चीन ने अमेरिका को वैश्विक कूटनीति में जबर्दस्त मात दी है और इसके लिए रेअर अर्थ खनिज के ट्रंप कार्ड का इस्तेमाल किया। जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप झुक कर चीन से व्यापार समझौता कर रहे हैं, वह अमेरिका की दादागिरी के विफल होने की कहानी कह रहा है। साथ ही वैश्विक कूटनीति में चीन की सूझ-बूझ मिसाल पेश कर रही है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अपना दबदबा बनाने के बाद व्यापार को ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को अपने पक्ष में मोड़ने में धीरे-धीरे चीन ने सफलता हासिल की है।
सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह घोषणा करने की ज़रूरत पड़ गई कि सारे मसले सुलझ गये हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, यह भी ट्रंप ने ऐलान किया कि चीनी एप टिक-टॉक पर भी समझौता हो गया है। ये घोषणा वैश्विक कूटनीति में बड़े यू-टर्न के रूप में देखी जा रही है। डोनाल्ड ट्रंप ने 20 जनवरी 2025 से यानी जब से अमेरिका के राष्ट्रपति का पदभार संभाला, तब से चीन को निपटाना उनके मुख्य एजेंडे में रहा। टैरिफ़ वार की शुरुआत भी अमेरिका के बाजार से चीनी सामानों को बाहर करने के उद्देश्य से ही की गई थी। फिर अब इस ट्रेड डील के पीछे क्या खेल हुआ या हो रहा है, यह समझना बहुत जरूरी है।
रेअर अर्थ मिनरल्स का हथियार!
इस खेल का नाम है रेअर अर्थ यानी दुर्लभ मृदा या दुर्लभ खनिज। ये रेअर अर्थ वह बला है जिसने इस समय वैश्विक कूटनीति पर अपना दबदबा बनाया हुआ है। इसी ने अमेरिका को यू-टर्न लेने पर मजबूर किया और चीन के आगे झुका दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब 27 अक्टूबर को यह घोषणा की कि अमेरिका व चीन के बीच व्यापार समझौता होने जा रहा है तब चीन को लेकर उनका यू-टर्न दुनिया के सामने आया। वरना चीन को व्यापार में नुकसान पहुंचाने, अमेरिकी बाजार से उसे बाहर करने की प्रतिज्ञा करने वाले ट्रंप की जबान से चीन के खिलाफ टैरिफ वार की घोषणाएँ ही ख़बरें बनती थीं। अब स्थिति उसके बिल्कुल उलट है। इसके पीछे चीन के पास जो रेअर अर्थ दुर्लभ मृदा की कुंजी है, उसकी निर्णायक भूमिका है। चीन पर टैरिफ वार, चिप वार करने वाले अमेरिका पर चीन ने रेअर अर्थ वार का जो दांव खेला- वह बहुत निर्णायक साबित हुआ है।
आज की तारीख़ में चीन-अमेरिका व्यापार समझौते की पूरी तैयारी हो गई हैं और इसकी घोषणा से अमेरिका के उद्योग क्षेत्र, शेयर बाजार में खुशी है और लोग भी राहत महसूस कर रहे हैं। इस पूरे घटनाक्रम में रेअर अर्थ यानी दुर्लभ खनिज की निर्णायक भूमिका है, जिसके माइंड प्रोडक्शन का 70 फीसदी कंट्रोल चीन के पास है। यानी दुनिया में सबसे बड़ा इस्तेमाल करने के लिए तैयार रेअर अर्थ मिनरल्स का स्रोत चीन के अधीन है। इस तरह से चीन ने रेअर अर्थ को सिर्फ खनिज संसाधन नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन के हथियार के रूप में तब्दील कर दिया है।
रेअर अर्थ मिनरल्स की वजह से अमेरिका तकनीकी व आर्थिक मोर्चे पर चीन पर निर्भर बन गया है। चीन ने रेअर अर्थ मिनरल्स पर एक्सपोर्ट बैन का दाँव खेलकर अमेरिका को झुका दिया। ट्रंप का स्वर बदल गया।
रेअर अर्थ पर वैश्विक कूटनीति
कुछ समय पहले तक रेअर अर्थ खनिज के बारे में शायद ही वैश्विक कूटनीति में कहीं चर्चा होती थी, लेकिन आज दुनिया भर में लोग इसके बारे में जिज्ञासु हैं। वर्तमान और भविष्य के तमाम तकनीकी विकास इस रेअर अर्थ पर निर्भर हैं। अमेरिका का रक्षा उद्योग, क्लीन एनर्जी, हाई टेक इंडस्ट्री एक कदम भी बिना रेअर अर्थ की आपूर्ति के नहीं चल सकता। मिसाल के तौर पर अमेरिका के एफ-35 फाइटर जेट में रेअर अर्थ इस्तेमाल होता है। इसकी ड्राइव मोटर्स में इनका उपयोग होता है। अमेरिका की नौसेना के विध्वंसक जहाजी बेड़े -आर्ल बर्क डीडीजी 51 डिस्ट्रॉयर (Arleigh burke) में और अमेरिका की वर्जीनिया क्लास सबमैरीन में भी रेअर अर्थ मेटिरियल लगते हैं। यह तो सिर्फ अमेरिकी के रक्षा क्षेत्र का हाल है। बाकी तमाम उद्योगों में भी इस रेअर अर्थ के बिना काम चलना मुश्किल है। खास तौर से क्लीन सोलर पावर के तमाम प्रोडक्शन रेअर अर्थ की सप्लाई के बिना संकट में पड़ जाएंगे। इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर स्मार्ट फोन तक का कारोबार रेअर अर्थ मिनरल्स के बिना नहीं हो सकता है। यह अमेरिका की कमजोर नब्ज है, जिसे चीन ने दबा दिया।
