वेनेजुएला के राष्ट्रपति मादुरो और यूएस राष्ट्रपति ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के खिलाफ खुला अभियान छेड़ दिया है। इसे औपचारिक रूप से "नार्को-टेररिज़्म के खिलाफ ऑपरेशन" कहा जा रहा है, पर दुनिया इसे स्पष्ट रूप से "सत्ता परिवर्तन" (रिजीम चेंज) की कोशिश मान रही है। सितंबर 2025 से शुरू हुए हवाई हमलों के बाद अब स्थिति चरम पर है। ट्रंप ने मादुरो को 5 दिसंबर तक इस्तीफा देने का अल्टीमेटम दिया है और उनके परिवार को सुरक्षित निकासी का ऑफ़र दिया है। मादुरो ने 21 नवंबर के फ़ोन कॉल में इसे ठुकरा दिया और बदले में 100 से अधिक अधिकारियों पर लगी पाबंदियाँ हटाने, वैश्विक क्षमादान और अंतरिम सत्ता उपराष्ट्रपति डेल्सी रॉड्रिगेज़ को सौंपने की मांग की।
अमेरिका ने कैरेबियन क्षेत्र में 15,000 से अधिक सैनिक, यूएसएस जेराल्ड फोर्ड विमानवाहक समूह, बी-52 बॉम्बर, एफ-35 लड़ाकू विमान और पनडुब्बियाँ तैनात कर दी हैं- 1989 के पनामा आक्रमण के बाद यह सबसे बड़ा सैन्य जमावड़ा है। अब तक 21 घातक हमलों में 83 लोग मारे जा चुके हैं। मादुरो ने 3,37,000 सैनिक और दस लाख सिविलियन मिलिशिया को हथियारबंद कर लिया है तथा सीमाओं पर सैन्य तैनाती कर दी है। वे इसे "मनोवैज्ञानिक आतंकवाद" और संप्रभुता का उल्लंघन बता रहे हैं।
मादुरो की कमज़ोरियाँ और अमेरिकी रणनीति
- आर्थिक संकट, तेल उत्पादन 1980 के दशक के स्तर पर, अति-मुद्रास्फीति (हाइपरइन्फ़्लेशन) और कठोर प्रतिबंधों ने जन-समर्थन छीन लिया है।
- सेना दुनिया में 50वें स्थान पर है, हवाई रक्षा प्रणाली कमज़ोर है; अमेरिकी सटीक हमले (प्रिसिजन स्ट्राइक) का मुक़ाबला करना लगभग असंभव है।
- रूस-चीन से हथियार और कूटनीतिक समर्थन मिला हुआ है, पर दोनों देश सीधी सैन्य टक्कर से बच रहे हैं।
- अमेरिका ने "कार्टेल दे लोस सोलेस" को आतंकवादी संगठन घोषित कर 5 करोड़ डॉलर का इनाम रखा है।
क्षेत्रीय प्रतिक्रिया
कोलंबिया के वामपंथी राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने ट्रंप की नीति को "बर्बर" और "तेल लालच" बताया है। एक कोलंबियाई मछुआरे की मौत के बाद उन्होंने अमेरिका के साथ खुफिया सहयोग रोक दिया और हवाई क्षेत्र बंद करने को "अवैध" घोषित किया। ब्राज़ील के लूला डि सिल्वा ने संवाद की अपील की है, जबकि अर्जेंटीना और इक्वाडोर जैसे दक्षिणपंथी देश चुपचाप अमेरिकी दबाव का समर्थन कर रहे हैं। वेनेज़ुएला के ढहने से 77 लाख से अधिक शरणार्थी और बढ़ सकते हैं। कोलंबिया में पहले से 28 लाख वेनेज़ुएली शरणार्थी हैं।क्यूबा पर छाया संकट
