नेपाल में हुए युवा विद्रोह और तख्तापलट के बाद यह सवाल उठ गया है कि क्या यह स्वत:स्फूर्त था या फिर पूरा दक्षिण एशिया किसी डिज़ाइन के तहत अशांत है। नेपाल में वही पैटर्न दिखा है जो श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) में दिखा था जहाँ अचानक सड़कों पर उतरे नौजवानों ने ऐसा तख्तापलट किया कि शासकों को देश छोड़कर भागना पड़ा। निश्चित ही ये आंदोलन आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और असमानता के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा दिखाते हैं लेकिन जिस आसानी से तख्तापलट हुआ वह किसी और तरफ़ भी इशारा करता है। खासतौर पर तख्तापलट के बाद ऐसी सरकारें बनीं जो अमेरिका की तरफ़ नरम थीं जबकि पहले वहाँ की सरकार पर चीन का ज़्यादा प्रभाव था। ऐसे में दक्षिण एशिया में जो हो रहा है, वह चीन और अमेरिका के बीच जारी वर्चस्व की जंग का नतीजा भी हो सकता है।
दक्षिण एशिया को अशांत करने के पीछे क्या अमेरिका का हाथ?
- विश्लेषण
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- 11 Sep, 2025

नेपाल में युवक प्रदर्शन करते हुए
नेपाल, श्रीलंका से लेकर बांग्लादेश तक दक्षिण एशिया में राजनीतिक और आर्थिक संकट गहराते जा रहे हैं। क्या यह केवल आंतरिक कारण हैं या अमेरिकी नीतियों का भी असर है? पढ़ें विस्तृत विश्लेषण।
श्रीलंका
2022 में श्रीलंका आर्थिक संकट से गुज़र रहा था। ईंधन, दवाइयों, और खाद्य पदार्थों की भारी कमी थी। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे परिवार पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के गंभीर आरोप लगे। विश्व बैंक के 2022 के आंकड़ों के अनुसार 25% से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी, बेरोजगारी दर 7.2% थी, और युवा बेरोजगारी 20% से अधिक थी। प्रदर्शनकारियों ने कोलंबो में राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा। गोटबाया के बाद रानिल विक्रमसिंघे जुलाई 2022 में राष्ट्रपति बने। उनकी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) का पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के साथ पुराना रिश्ता रहा है। श्रीलंका ने IMF से आर्थिक मदद ली, जिसे अमेरिकी प्रभाव से जोड़ा जाता है। हालांकि, 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा डिसानायके 42% वोटों के साथ जीते, जो श्रीलंका के इतिहास में एक नया मोड़ माना गया।