अमेरिका की चिप वार और टैरिफ वार के जवाब में चीन ने यह दांव चला कि उसके रेअर अर्थ का जहाँ भी जो भी इस्तेमाल करेगा, चाहे वह कंपनी हो या देश, उसकी मंजूरी उसे लेनी होगी और अमेरिका के उद्योग पर इसका गहरा और सीधा असर पड़ा। चीन ने अमेरिका पर रेअर अर्थ मिनरल्स पर एक्सपोर्ट बैन को कम से कम एक साल टालने के संकेत दिए हैं। इसके बारे में अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट का यह ऐलान काफी मानीखेज है कि चीनी सामानों पर ट्रंप के प्रस्तावित 100 फीसदी टैरिफ का खतरा पूरी तरह से टल गया है और बदले में चीन सोयाबीन की खरीद को शुरू करने और रेअर अर्थ मिनरल्स पर एक्सपोर्ट बैन को कम से कम एक साल टालने के लिए तैयार है।
रेअर अर्थ पर चीन की रणनीति
चीन ने बहुत सोची समझी रणनीति पर अमल करते हुए ये बढ़त हासिल की। 1990 से 2000 के बीच चीन ने बहुत कम लागत पर रेअर अर्थ मिनरल्स के उत्पादन-निर्माण और परिशोधन में निवेश किया। चीन केवल अयस्क नहीं निकालता, बल्कि उसकी माइनिंग-रिफाइनिंग व मैग्नेट बनाने तक के काम का बड़ा हिस्सा भी चीन के भीतर ही होता है। इस पर उसने अपना एकाधिपत्य स्थापित किया। जबकि बाकी देश इन्हें नहीं बेच पाते, क्योंकि उनके पास फाइनल प्रोडक्ट के रूप में माइंड-रिफाइंड रेअर अर्थ नहीं होता। चीन ने चूंकि सबसे पहले इस दिशा में अपनी ऊर्जा व तकनीक विकसित की, लिहाजा उसके उत्पाद भी सस्ते हैं। चीन ने बड़े पैमाने पर कम मूल्य पर उत्पादन कर वैश्विक सप्लाई का शेयर अपने कंट्रोल में कर लिया।
यहां ध्यान देने की बात यह है कि जब वर्ष 2025 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पदभार संभालते ही अमेरिका फर्स्ट के नारे के साथ यह ऐलान किया कि वह अमेरिकी बाजार को चीन के उत्पादों से मुक्त कराएंगे और इसी दिशा में चीन पर 100 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया। चीन इससे डरा नहीं। उसके पास रेअर अर्थ मेटिरियल की ताकत जो थी। दुनिया के बाकी देशों को यह लगा कि अब अमेरिका चीन को निपटा देगा। दुनिया के बाकी देश अमेरिका के टैरिफ वार के आगे झुक गये, लेकिन चीन अपनी छुपी हुई शक्ति से वाकिफ था। उसने कुछ भारी रेअर अर्थ और स्थायी मैग्नेट श्रेणियों पर एक्सपोर्ट नियंत्रण बढ़ा दिया। इसका तुरंत ही असर रक्षा, इलेक्ट्रिक वाहनों, साफ सौर ऊर्जा प्रोडक्ट्स और हाई टेक उद्योगों पर पड़ा। हालाँकि, अमेरिका कुछ खनिज निकाल सकता है पर परिशोधन और मेग्नेट फैक्ट्री बनाना लंबी, महंगी और टेक्निकल पेचीदगियों से भरा काम है। वहीं चीन इसमें एक्सपर्ट है।
ट्रंप की रणनीति
ट्रंप कोशिश भरपूर कर रहे हैं कि वह रेअर अर्थ पर चीन पर अपनी निर्भरता को कम करें। जगह-जगह जा-जाकर इस बाबत समझौते भी करते नज़र आ रहे हैं। यूक्रेन के साथ भी ट्रंप की डील का प्रमुख हिस्सा उसके रेअर अर्थ मेटिरियल पर कब्जे का ही है। एशिया में भी ट्रंप रेअर अर्थ की आपूर्ति को हासिल करने के लिए ही कोशिशें कर रहे हैं। इस दिशा में जापान, मलेशिया, वियतनाम व कंबोडिया से हुए उनके समझौतों को देखा जा सकता है। लेकिन इसे अमल में लाने में बहुत समय और धन लगेगा। यह बात चीन भी जानता है।
चीन के पास इस समय रेअर अर्थ मेटिरियल्स की कुंजी है और इसे उसने मजबूती से पकड़ रखा है। वह इस चाबी को जरा भी घुमाता है तो इसका दर्द अमेरिका को होता है। उसके उद्योग कराहने लग जाते हैं। चीन ने रेअर अर्थ पर जो नए एक्सपोर्ट परमिट सिस्टम लागू किया, उसने अमेरिका को झुकने पर मजबूर कर दिया। पिछले 15 साल से चीन की रणनीति ने एक बार फिर अमेरिका को पीछे धकेला और इस ट्रेड डील या व्यापार समझौते के लिए तैयार किया है। अमेरिका और ट्रंप के सामने कोई और विकल्प भी नहीं है क्योंकि जब चीन के पास रेअर अर्थ का 70 फीसदी माइंड प्रोडक्शन है, जब चीन को नाराज़ करके या उसके लिए अमेरिका के दरवाजे बंद करके खुद को चला पाना असंभव है।
फिलहाल, जिस तरह से ट्रंप यू-टर्न ले रहे हैं, उससे उनकी साख पर बट्टा ज़रूर लग रहा है और जिस दंभ और दादागिरी से वह दुनिया को हांकने की कोशिश कर रहे हैं, वह भी फेल हो रहा है।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं और अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार हैं।)