क्यूबा अपनी 500 मिलियन डॉलर सालाना सब्सिडी वाली तेल आपूर्ति वेनेज़ुएला से पाता है। मादुरो के गिरने का मतलब हवाना के लिए आर्थिक पतन है। ट्रंप प्रशासन (मार्को रूबियो के नेतृत्व में) ने क्यूबा पर फिर से कठोर प्रतिबंध लगा दिए हैं और उसे दोबारा "आतंक प्रायोजक राज्य" घोषित करने की तैयारी है। क्यूबा इसे "मुनरो सिद्धांत की पुनरावृत्ति" बता रहा है।लैटिन अमेरिका में अमेरिकी हस्तक्षेप का ऐतिहासिक पैटर्न
यह कोई नई कहानी नहीं है। पिछले 125 वर्षों में अमेरिका ने लैटिन अमेरिका-कैरेबियन में 50 से अधिक सैन्य हस्तक्षेप किए हैं:
1898: क्यूबा और प्यूर्टो रिको पर कब्ज़ा (स्पेन से छीना)
1904-1933: हैती, डोमिनिकन गणराज्य, निकारागुआ में लंबे समय तक कब्ज़ा
1954: ग्वाटेमाला – चुनी हुई सरकार (जैकोबो आर्बेंज़) को सीआईए ने गिराया क्योंकि उसने यूनाइटेड फ्रूट कंपनी की ज़मीन बाँटने की कोशिश की
1961: क्यूबा – बे ऑफ़ पिग्स आक्रमण (असफल)
1965: डोमिनिकन गणराज्य – अमेरिकी मरीन ने वामपंथी विद्रोह दबाया
1973: चिली – सीआईए ने साल्वाडोर अलेंदे की चुनी हुई सरकार को पलटवाकर पिनोशे तानाशाही लाई
1983: ग्रेनाडा आक्रमण
1989: पनामा – मैनुअल नोरिएगा को हटाने के लिए आक्रमण (२,०००-४,००० नागरिक मारे गए)
2002: वेनेज़ुएला – ह्यूगो शावेज़ के खिलाफ असफल तख्तापलट में अमेरिकी समर्थन
2009: होंडुरास – चुने हुए राष्ट्रपति मैनुअल ज़ेलाया को तख्तापलट में अमेरिका ने मौन सहमति दी
2019: वेनेज़ुएला – जुआन गुआइदो को मान्यता देकर मादुरो को हटाने की कोशिश (असफल)हर बार औचित्य अलग रहा। केले के बागान, साम्यवाद (कम्युनिज़्म), ड्रग्स, कथित आतंकवाद पर निशाना। पर मूल लक्ष्य एक ही: संसाधनों पर नियंत्रण और वामपंथी सरकारों को कुचलना।
वैश्विक मीडिया का रवैया
अमेरिकी मीडिया (फ़ॉक्स न्यूज़, सीएनएन, न्यूयॉर्क टाइम्स) इसे "नशीली दवाओं के खिलाफ ज़रूरी कार्रवाई" बता रहा है और मादुरो को "नार्को-डिक्टेटर" कहकर वैधता प्रदान कर रहा है। तेल के भंडार (दुनिया के सबसे बड़े) और भू-राजनीतिक हितों का ज़िक्र लगभग ग़ायब है।ब्रिटेन का द गार्डियन, अल जज़ीरा, ले मोंद, लैटिन अमेरिकी मीडिया इसे "नव-साम्राज्यवाद" और "संप्रभुता का उल्लंघन" बता रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने हमलों को "अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में अतिरिक्त-न्यायिक हत्याएँ" कहा है। कोलंबिया के पेट्रो ने स्पष्ट कहा- "यह ड्रग्स का नहीं, तेल का युद्ध है।"
आगे का परिदृश्य
5 दिसंबर की समय-सीमा निर्णायक है। मादुरो के इनकार करने पर सीमित हवाई हमले या पूर्ण आक्रमण हो सकता है। सफलता मिली तो क्यूबा अगला निशाना बनेगा। असफलता हुई तो इराक-अफ़ग़ानिस्तान जैसा अराजक युद्ध शुरू हो सकता है।लैटिन अमेरिका फिर एक बार याद दिला रहा है कि जब अमेरिका "लोकतंत्र लाने" की बात करता है, तो अक्सर उसके पीछे तेल, खनिज और साम्राज्यवादी हित छिपे होते हैं- और इतिहास इसकी गवाही देता है।