लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ख़िलाफ़ लगातार आक्रमण का असर उसके शताब्दी समारोह पर भी पड़ा है। 26 अगस्त को दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में सरसंघचालक मोहन भागवत को उन तमाम मुद्दों पर सफ़ाई देनी पड़ी जो संघ को लेकर उठते हैं। उन्होंने अपनी हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को समावेशी और समानतावादी करार दिया पर ये भी कहा कि यह पश्चिमी राष्ट्र राज्य की अवधारणा से अलग है। उन्होंने दावा किया कि संघ किसी को धार्मिक आधार पर पराया नहीं मानता और उसका सार ‘भारत माता की जय’ के नारे में है। लेकिन भागवत की इन सफ़ाइयों से कई सवाल और खड़े हो गये हैं।
भागवत की ‘हिंदू राष्ट्र’ पर सफ़ाई में छिपी है संविधान बदलने की दबी इच्छा!
- विश्लेषण
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- 27 Aug, 2025

भागवत की ‘हिंदू राष्ट्र’ पर सफ़ाई
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा पर सफ़ाई दी है। क्या इस बयान में संविधान बदलने की छिपी इच्छा झलक रही है? पढ़ें पूरा विश्लेषण।
इन दिनों बिहार में जारी वोट अधिकार यात्रा के ज़रिए काफ़ी हलचल मचा रहे राहुल गाँधी बीते कुछ दशकों में कांग्रेस के अकेले नेता हैं जो आरएसएस पर लगातार हमलावर हैं। वे बार-बार कहते हैं कि असली लड़ाई बीजेपी से नहीं, संघ से है। यह आरएसएस की आयडियोलॉजी ही है जो भारतीय संविधान में दर्ज मूल्यों को नष्ट करना चाहती है। संविधान ने दलितों, पिछड़ों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को बराबर का नागरिक माना है जो संघ की मनुवादी सोच के ख़िलाफ़ है। यही नहीं, वे संघ को आरक्षण विरोधी भी करार देते हैं जो सामाजिक न्याय की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है जो संविधान बदलना चाहता है। 2024 में बीजेपी के केंद्र में बहुमत के पीछे रह जाने के पीछे आरएसएस और बीजेपी के संविधान बदलने की इस कथित इच्छा को भी माना जाता है। बीजेपी के कुछ सांसदों और मंत्रियों के अनुसार 'संविधान बदलने के लिए चार सौ पार’ वाले बयान भी इसके लिए कम ज़िम्मेदार नहीं थे।