को BBC बनाने' का वादा किया था। लेकिन स्वायत्तता, विश्वसनीयता, टीआरपी, और वार्षिक बजट में BBC की तुलना में डीडी कहीं नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित 'डीडी किसान' और पूर्वोत्तर के लिए अरुण प्रभा चैनलों का भी खास वजूद नहीं बन पाया। वजह बजट में कमी और सक्षम संपादकों का न होना रहा।
लेकिन आज इसकी हालत बेहद खस्ता है। मोदी युग में दूरदर्शन की टीआरपी गिरकर 0.05% रह गई है। राजस्व में 42% गिरावट आई है। 7,000 से अधिक कर्मचारी कम हो गये हैं। मनमोहन सिंह के समय इसकी टीआरपी 1.5 से 2% थी और निष्पक्षता पर सवाल भी कम उठे थे। सूचना प्रसारण मंत्रालय की संसदीय समिति और CAG की रिपोर्टों में दूरदर्शन की बदहाली, पक्षपातपूर्ण कवरेज और वित्तीय गड़बड़ियों का जिक्र है।
दूरदर्शन न्यूज़ को दर्शकों की संख्या में गिरावट, मानव संसाधन की कमी, और राजस्व बढ़ाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के समाधान के लिए विषय-वस्तु की गुणवत्ता में सुधार, तकनीकी उन्नयन, और प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है। नेहरू का विज़न और बीबीसी बनाने का सपना तो दूर वाजपेयी, आडवाणी की कल्पना से भी परे दूरदर्शन आज सरकारी प्रचार का एक अप्रासंगिक माध्यम बनकर रह गया है। TRP, राजस्व और कर्मचारियों में गिरावट इसकी विफलता की कहानी कहती है। सुधीर चौधरी जैसे विवादित एंकर्स को लाने का प्रयास "गोदी मीडिया को ग्लैमराइज्ड करने की कोशिश" भर है, जब तक संपादकीय स्वतंत्रता और संस्थागत सुधार नहीं होते।